(Yamunanagar News) यमुनानगर। यमुनानगर में दशहरा पर्व की तैयारियां पूरी हो चुकी है। रावण का 70 फीट का पुतला बनाया गया। जबकि मेघनाथ और कुंभकरण के 65 व 65 फीट के पुतले बनाए गए हैं। जिसका दशहरा पर्व पर दहन किया जाएगा। इसको लेकर माडल टाउन के दशहरा ग्रांउड में रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के पूतले लगाए गए है। इन्हें देखने के लिये लोग आ रहे है। आज अधर्म पर धर्म की जीत होगी। शाम को श्री राम की सेना दशहरा ग्रांउड में आएगी और युद्ध के बाद रावण का वध कर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पूतले दहन किये जाएगें।
सनातन धर्म मंदिर में पिछले 40 वर्षों से महेंद्र मनचंदा और उनके सहयोगी इन पुतलों को बनाने का काम करते आ रहे हैं। महेंद्र मनचंदा ने बताया कि तीन पुतलों को बनाने के लिए करीब 3 लाख 40 हजार का खर्चा आता है। इसके लिए एक महीने 6 दिन का समय लगता है। इस कार्य में चार लोग उनके साथ काम करते हैं। हर साल रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाते है। मनचंदा परिवार के पूर्वज पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में विजयदशमी के मौके पर पुतले बनाने का कार्य करते थे। इसी परिवार से मॉडल कॉलोनी निवासी महेंद्र कुमार मनचंदा ने बताया कि वह 40 वर्षों रावण का पुतला बनाते आ रहे हैं।
उनके चाचा विश्वनाथ पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में पुतले बनाने का ही कार्य करते थे। उनको यह कला विरासत में मिली। अब वे स्वयं, उनके बेटे पंकज मनचंदा और भतीजा इस कला बरकरार रखने का प्रयास कर रहे हैं। यह उनकी तीसरी पीढ़ी है, जो लगातार विजयदशमी के अवसर पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बना रही है। महेंद्र कुमार मनचंदा ने बताया कि वर्ष-2006 में विजयदशमी पर विदेशी पर्यटक भी उनकी इस कलाकृति को देखने के लिए आए थे। तब विदेशी पर्यटकों ने उनकी कला को सराहा और पुतलों को बनाने की विधि को जाना।
आज भी उनको हर वर्ष आसपास के जिलों से सहित दूसरे प्रदेशों से भी पुतले बनाने की पेशकश आती है, लेकिन वे भारी-भरकम पेशकश से समझौता कभी नहीं करेंगे। उनकी केवल यही ख्वाहिश है कि इस कला को जीवित रख अगली पीढ़ी को इसे सुरक्षित सौंप दिया जाए।
उन्होंने कहा कि पुतले बनाने के लिए सुतली की रस्सी, कागज व लंबे लंबे बांस का उपयोग करते हैं। इसके लिए तेज गति से बजाने वाले पटाखे भी प्रयोग किए जाते हैं। 1 महीने 6 दिन के बीच यह पुतले बनाकर पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं। दशहरा पर्व पर बड़े आदर और सम्मान के साथ इन दशहरा ग्राउंड में खड़ा किया जाता है। दशहरे के दिन पूजा करके राम रावण युद्ध के बाद इन्हें आग के हवाले कर दिया जाता है।
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