Will write a new story of progress in Kashmir: कश्मीर में लिखेंगे तरक्की की नई इबारत

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मुझे ढाई वर्ष पूर्व की अपनी इंडोनेशिया यात्रा याद आ गयी। इस यात्रा का जिक्र इसलिये करना पड़ रहा क्योंकि विपक्ष आज हर मामले में देश की एकता अखंडता को लेकर सवाल उठाता रहता है। नागरिकता कानून हो या कश्मीर से 370 को हटाने का। विपक्ष हो हल्ला मचाने से बाज नहीं आ रहा है। जबकि इसके उलट हमारे इन फैसलों को सराहा जा रहा है। दुनिया हमारी एकता को सराहा थी। इंडोनेशिया यात्रा पर मेरे व्याख्यान के पश्चात एक एक छात्रा ने पूछा था कि आपसी वैमनस्य, आतंक से ग्रस्त नित-प्रतिदिन बदलते वैश्विक परिवेश में दुनिया की दूसरी बड़ी मुस्लिम आबादी और अन्य धर्मो की विविधता के साथ भारत के लोग आपस में कैसे सामंजस्य बैठा पाते हैं? मैंने बड़ी सहजता से उत्तर दिया था कि इसके लिए हमें कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। युग युगांतर से चली आ रही हमारी अजर, अमर भारतीय संस्कृति हमें एकता, समरसता, सहयोग, भाईचारा, सत्य, अहिंसा, त्याग, विनम्रता, समानता आदि जैसे मूल्यों में आबद्ध कर हमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से आगे बढने के लिए प्रेरित करती है। सदियों से ऐसा होता आया है। आज भी हो रहा है। मैंने उन्हें बताया की किस प्रकार सवा सौ करोड़ की जनसंख्या के साथ भारत एक देश नहीं बल्कि पूरा उपमहाद्वीप है, जिसके विभिन्न भागों में अलग-अलग रीति रिवाज और अलग-अलग परंपराएं हैं।
विविधता के जितने दर्शन भारत में होते हैं उतना शायद ही विश्व के किसी अन्य क्षेत्र में होते होंगे। यहां हर 50 मील पर हमारी बोली बदल जाती है, कुछ 200 मील दूर जाने पर हमारे परिधान बदल जाते हैं, हमारी भाषाएं बदल जाती है और 1000 मील दूर जाने पर पूरी जीवन शैली की पृथक नजर आती है पर इन सब के बावजूद हम सदियों से एकता के सूत्र में समावेशित हैं। मैंने बताया कि किस प्रकार अलग-अलग धर्मों के अनुयायी होते हुए हम सर्वप्रथम भारतीय होने पर गौरवान्वित होते हैं। पिछले दिनों जब कश्मीर से लौटा तो मेरी यह धारणा ओर मजबूत हुई। मैं पूरी शिद्दत से यह महसूस करता हूं कि मेरी धारणा बिलकुल सही थी। कश्मीर के विद्यार्थियों, अध्यापकों, प्रतिनिधिमंडलों, जन सामान्य से मिलकर एक बात साफ हुई कि घाटी में सब अमन चैन चाहते हैं। सब अपने बच्चों का बेहतर भविष्य चाहते हैं। संगीनों के साए में भय के वातावरण में कोई नहीं रहना चाहता। लोग खुशहाल भविष्य, खुशहाल कश्मीर चाहते हैं। कश्मीर की सहिष्णुता और बहुलतावाद सोच से साक्षात्कार श्रीनगर में हो जाता है। एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में सैकड़ों वर्ष पुराने डल झील के समीप समुद्र तल से 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव को समर्पित प्राचीन शंकराचार्य मंदिर के दर्शन होते हैं। प्रधानमंत्री की विकासात्मक दूरदृष्टि में कश्मीर के उज्जवल भविष्य का प्रतिबिम्ब दिखता है।
सरकार ने समग्र विकास की बात की है ताकि जम्मू कश्मीर में रहने वाले डोगरा, कश्मीरी पंडित, लद्दाख के लोग, सिख और ईसाइयों के साथ ही सुन्नी, शिया, गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ी जैसे विभिन्न कश्मीरी मुस्लिम समुदायों के रूप में मौजूद कश्मीरी जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप जम्मू कश्मीर का निर्माण हो सके। मेरा सदैव से यह मानना रहा है कि समूचा हिमालय क्षेत्र अद्भुत मानव संसाधन के अतिरिक्त विविध प्रकार के संसाधनों से युक्त है। यहां के लोग अकलुषित होते हैं। अगर सही नियोजन और समर्पित प्रयास किये जाए तो विकास की अवधारणा को धरातल पर आसानी से उतारा जा सकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की मूलभूत समस्याओं का समाधान ढूंढ लिया जाये तो घाटी में शांति के साथ समृद्धि लौट सकती है। सामाजिक आर्थिक परिवर्तन ही घाटी में नए युग का सूत्रपात कर सकता है। अनुच्छेद 370 से जम्मू कश्मीर को नाममात्र की स्वायत्तता हासिल थी, लेकिन इसे निरस्त कर दिया गया ताकि इलाके में विकास को बढ़ावा देने के साथ आतंकवादी गतिविधियों को रोका जा सके। दरअसल, मौजूदा केंद्र सरकार को यह लगा कि बीते सात दशकों से कश्मीर में कहीं भी विकास नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जिस तरह संपूर्ण देश को एकत्रित कर इस अनुछेद को निरस्त करने का महत्वपूर्ण कार्य किया उसने पूरा विश्व में भारत की कीर्ति पताका को ऊंचा किया है।
कश्मीर को कुछ स्वार्थी तत्वों ने न केवल बदनाम किया बल्कि उसे बर्बाद भी किया। इन राष्ट्र विरोधी ताकतों ने भोले भाले कश्मीरी युवाओं को भ्रमित कर अराजकता और हिंसा के माहौल में धकेलकर संपूर्ण क्षेत्र का विकास बाधित किया है। आज कश्मीर मै शांति और सद्भावना का एक ऐसा वातावरण सृजित करने का ईमानदार प्रयास है जिससे नए जम्मू कश्मीर के निर्माण की परिकल्पना को साकार किया जा सके। पिछले हफ्ते मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा स्कूल कॉलेज और विश्वविद्यालयों के 45 प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया, जिसमें स्कूली 2 दिन की शिक्षक प्रशिक्षण निष्ठा कार्यक्रम के अलावा शेक्षिक उन्नयन के कई अन्य प्रोजेक्ट शामिल हैं। भारतीय प्रबंधन संस्थान जम्मू के श्रीनगर परिसर का उद्घाटन किया गया। 15 मार्च 2020 तक इस अस्थायी परिसर को पूरी तरह से चालू करने के लिए 51 करोड़ रुपये मंजूर किए गए। मैंने आह्वान किया कि अंतरविषयी शोध को बढावा देते हुए हिमालयी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिको को समग्र रूप से हिमालय की चुन्नौतियों पर शोध करने की आवश्यकता है। कला, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान, पर्यावरण विज्ञान और हिमालयी, बागवानी कृषि और वनस्पतियां, हरित प्रौद्योगिकियां, भूविज्ञान, आपदा नियोजन और न्यूनीकरण, अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स आई टी और जैव प्रौद्योगिकी में सब मिलकर काम कर सकते हंै। नवाचार शोध सम्मेलनों के माध्यम से हम प्रदेश में शोध की नयी संस्कृति विकास किया जाना आवश्यकता है।
हिमालय का विकास प्रधानमंत्री की के दिल के करीब रहा है जो कि समय समय पर उनके कार्यों और बयां से परिलक्षित होता है। प्रधानमंत्री जी की अगुवाई में पूरी सरकार जम्मू और कश्मीर अब शांति, खुशहाली और विकास की ओर अग्रसर है। बजट 2020 में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लिए उदार हृदय से आवंटन किया है। क्षेत्र के समग्र विकास हेतु जम्मू कश्मीर के लिए 30,757 करोड़ रुपए और लद्दाख के लिए 5,958 रुपए का एलान किया है। सरकार अपनी पूरी सामर्थ्य से कश्मीर के विकास के लिए कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री जी ने लोकसभा में कहा था कि हम सब मिलकर नए भारत के साथ अब नए जम्मू-कश्मीर और नए लद्दाख का भी निर्माण करें। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के भाइयों और बहनों से आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि आइए, हम सब मिलकर दुनिया को दिखा दें कि इस क्षेत्र के लोगों का सामर्थ्य कितना ज्यादा है, यहां के लोगों का हौसला, उनका जज्बा कितना ज्यादा है। यह हमारा सौभाग्य है कि मजबूत नेतृत्व के चलते विश्व परिदृश्य में भारत को सम्मान से देखा जाता है। पहले की अपेक्षा भारत की प्रतिष्ठा काफी बढ़ी है। ऐसे में नए पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के निष्प्रभावी होने पर अलग-अलग देशों से के साथ मिलकर इसे वैश्विक मंच पर उठाने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन जवाब में फजीहत के सिवाय उनके हाथ कुछ नहीं लगा।
जब जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को निरस्त कर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने जो ऐतिहासिक फैसला लिया तब देश में उत्सव का माहौल बन गया। लेकिन पाकिस्तान इससे खुश नहीं है। होता भी क्यों!! लगभग 7 दशको से चले आ रहे कश्मीर के इस विवाद को भारत बिना हिंसा के सुलझा दे, ये पचाना पाकिस्तान के लिए मुश्किल है। सभी स्तरों पर नाकामयाब पाकिस्तान भारत के इस फैसले पर मूक होने के सिवा कुछ नहीं कर सका तो किसी न किस बहाने  संयुक्त राष्ट्र के नाम पर भारत को गीदड़-भभकी देने लगा हुआ है पाकिस्तान ने अपने निर्माण से ही जम्मू और कश्मीर और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में समृद्धि को रोकने के लिए अपनी पूरी सामर्थ्य लगा दी। कश्मीर को राजनीतिक उपकरण बनाकर पाकिस्तान आतंकवाद का उपयोग करे यह उसकी रणनीति में हर दृष्टि से अनुकूल बैठता है। प्रधानमंत्री का जम्मू कश्मीर के समग्र विकास के लिए एक विजन है। यह विजन है आत्मनिर्भरता का, विकास का, उद्योगिक क्रांति का, रोजगार सृजन और खुशहाली का। सरकार जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से केंद्रीय अनुदान पर निर्भर करती है। उद्योग और वाणिज्य संघ के अध्यक्ष शेख आशिक के अनुसार अगर हम राज्य में बेरोजगारी की समस्या दूर कर सकें तो कश्मीर की 95 फीसदी समस्या दूर हो जाएगी। हमारी सरकार का लक्ष्य है कि सर्वप्रथम राज्य की अर्थव्यवस्था जो खेती और सेवाओं पर निर्भर है उसे मजबूत किया जाये। राज्य के प्रमुख उद्योग पर्यटन, हस्तशिल्प, रेशम उत्पादन, हैंडलूम, बागबानी, फूड प्रोसेसिंग और कृषि को विकसित करने के समग्र प्रयास किये जा रहे हैं। हमारी कोशिश है कि राज्य में औसत बेरोजगारी दर जो 15 फीसदी रही है को घटाकर कम किया जाये। मैं स्वयं मानता हूं इस राज्य में प्रगति के युग का सूत्रपात कर ही हम क्षेत्र में शांति, समृधि, समरसता, प्रेम भाईचारे और खुशहाली का वातावरण सृजित कर सकते हैं। काफी विकासोंमुखी कदमों के माध्यम से जम्मू कश्मीर के समग्र विकास की लिए सरकार अपनी प्रतिबद्धता सरकार जाहिर कर चुकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपनी कोशिशो से हम रियासत में अमन और तरक्की की नयी इबारत लिख पाएंगे।
डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
(लेखक केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)