Willingness to show with digital strike: डिजिटल स्ट्राइक के साथ इच्छाशक्ति दिखाने की जरूरत

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चीन के ढेर सारे ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना। चीनी सामानों का बहिष्कार करना और लद्दाख से लेकर लालकिले तक बिना नाम लिए चीन को ललकारना, लगता है इनमें से कोई भी हथियार चीन को डरा नहीं पा रहा है। मई से गलवान घाटी में चीन भारत को चुनौती देता आ रहा है। यह एक खुला रहस्य है कि चीन के सैनिक हमारी जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर चुके हैं।

सेना ने कहा है कि चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए ने पैंगोंग त्सो लेक में सीमा पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की लेकिन सतर्क भारतीय सैनिकों ने ऐसा नहीं होने दिया। हालांकि चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि चीन की सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा का सख्ती से पालन करती है और चीन की सेना ने कभी भी इस रेखा को पार नहीं किया है।

दोनों देशों की सेना इस मु्द्दे पर संपर्क में हैं। गौरतलब है कि चीन के सैन्य अधिकारियों से भारतीय सैन्य अधिकारियों की बातचीत लगातार चल रही है। हर बार यही कहा जाता है कि बातचीत से समस्या का समाधान ढूंढा जा रहा है। लेकिन समस्या क्या है, इस बारे में मोदी सरकार खुलकर बोलने तैयार ही नहीं है। चीन ने हमारी कितनी जमीन हथिया ली है। उसके सैनिक कहां तक घुस आए थे और अब कितना पीछे हटे हैं। सरकार चीन की इस हिमाकत पर उसका नाम लेकर उसे ललकारने से क्यों कतरा रही है।

लेकिन फिर भी भारत सरकार, हमारे प्रधानमंत्री यही दावा कर रहे हैं कि कोई हमारी ओर आंख उठाकर देख नहीं सकता। जो ऐसा करने की हिमाकत करेगा, उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। इधर राष्ट्रवादी ऐसे दावों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे हैं, उधर चीन इन दावों की बखिया उधेड़ रहा है। गलवान घाटी में 15 जून को दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी और इसमें 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी। अब एक बार फिर बताया गया है कि 29-30 अगस्त को चीन के सैनिकों की घुसपैठ की कोशिशों को भारत की सेना ने नाकाम किया।

सीमा पर दोनों तरफ से सैनिकों की तैनाती भी अप्रत्याशित है। उनका यह भी कहना था कि अगर हम पिछले तीन दशकों से देखें तो विवादों का निपटारा राजनयिक संवाद के जरिए ही हुआ है और हम अब भी यही कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इससे पहले भारत के चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) और पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि चीन के साथ अगर बातचीत से चीजों नहीं सुलझती हैं तो सैन्य विकल्प भी मौजूद है। एक ही सरकार के इन अलग-अलग बयानों को सुनें तो समझ में आता है कि सरकार खुद चीन से मुकाबले को लेकर कितनी उलझन में है। और इस उलझन का खामियाजा देश भुगत रहा है। देश में पहले ही बीमारी से लेकर अर्थव्यवस्था तक का डर लोगों को परेशान किए हुए है और अब सीमा पर बढ़ता तनाव इस डर में इजाफा कर रहा है।

आर्थिक बहिष्कार जैसे पैंतरे सचमुच असरकारी हैं या ये असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है। चीन के साथ संबंधों में इस तरह का तनाव कब और कैसे बना। प्रधानमंत्री मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दोस्ती के जो दावे करते थे, वे अब कमजोर क्यों पड़ गए। क्या वो दोस्ती निजी तौर पर है या मोदीजी ने भारत का प्रधानमंत्री होने के नाते उनसे दोस्ती की। इस समस्या का हल निकालने के लिए प्रधानमंत्री मोदी क्या उच्च स्तर की वार्ता शी जिनपिंग से करेंगे ताकि हमारी सीमाएं सुरक्षित रहें और हमारे सैनिक भी सुरक्षित रहें। बेशक वे पूरी मुस्तैदी और जांबाजी से देश की रक्षा में जुटे हैं और वक्त आने पर कुबार्नी देने से भी पीछे नहीं हटते, लेकिन क्या उन्हें राजनैतिक अकर्मण्यता और अवसरवाद की भेंट चढ़ने देना उचित है।

भारतीय सेना ने 29-30 अगस्त के बारे में जो बयान जारी किया है, उससे पता चलता है कि चीन के सैनिक अपनी हदें पार करने की कोशिश में लगे हुए हैं। जल्द ही ठंड का मौसम शुरू हो जाएगा और तब इस ठंडे प्रदेश में किन परिस्थितियों में सैनिकों को तैनात होना पड़ेगा, इस बारे में सरकार को सोचना चाहिए। आधुनिक हथियारों और बड़बोलेपन से मुकाबला नहीं जीता जा सकता, उसके लिए हौसले और राजनैतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। हौसला हमारे सैनिकों के पास है अब इच्छाशक्ति दिखाने की बारी सरकार की है।