Yamunanagar News : प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में स्वयंभू प्रगट शिवलिंग स्वरूपेश्वर महादेव भक्तों ने करवाया रुद्राभिषेक

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प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में स्वयंभू प्रगट शिवलिंग स्वरूपेश्वर महादेव भक्तों ने करवाया रुद्राभिषेक
प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में स्वयंभू प्रगट शिवलिंग स्वरूपेश्वर महादेव भक्तों ने करवाया रुद्राभिषेक

(Yamunanagar News) यमुनानगर। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यमुनानगर के अमादलपुर स्थित प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में स्वयंभू प्रगट शिवलिंग स्वरूपेश्वर महादेव पर अनेक शिव भक्तों द्वारा‌ रुद्राभिषेक करवाया। अचार्य त्रिलोक महाराज शक्ति पीठाधीश्वर ने बताया महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर रखा गया पंचांग अनुसार, 26 फरवरी, 2025 को महाशिवरात्रि मनाई गई। इस शुभ दिन पर भक्त व्रत, रुद्राभिषेक और विशेष पूजा-अर्चना करके भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस बार महाशिवरात्रि पर बन रहा दुर्लभ शिव योग एवं सिद्ध योग

आचार्य त्रिलोक महाराज एवं पडित सुरेश जी ने बताया फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भद्रावास का संयोग बना है। इस योग में भगवान शिव एवं मां पार्वती की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। इसके अलावा, कई अन्य मंगलकारी योग बन रहे हैं।इस साल महाशिवरात्रि पर शिव योग और सिद्ध योग जैसे दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। ये योग भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इन संयोगों में की गई पूजा-अर्चना से भक्तों को शीघ्र ही फल की प्राप्ति होगी और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

उन्होंने बताया कि मंत्र जाप से लाभ: महाशिवरात्रि पर ‘ॐ नमः शिवाय‘ मंत्र का जाप करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भगवान शिव के इस पावन पर्व पर श्रद्धा और भक्ति भाव से आराधना करने से सभी भक्तों को शिव कृपा का वरदान प्राप्त होगा।

व्रत का महत्व: महाशिवरात्रि का व्रत रखने से सभी कष्टों का निवारण होता है और भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। कहा जाता है कि इस दिन श्रद्धा से व्रत करने और रात्रि में शिव की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इसके अलावा, एक कथा यह भी कहती है कि इस दिन भगवान शिव ने कालकूट विष का पान कर संसार की रक्षा की थी, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

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