(Yamunanagar News) साढौरा। श्री दुर्गा मंदिर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक कैलाश चंद्र शास्त्री ने अपने मुखारबिंद से ध्रुव चरित्र कथा का संगीतमय वर्णन किया। कथा में धु्रव चरित्र का वर्णन सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। कैलाश शास्त्री ने अपनी मधुर वाणी से ध्रुव चरित्र कथा का वर्णन करते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र की बाधा नही होती है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्ररेणा देनी चाहिए। चूंकि बचपन कच्ची मिट्टी की तरह होता है।
उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है, उसी के अनुरुप उसे मृत्यु मिलती है। भगवान ध्रुव के सतकर्मों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ध्रुव की साधना, उनके सतकर्म और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरुप ही उन्हें बैकुंठ लोक प्राप्त हुआ है। शास्त्री ने कहा कि संसार में जब-जब पाप बढ़ता है, भगवान धरती पर किसी न किसी रूप में अवतरित होते है।
कैलाश चंद्र शास्त्री ने बताया कि श्रीमद् भागवत पुराण में सभी ग्रंथों का सार है। यही एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान की सारी लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। जब सौभाग्य का उदय होता है तब भागवत कथा सुनने को मिलती है। यह ग्रंथ साक्षात भगवान का स्वरूप है। इसीलिए श्रद्धापूर्वक भागवत की पूजा की जाती है। भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष, आषाढ़ और श्रावण के महीने अनुकूल या श्रेष्ठ माने जाते है।
इन महीनो में कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति आसान हो जाती है।इसके अतिरिक्त श्रीमद् भागवत कथा सुनना और सुनाना दोनों ही मुक्तिदायिनी है तथा आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। श्रीमद् भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। मन की शुद्धि के लिए इससे बढ़ा कोई साधन नहीं है।
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