जाजहिंदी, कवसिंग, अकोड, अक्षोट और चारमगज विभिन्न भाषाओं में अखरोट के ही नाम हैं। यूग्लांदासी परिवार के सदस्य अखरोट का वानस्पतिक नाम यूग्लांस रेजिआ लिनिअस है।
अखरोट एक पर्णपाती वृक्ष है जिसकी ऊंचाई लगभग 30−35 मीटर तक हो जाती है। इसके पत्ते 15 से 35 सेटीमीटर लंबे होते हैं। इसका फल कठोर, गुठलीदार होता है। ये दो प्रकार के होते हैं कागजी और कठोर। इसमें से कागजी अखरोट आसानी से टूट जाता है। इसमें सितम्बर−अक्टूबर में फल लगाते हैं। रोपने के बाद इसके फल प्राप्त करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है इसमें 8−10 साल का समय लग जाता है।
हमारे देश में अखरोट की सबसे ज्यादा पैदावार कश्मीर में होती है। यहां पैदा होने वाले अखरोट की किस्म भी सबसे अच्छी होती है। कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में भी अखरोट उगाया जाता है।
अखरोट एक बहुउपयोगी वृक्ष है। यह खाने के लिए प्रयोग तो होता ही है। इसकी लकड़ी भी बहुत उपयोगी होती है। इसके लगभग सभी अंग औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अखरोट के पत्ते स्तंभक बल देने वाले तथा कृमिनाशक होते हैं। इसका हरा छिलका सिफलिसरोधी तथा कफनिस्सारक होता है। इसका तेल मृदु विरेचक तथा उदर कृमिनाशक होता है। इसके अतिरिक्त अखरोट रस में मधुर, पुष्टिकारक, पित्तश्लेष्मा की वृद्धि करने वाला, बलवर्धक, ऊष्णवीर्य, सारक, शुक्रजनक, रूचिकारक, हृदय के लिए हितकर तथा क्षयरोग, रक्त विकार एवं दाह को शांत करने वाला होता है। इसकी गिरी बुद्धिवर्धक होती है।
कब्ज दूर करने के लिए अखरोट का तेल 20−40 मिलीलीटर दूध के साथ नियमित रूप से लेना चाहिए। इससे खुल कर दस्त होता है और कब्ज की परेशानी दूर होती है।
गले के घावों को दूर करने के लिए कच्चे अखरोट के सिरके या काढ़े से गरारे करने चाहिएं। नासूरों के इलाज के लिए अखरोट की गिरी को मोम या मीठे तेल में पकाकर नासूरों पर लगाना चाहिए।
प्रमेह तथा मूत्र संस्थान के रोगों के लिए भी अखरोट बहुत लाभकारी है। इसके लिए 50 ग्राम अखरोट की गिरी में 40 ग्राम छुहारा तथा 10 ग्राम बिजौले की मींग मिलाकर घी में कूट लें और मिश्री मिलाएं। इस मिश्रण की 25 ग्राम मात्रा का नियमित सेवन करने से बहुत फायदा होता है।
शरीर को शक्ति तथा स्फृर्ति देने के लिए भी अखरोट का प्रयोग किया जाता है इसके लिए अखरोट की गिरी में बराबर मात्रा में मुनक्का मिलाकर सेवन करना चाहिए। यदि चेहरा लकवा प्रभावित हो तो प्रभावित भाग पर अखरोट का लेप करके दशमूल या निर्गुडी के काढ़े की भाप लेने से लाभ होता है। स्तनपान कराने वाली माताओं या उन माताओं को जिन्हें दूध नहीं उतरता, को गेहूं के आटे में अखरोट के पत्तों का चूर्ण मिलाकर दूध में गूंथ कर, गाय के घी में पूड़ियां तलकर खानी चाहिए। इससे दूध की मात्रा बढ़ जाती है।
कुत्ते द्वारा काटे जाने पर, विष के प्रभाव को दूर करने के लिए 10 मिलीलीटर अखरोट के तेल को 50 मिलीलीटर गरम पानी में मिलाकर 6−6 घंटे के बाद रोगी को पिलाना चाहिए। मस्तिष्क की कमजोरी दूर करने के लिए भी अखरोट को गुणकारी माना जाता है। इसके लिए प्रतिदिन 25 ग्राम अखरोट की गिरी का सेवन करना चाहिए। लेकिन चूंकि यह पचने में भारी होता है इसलिए इसका सेवन केवल सर्दियों में किया जाना चाहिए।
दर्द या पीड़ा दूर करने के लिए प्रभावित स्थान पर अखरोट के कच्चे फल की ताजा गिरी का लेप करके गरम ईंट या बालू से सिकाई करने पर पीड़ा दूर हो जाती है। पेट दर्द तथा पेचिश में विशेष रूप से अखरोट का सेवन किया जाता है। इसका तेल उदस्थ कृमियों को भी नष्ट कर देता है।