Yagyopaveet (Janeu) Shravani Upakarma : यमुना नदी में कई घंटे खडे होकर किया गया यज्ञोपवीत (जनेऊ) श्रावणी उपाकर्म

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Yagyopaveet (Janeu) Shravani Upakarma
नन्हेडा गांव के मन्दिर में यज्ञोपवीत (जनेऊ) श्रावणी उपाकर्म पर विशेष पूजा अर्चना करते ब्राहमण।

Aaj Samaj (आज समाज), Yagyopaveet (Janeu) Shravani Upakarma, पानीपत : नन्हेड़ा गांव में यमुना नदी के घाट पर श्रावणी पूर्णिमा को कई घंटे यमुना नदी में खडे रहकर विशेष पूजा अर्चना की गई और यज्ञोपवीत (जनेऊ) की भी पूजा अर्चना कर बदला गया। इस दौरान सुशील शास्त्री अहर व भारत शास्त्री ने बताया कि वैसे तो हर महीने की पूर्णिमा खास होती है और अधिकतर पर महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। लेकिन सावन पूर्णिमा इन सबमें विशेष है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, इसी के साथ इस श्रावणी पूर्णिमा पर जनेऊ बदला जाता है। इस मौके पर पालेराम,भगतराम, संदीप, बलबीर आदि अनेक मौजूद थे।

क्या है यज्ञोपवीत (जनेऊ)

सुशील शास्त्री अहर व भारत शास्त्री ने बताया कि सूत से बने जनेऊ के धागे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण या फिर सत्व, रज और तम के साथ तीन आश्रमों का भी प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में इसके बगैर विवाह का संस्कार नहीं होता है।

 

 

 

Yagyopaveet (Janeu) Shravani Upakarma
यमुना नदी में खड़े होकर यज्ञोपवीत (जनेऊ) श्रावणी उपाकर्म करते ब्राहमण।

क्यों बदला जाता है जनेऊ

भगतराम  शास्त्री ने पूजा अर्चना करते हुए बताया कि हर व्यक्ति के कंधे पर मुख्य रूप से तीन जिम्मेदारी या ऋण होता है, माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी, समाज के प्रति जिम्मेदारी और ज्ञान के प्रति जिम्मेदारी। यज्ञोपवीत (जनेऊ) हमें माता-पिता, समाज और गुरु के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। इसीलिए सूत के बने जनेऊ को तीन बार लपेटकर धारण करते हैं। जो हमें शरीर शुद्धि, मन शुद्धि और अपनी वाणी शुद्धि की ओर प्रेरित करता है। इसी जनेऊ को सावन पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र में संकल्प के साथ बदला जाता (श्रावणी उपाकर्म ) है। मान्यता है कि विशेष पूजा कर जनेऊ बदलने से साल भर में जाने अनजाने हुए पाप का प्रायश्चित होता है। जनेऊ बदलते समय यह प्रार्थना की जाती है कि मुझे शक्ति प्रदान हो कि मैं जो भी कर्म करूं वे कुशल और श्रुत हों। मैं जो भी काम करूं, जिम्मेदारी से करूं। ऐसा करने से सभी लक्ष्य पूरे होते हैं। इस दिन नए जनेऊ के साथ नया संकल्प लिया जाता है। पुराने दिनों में महिलाओं को भी ये धागा पहनना होता था। ये केवल एक जाति या किसी और जाति तक ही सीमित नहीं था। इसे हर व्यक्ति पहनता था।

क्या है श्रावणी उपाकर्म की परंपरा

धर्म ग्रंथों के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा पर नदी के तट पर पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र और पवित्र कुशा) से स्नान करना चाहिए। इसके बाद ऋषि पूजन, सूर्योपस्थान और यज्ञोपवीत पूजन करने के बाद नया यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करना चाहिए। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसके बाद यज्ञ किया जाता है, जिसमें ऋग्वेद के विशेष मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। प्राचीन काल में इस प्रक्रिया के बाद ही नए बटुकों की शिक्षा आरंभ की जाती थी। आज भी गुरुकुलों में इस परंपरा का पालन किया जाता है।

जनेऊ पहनने के फायदे

1. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जनेऊ पहनने से बुरे सपने नहीं आते।
2. जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई के नियमों से बंधा रहता है। मान्यता है कि पवित्रता बनाए रखने के लिए इसे कान में लपेटते हैं तो दिमाग की नसें एक्टिव हो जाती हैं। याददाश्त तेज होती है।
3. इससे पहनने से व्यक्ति के पास बुरी शक्तियां नहीं आती और व्यक्ति का मन बुरे काम में नहीं लगता।

 

 

 

 

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