रोहतक, 18 अप्रैल:
World Liver Day Will Be Celebrated On 19th April: हर वर्ष 19 अप्रैल को विश्व लीवर दिवस मनाया जाता है, जिसका लक्ष्य आम जनता में लिवर से संबंधित बिमारियों व कारणों के बारे में जागरूक करना है। लीवर को नुकसान पहुंचाने के मुख्य तीन कारण हैं- शराब, मोटापा व काला पीलिया (हैपेटाइटिस बी व सी)। यह आंकड़ा हरियाणा के हिसाब से भी पूर्णत ठीक बैठता है।
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सभी टेस्ट तथा दवाईयां सरकारी मेडिकल कलोजों में निशुल्क प्रदान की जाएगी (World Liver Day Will Be Celebrated On 19th April)
हरियाणा सरकार ने काले पीलिये के खिलाफ काफी लम्बे समय से मुहिम छेड़ रखी है, जिसके तहत इसके सभी टेस्ट तथा दवाईयां हर जिले के सरकारी अस्पताल, पीजीआईएमएस रोहतक एवं अन्य सरकारी मेडिकल कलोजों में निशुल्क प्रदान की जा रही है। यह कहना है पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के गैस्ट्रोएंट्रोलोजी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण मल्होत्रा का। वें आमजन को विश्व पीलिया दिवस की पूर्व संध्या पर संबोधित कर रहे थे।
आमजन को जागरूक करते हुए डॉ. प्रवीण मल्होत्रा (World Liver Day)
आमजन को जागरूक करते हुए डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने बताया कि हरियाणा सरकार का विशेष ध्यान काले पीलिये से पीडि़त गर्भवती महिलाओं पर है। इसके तहत हरियाणा में गर्भवती महिलाओं का हैपेटाइटिस टेस्ट किया जाता है और अगर किसी महिला में हैपेटाइटिस बी मिलता है और किटाणु की मात्रा ज्यादा मिलती है तो उसको गर्भावस्था में सातवें महीने से काले पीलिये की दवाई शुरू कर दी जाती है। ऐसी माताओं के नवजात शिशु के पैदा होने के 24 घंटे के अंदर हैपेटाइटिस बी इम्यूनोग्लोबिन एवं वैक्सीन का टीका लगाया जाता है और उसके उपरांत वैक्सिन का पूरा कोर्स दिया जाता है। यह सब मां से बच्चे में वायरस ना चला जाए उसके बचाव के लिए किया जाता है। जिन गर्भवती महिलाओं में वायरस की मात्रा अधिक पाई जाती है, उनमें यह 70 प्रतिशत तक नवजात में जा सकता है और जिनमें कम होती है उनमें 3 से 43 प्रतिशत तक भी समानता होती है। उन्होंने बताया कि एक बार यह वायरस नवजात में आता है तो 90 प्रतिशत मे पूरी उम्र रहता है।
लिवर से संबंधित बिमारियों के बारे में जागरूक (World Liver Day)
डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने बताया कि पीजीआईएमएस के गैस्ट्रोएंट्र्रोलोजी विभाग जोकि मॉडल ट्रीटमेंट सेंटर भी है, उसमें कुलपति डॉ. अनिता सक्सेना व निदेशक डॉ. एस.एस. लोहचब के दिशा-निर्देशन में प्रसूति विभाग व माईक्रोबॉयोलोजी विभाग के साथ मिलकर हैपेटाइटिस बी से ग्रस्ति करीब 400 गर्भवती महिलाओं में रिसर्च की है। डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि रिसर्च में पाया गया कि 50 महिलाओं के अंदर किटाणु की मात्रा ज्यादा होने के चलते उन्हें सातवें माह की गर्भावस्था से हैपेटाइटिस बी की दवाईयां शुरू कर नवजात शिशु को पैदा होते ही इम्यूनो ग्लोबिन एवं वैक्सिन का पूरा कोर्स करवाया गया। मां से बच्चे में हैपेटाइटिस बी के जाने की पुष्टि तब की जाती है, अगर बच्चे के एक वर्र्ष के होने पर उसमें हैपेटाइटिस बी पाया जाए। अब तक 100 बच्चे एक वर्ष के हो गए हैं और किसी में भी हैपेटाइटिस वायरस नहीं पाया गया।
इस रिसर्च के शुरूआती निष्कर्ष उत्साहजनक (World Liver Day)
डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि इस रिसर्च में ज्यादातर गर्भवती महिलाएं 20 से 30 वर्ष की हैं जो ग्रामीण इलाके से हैं। इनमें से ज्यादातर की प्रसूति सरकारी अस्पताल में हुई है और हैपेटाइटिस बी व काले पीलिये की दवा का दुष्प्रभाव ना तो मां अथवा बच्चे में देखा गया है। वहीं 80 प्रतिशत महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी हुई और 20 प्रतिशत की सिजेरियन जोकि काले पीलिये रहित महिलाओं के मुकाबले समानांतर है। उन्होंने बताया कि मानकों के तहत हर मां ने अपने नवजात को लगभग छह माह तक स्तनपान करवाया है। अत: रिसर्च यह साबित करती है कि हैपेटाइटिस बी से ग्रस्ति महिलाओं की नवजात को स्तनपान करने की प्रथा बिल्कुल ठीक है व सुरक्षित है तथा सिर्फ काले पीलिये की वजह से सिजेरियन डिलीवरी करवाने का कोई औचित्य नहीं है। डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने बताया कि इस रिसर्च के शुरूआती निष्कर्ष उत्साहजनक हैं और हैपेटाइटिस बी को काबू करने में काफी लाभदायक साबित हो सकते हैं क्योंकि 50 प्रतिशत में हैपेटाइटिस बी का कारण मां से बच्चे में वायरस जाना होता है।
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