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World, India and Mohandas Karamchand Gandhi: विश्व, भारत और मोहनदास करमचंद गांधी

2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में जन्में मोहनदास करमचंद गांधी जब राजकोट और लंडन से शिक्षा पूर्णकरने के बाद मई 1893 में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे तब उन्होंने भारतियों के साथ हो रहे अत्याचार को देखा। यहीं विश्व प्रसिद्ध ह्लसत्याग्रहह्व के विचार का जन्म हुआ।भारतियों को हक दिलाने का यह आंदोलन सितंबर 1906 से चालू हुआ। 8 सालों के कड़े आंदोलन और गांधी की लंबी गिरफ्तारियों से आखिरकार दक्षिण अफ्रीकी सरकार और अफ्रीका के प्रमुख राजनीतिज्ञ और प्रधानमंत्री रहे जेन स्मट्स को झुकना ही पड़ा। जनवरी 1914 में आए ह्लइंडियन रिलीफ बिलह्वने सभी शरीयत और हिन्दू विवाहों को वैध मान लिया, भारतियों पर लगने वाले तीन पाउंड के दंडात्मककर को भी समाप्त कर दिया गया।

स्मट्स के मन में गांधी का खौफ इतना था कि जब 18 जुलाई 1914 को गांधी डरबन से निकले तो स्मट्स ने कहा कि ह्लसंत ने हमारे तटों को छोड़ दिया है, मुझे पूरी आशा है कि हमेशा के लिए।ह्व स्मट्स का गांधी को लेकर यह डर सालों बाद भी कम नहीं हुआ। 7 अगस्त 1942 को जब स्मट्स ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टनचर्चिलके साथ डिनर कर रहे थे, उस वक्त ह्लभारत-छोड़ोह्व आंदोलन के आह्वानने सुर्खियां बटोर रखी थीं, स्मट्स ने चर्चिल से कहा कि वह कभी भी गांधी को कम न समझें,उन्होंने कहा, “गांधी भगवान के आदमी हैं। आप और मैं सांसारिक लोग हैं। गांधी ने धार्मिक उद्देश्यों के लिए अपील की है। आपने ऐसा कभी नहीं किया। यहीं आप असफल हुए।”

गांधी 1915 में वापस भारत आ गए और गोपाल-कृष्ण गोखले के कहे अनुसार साल भर पूरे भारत की यात्रा की। गांधी हमेशा तृतीय श्रेणी में यात्रा किया करते थे। भारत में गांधी की पहली बड़ी सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी 1916 में बीएचयू के उद्घाटन के समय हुई।उस वक्त के कांग्रेसी नेताओं के बंद गले के भारतीय परिधान या पश्चिमी पोशाक और रहन-सहन के उलट गांधी की धोती और साधारण रहन-सहन भारतीय बहुतायत का प्रतीक बन गया।

1917 में शुरू हुआ भारत का पहला चंपारण ह्लसत्याग्रहह्व। इसके बाद ह्लरोलेट-सत्याग्रहह्व ने गांधी को राष्ट्रवादियों का नायक बना दिया।ह्लअसहयोग-आंदोलनह्व की मांग के चलते छात्रों ने सरकारी विश्वविद्यालयों का, वकीलों ने कोर्ट का और श्रमिक-वर्ग ने हड़ताल कर ब्रिटिश हुकूमत का बहिष्कार किया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1921 में 396 हड़तालें हुईं जिसमें 6 लाख से भी ज्यादा कामगारों ने हिस्सा लिया और लगबघ 70 लाख कार्य दिवसों का नुक्सान हुआ। 1857 के बाद पहली बार ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिलीं थीं। इसके बाद 1930 में हुए ह्लदांडी-मार्चह्व जिसमें गांधी समेत तकरीबन 60000 गिरफ्तारियां हुईं, उसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और गांधी को पश्चिमी प्रेस में पहली बार विस्तार से जगह दिलाई और ब्रिटिश-साम्राज्य का भारत पर लम्बे समय तक राज करने का सपना ध्वस्त हो गया।

इसके बाद लंडन में ह्लगोल-मेज सम्मेलनोंह्व की श्रंखला हुई और ह्लभारत-सरकार अधिनियम(1935)ह्व ने भारतियों कि सत्ता पर हिस्सेदारी बढ़ा दी। 1937 तक 11 में से 8 प्रान्तों पर ब्रिटिश गवर्नर के अंदर भारतियों का कब्जा था। लेकिन गांधी इतने से नहीं माने, उन्होंने 1929 के आखिरी दिनों में हुए कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में ह्लपूर्ण-स्वराजह्व का प्रस्ताव पारित करा दिया था और तबसे हर साल राष्ट्रवादी 26 जनवरी को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते आ रहे थे।गांधी इस लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध रहे।

कितने लोग ही ये जानते होंगे कि 6 दिसम्बर 1946 वाला लंडन घोषणापत्र गांधी को अप्रैल 1947 तक नही दिखाया गया था।गांधी बटवारे से इतना आहत थे कि उन्होंने 15 अगस्त दिल्ली से दूर कलकत्ता में उपवास कर मनाया था।एक बार माउंटबैटन से बात करते वक्त बटवारे के ख्याल से ही गांधी की आंखों में आंसू आ गए थे। कितने लोग यह जानते होंगे कि देश को बटवारे से बचाने के लिए आखिरी प्रयास भी  गांधी ने ही किया था। कितनोंको पता होगा कि माउंटबैटन ने गांधी के लिए कहा था कि पंजाब में 5000 लोगों कि सेना होने के बावजूद हम दंगों को नहीं रोक पा रहे हैं और नोआखली में तो एक आदमी (गांधी) ने ही शांति कायम करवा ली है।

1932 में पिछड़ों को हिन्दुओं से हमेशा के लिए अलग करने वाले अलग निर्वाचक मंडलके प्रस्ताव को गांधी के पूना जेल में आमरण अंशन कर बर्खास्त करा दिया। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत में ही गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गांधी का यह आखिरी प्रहार भी उतना ही तीव्र था। लोग कहेंगे अहिंसक आंदोलन से हमें क्या मिला? मैं कहूंगा दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र। सवाल यह भी हो सकता है कि अन्य एशियाई देश जैसे चीन के जापान के खिलाफ संघर्ष में माओ ज़ेडोंग और चियांग-के-शेक और वियतनाम के हो-ची-मिंह का फ्रांस के खिलाफ जैसा खूनी संघर्ष क्यों हमारे देश का विकल्प नहीं था। जवाब सरल है कि उन देशों में हिंसक वामपंथ आंदोलन से गृह-युद्धों का सिलसिला आम हो गया। यह सवाल शायद आज हम पूछ भी नहीं पाते यदि गांधी भी माओ कि तरह ही कोई ह्लरेड-फ़ोर्सह्व बना लेते। आज हम अपने ही महानायकों का सम्मान करना भूल गएहैं। शायद यह अत्यधिक आजादी मिलने का ही नतीजा है।

30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या कर दी गई, लेकिन गांधी विश्व भर में अमर हो गए।गांधी के निधन पर शायद सबसे यादगार श्रधांजली जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की तरफ से आई थी जिन्होंने कहा था कि ह्लगांधी कि हत्या बताती है कि अच्छा होना कितना खतरनाक भी हो सकता है।ह्व कुलदीप नय्यर कहते हैं कि उस दिन मानों ऐसा लगा कि कोई हाथ सर से उठ गया हो। अपने ह्लसबसे बड़ेह्व महानायक कि अंतिम यात्रा में मानों समस्त मानव-जाती सड़कों पर उतर आई हो। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मानो देश को एक नई उर्जा प्रदान कर गए हों।

जय हिंद

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