Yamunanagar News : सद्भावना, एकता और भाईचारे का प्रतीक श्री कपाल मोचन-श्री आदि बद्री मेला 11 नवम्बर से 15 नवम्बर2024 तक

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Shri Kapal Mochan, a symbol of goodwill, unity and brotherhood

(Yamunanagar News) यमुनानगर। श्री कपाल मोचन-श्री आदि बद्री मेला 11 नवम्बर से 15 नवम्बर2024 तक हरियाणा की धरती आदि काल से ही ऋषि-मुनियों की साधना एवं तप स्थली रही है। महर्षि दुर्वासा, महर्षि जमदग्रि, महर्षि भृगु, महर्षि च्यवन, महार्षि उद्ïदालक, महर्षि पिप्पलाद, महामुनि मयंक्शाक, महामुनि कपिल एवं महर्षि कृष्णा द्वैपायन आदि के आश्रम इसी प्रदेश में थे।

वैदिक संस्कृति का उन्मेशस्थल ब्रहमवर्त (कुरूक्षेत्र) हरियाणा प्रदेश की दो देव नदियों सरस्वती एवं दृषद्ïवती के अन्तराल में ही स्थित था। ब्रहमवर्त में ही चैत्ररथ नाम का वह वन था, जिसका वर्णन महाभारत में भी मौजूद था। इसी के समीप सरस्वती के दूसरे किनारे पर औशनस नाम का सुप्रसिद्घ तीर्थ था। कपाल मोचन के नाम से प्रसिद्घ औशनस नामक इस तीर्थ में शुक्राचार्य ने तप किया था। शुक्राचार्य का नाम उशनस था। अत: यह स्थान उन्हीं की तपस्थली के नाम से अर्थात औशनस नाम से विख्यात हो गया। स्कन्ध महापुराण के अनुसार औशनस तीर्थ अर्थात कपाल मोचन द्वैतवन में स्थित था। द्वैतवन, जिसमें बद्री और सिंधु नाम के दो उपवन थे, पवित्र सरस्वती और यमुना नदी के मध्यवर्ती प्रदेश में स्थित था।

आदि काल में ब्रह्मा जी ने इसी द्वैतवन में यज्ञ किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं एवं ऋषि-मुनियों ने भाग लिया था। ब्रह्मï जी ने पदम काल में यज्ञ करवाने के लिए तीन हवन कुण्ड बनवाए थे, जो प्लक्ष, सोम सरोवर व ऋण मोचन के नाम से प्रसिद्घ हैं। यज्ञ के दौरान एक ब्राह्मïण का लडक़ा ऋषि-मुनियों की सेवा किया करता था। यज्ञ के पश्चात ब्रहमा जी ब्रहमलोक चले गए तथा ऋषियों-मुनियों ने भी अपने-अपने गंतव्य स्थान पर जाने की तैयारी कर ली। ऋषियों-मुनियों ने ब्राह्मïण के लडक़े से कहा कि उनके स्नान हेतु सरस्वती नदी से पवित्र जल ले आओ। लडक़े ने जल लाने में आना-कानी की जिसे ऋषियों-मुनियों ने भांप लिया।

ऋषियों-मुनियों के श्राप के डर से वह सरस्वती नदी से स्नान हेतु जल लेने चला गया तथा वह वहंा से काफी देर में लौटकर आया। तब तक ऋषियों-मुनियों ने अपने गन्तव्य स्थान पर जाने की तैयारी कर ली थी। उन्होंने वह जल उस ब्राह्मïण के लडक़े के ऊपर दे मारा। उसमें से कुछ जल यज्ञ हवन कुण्ड में गिर गया। देरी से आने के कारण ऋषियों-मुनियों ने ब्राह्मïण के लडक़े को श्राप दिया कि तूं कभी गाय के पेट से जन्म लेगा तथा कभी ब्राह्मïण के रूप में। लडक़े ने ऋषियों-मुनियों से पूछा कि हे मुनियों तब मेरा उद्धार कैसे होगा। ऋषियों-मुनियों ने कहा कि हवन कुण्ड में पड़ा जल ही तेरा सातवें जन्म में गाय के पेट से पैदा होने के बाद उद्धार करेगा। यज्ञ हवन कुण्ड में ऋषियों द्वारा फैंके गए जल में अमृत उत्पन्न हुआ और ऋषियों-मुनियों ने इसका नाम सोमसर रखा।

समय बीतता गया और द्वैतवन में ही वह लडक़ा कभी ब्राह्मïण के घर तथा कभी उस ब्राह्मïण की गाय के पेट से पैदा होता रहा। इसी दौरान कलयुग के प्रभाव के कारण ब्रह्मïा अपनी पुत्री सरस्वती के प्रति मन में बुरे विचार रखने लगा, जिससे बचने के लिए सरस्वती ने द्वैतवन में शंकर भगवान से शरण मांगी। सरस्वती की रक्षा के लिए शंकर भगवान ने ब्रह्मïा का सिर काट दिया, जिससे भगवान शंकर को ब्रहम हत्या का पाप लगा। इससे शंकर भगवान को ब्रहम कपाली का दोष लगा। सब तीर्थो में स्नान व दान इत्यादि करने से भी वह चिन्ह दूर नहीं हुआ। घूमते-घूमते शंकर भगवान पार्वती सहित सोमसर तालाब के निकट देव शर्मा नामक ब्राह्मïण के घर ठहरे।

शंकर भगवान तो समाधि में लीन हो गए, परन्तु माता पार्वती को उनके ऊपर लगे ब्रहम हत्या दोष की वजह से नींद नहीं आ रही थी। रात्रि के समय गाय का बछड़ा अपनी माता को कहता है कि * हे माता, सुबह यह ब्राह्मïण मुझे बधिया करेगा, उस समय मैं उसकी हत्या कर दूंगा । *गाय माता ने कहा कि *हे बेटा, ऐसा करने से तुझे ब्रह्महत्या का दोष लग जाएगा।* बछड़े ने कहा कि *माता मुझे ब्रह्महत्या के दोष से छुटकारा पाने का उपाय आता है*।

गाय और बछड़े की सारी बातें पार्वती माता ने ध्यानपूर्वक सुनी

सुबह होने पर ब्राह्मण ने बछड़े को बधिया करने का कार्य शुरू किया। इसी दौरान बछड़े ने उस ब्राह्मïण की हत्या कर दी, जिससे उसे ब्रहम हत्या का घोर पाप लगा तथा बछड़े व गाय का रंग काला पड़ गया। इससे गाय बहुत दुखी हुई। बछड़े ने माता को कहा कि हे माता आप जल्दी से मेरे पीछे-पीछे आओ। गाय और बछड़े ने सोमसर अर्थात औशनस तालाब में पश्चिम दिशा से प्रवेश किया तथा पूर्व दिशा में निकल गए तथा उनका रंग पुन: सफेद हो गया, केवल पांव कीचड़ में तथा सींग पानी से ऊपर रहने के कारण उनका रंग काला ही रह गया। इस सारे दृश्य को भगवान शंकर और माता पार्वती ने देखा।

माता पार्वती ने शंकर भगवान से कहा कि इस तालाब में स्नान करने से आपका ब्रहम-हत्या का दोष भी अवश्य ही दूर हो जाएगा। भगवान शंकर ने तालाब में स्नान किया, जिससे उनका ब्रह्म कपाली का दोष दूर हो गया। इसके उपरांत उन्होंने सरोवर के पूर्वी तट पर आकर गाय व बछड़े को दर्शन दिए। भगवान शंकर और पार्वती के दर्शन से उनका उद्धार हो गया और उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति हुई। सरोवर के पश्चिमी तट पर राम आश्रम घाट के नजदीक आज भी गाय और बछड़े की काले रंग की तथा पूर्वी तट पर प्राचीन मंदिर में गाय व बछड़े की सफेद रंग की प्रतिमाएं स्थापित है ।

इस प्रकार भगवान शंकर के ब्रहम हत्या के कपाली दोष से छुटकारा मिलने के कारण इस सोम सरोवर का नाम कपाल मोचन हो गया।
वर्तमान कपाल मोचन तीर्थ का नाम औशनस तीर्थ था, जिसका वर्णन महाभारत और वामन महापुराण में मौजूद है। इन महापुराणों के अनुसार भगवान श्रीराम चन्द्र जिस समय दण्डकारण्य में गए तो उन्होंने वहां के एक दुरात्मा राक्षस का सिर अपने तीव्र धार वाले वाण से काट दिया। वह राक्षस तो मर गया, किन्तु उसका कटा हुआ सिर दूर जाकर महोदर नाम के एक तपस्वी मुनि की जंघा से चिपक गया। इस कौतुक को देखकर

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