(Yamunanagar News) साढौरा। भौतिकतवाद के युग में जिसके पास अधिक धन हो उसे ही सबसे बड़ा धनवान माना जाता है। जबकि असलियत में अपने ह्दय में भगवान की भक्ति का वास रखने वाला व्यक्ति ही सबसे बड़ा धनवान होता है। भौतिक धन से वास्तविक सुख व शांति नहीं पाई जा सकती है। जबकि भगवान की भक्ति से अपार सुख व शांति मिलती है। कथाव्यास आचार्य योगेश चमोला ने गांव पहाड़ीपुर के हनुमान मंदिर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन उक्त बात कही।
कथा के पहले दिन धुंधकारी की कथा का संगीतमयी वर्णन हुआ
कथाव्यास पर विराजमान आचार्य योगेश चमोला ने कहा कि श्रीमद् भागवत की कथा धन्य है। इसे सुनने मात्र से धुंधकारी जैसे पापी को मुक्ति मिल गई। कलयुग में सभी साधनों के नष्ट हो जाने से मानव कल्याण के लिए ही शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को भागवत की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि तुंगभद्रा नदी के तट पर आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था। उसकी पत्नी का नाम धुंधुली था। इनके दो बेटे गोकर्ण और धुंधकारी दोनों गुरुकुल गए। गुरुकुल में धुंधकारी गलत संगत से प्रभावित हो गया। एक दिन उसने अपनी माता को मार डाला। पिता व्यथित होकर वन चले गए।
धुंधकारी दुराचार में लिप्त हो गया। एक दिन उन्हीं महिलाओं ने धुंधकारी को मार डाला। मरने के बाद धुंधकारी भूत-प्रेत बन गया। धुंधकारी का भाई अपने घर में सोया रहता था, तभी प्रेत धुंधकारी ने आवाज लगाई कि भाई मुझे इस योनि से छुड़ाओ। गौकर्ण त्रिकाल संध्या की पूजा करते थे। वह सूर्यनारायण भगवान से पूछते हैं कि इसके लिए क्या उपाय करना पड़ेगा। सूर्यनारायण ने कहा कि तुम सात गांठ बांस मंगाओ और भागवत का आयोजन करो। हर दिन बांस की गांठ धीरे-धीरे फट जाती है, जो सात दिन फटती है। तब भागवत कथा के प्रभाव से पवित्र होकर धुंधकारी एक दिव्य रूप धारण करके सामने खड़ा हो जाता है। इस तरह भागवत कथा के श्रवण से धुंधाकारी को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। इस दौरान जतिन अदलखा, नरेन्द्र कुमार, हरीश कुमार, प्रवीण कुमार, संदीप कुमार, पंकज व आदित्य मौजूद रहे।
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