मनोज वर्मा, कैथल:
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की दीवारों पर जाति विशेष के खिलाफ नारे लिखना बेहद निंदनीय है। इस प्रकार की तुच्छ हरकत संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है। 21 वीं सदी में भी इस प्रकार की प्रवृत्ति के लोग हमारे बीच हैं। ये हम सोच नहीं सकते। लेकिन दीवारों पर जातिवादी नारे लिखना दर्शाता है कि हमारे समाज में अभी भी घटिया व ओच्छी सोच के लोग रह रहे हैं।
ब्राह्मण समाज के लिए पूजनीय माने जाते हैं
जो समाज के लिए एक कलंक हैं। ये बात अग्रवाल वैश्य समाज जिला कार्यकारिणी की एक मीटिंग मे प्रेस को जारी बयान में जिलाध्यक्ष सुशील बिन्दलिश ने कही। सुशील बिन्दलिश ने कहा कि जेएनयू की दीवारों पर ब्राह्मण व बनिया विरोधी नारे लिखे गए हैं। जो बेहद निंदनीय व असहनीय हरकत है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण को हमारे समाज में विशेष सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। दशकों पहले से ब्राह्मण समाज के लिए पूजनीय माने जाते हैं लेकिन समाज से जातिवादी प्रथा समाप्त होने के बाद सब बराबर समझे जाते हैं। इतिहास में भी इस बात का वर्णन मिलेगा की ब्राह्मणों ने समाज को शिक्षित कर संस्कारित करने का काम किया है। वहीं वैश्य समाज को भी देश की आर्थिक रीढ़ का कार्य करता है। अधिकतर उद्योगपति व्यापारी वैश्य समाज से ही आते है।
वैश्य समाज द्वारा अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक संस्थान बनवाए गए है जो लोगों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनमें धार्मिक प्रवृत्ति को भी विकसित करते हैं। शिक्षा और अध्यात्म के समागम से ज्यादा परिवार, समाज, देश हित के लिए और कुछ सार्थक सिद्ध नहीं हो सकता। लेकिन मानसिक संकिर्णता वाले चंद लोग समाज व देश को तोडऩे का काम करते हैं। जो जातिवाद, धर्म, भाषा आदि के नाम पर लोगों को भडक़ाने का कार्य करते हैं। सुशील बिन्दलिश ने कहा कि जेएनयू की दीवारों पर जाति विरोधी नारे लिखने वाले लोग भी इसी श्रेणी के है। जो समाज व देश को बांटना चाहते हैं। लेकिन समाज ऐसे लोगों की हरकतों को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा और उन्हें सबक सिखाएगा।
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