(Yamunanagar News) साढौरा। श्री दुर्गा मंदिर में आयोजित 7 दिवसीय श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक कैलाश चंद्र शास्त्री ने राजा परीक्षित मोक्ष का संगीतमय विस्तार से वर्णन किया। कथावाचक कैलाश शास्त्री ने कहा कि हर प्राणी के लिए श्रीमद भागवत कथासर्वश्रेष्ठ है। समीक ऋषि से श्रापित होने के बाद राजा परीक्षित को भागवत कथा के सुनने से मुक्ति मिली थी।
भागवत कथा सुनने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। कथावाचक ने शुकदेव परीक्षित का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार राजा परीक्षित वनों मे काफी दूर चले गए। उनको प्यास लगी तो पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे और बोले ऋषिवर मुझे पानी पिला दो मुझे प्यास लगी है।
लेकिन उस समय समीक ऋषि समाधि में थे। इसलिए परीक्षित को पानी नही पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि समीक ऋषि ने उनका अपमान किया है। इसलिए मुझे भी इनका अपमान करना चाहिए। उसने पास से एक मृतक सर्प उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापिस लौटे आए।
उस समय समीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा परीक्षित ने क्या किया है। किंतु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा।
इस प्रकार विचार करके उस ऋषि कुमार ने कमंडल से अपनी अंजुल में जल लेकर तथा उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है।
समीक ऋषि ने जब यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी तो वह अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंप कर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां बड़े ऋषि, मुनि, देवता आ पहुंचे और अंत में व्यास नंदन शुकदेव वहां पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़़े होकर उनका स्वागत किया। इस कथा को सुनकर सभी उपस्थित श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर खुशी से झूम उठे।