बिहार में राजनीति की आबोहवा बदल चुकी है। अब कोशी की बाढ़ और जंगलराज के साथ जाति और धर्म की राजनीति पीछे छूट चुकी है। बिहार का युवा जागरूक और संजीदा हो चला है। प्रवासी मजदूरों की घर वापसी सियासी पंडितों की मुश्किल बढ़ा दिया है। अब सत्ता से लोग अपने अधिकारों की माँग करने लगे हैं।
अब जंगलराज, सुशासन, सुशांत और रामराज्य वाले चुनावी जुमले जमीन पर आ गिरे हैं। अब बिहार की जनता सत्ता और सरकारों से हिसाब माँग रहीं है। नीतीश सरकार से जनता उनकी उपलब्धियों का हिसाब माँग रहीं है। उसका साफ संदेश है कि राष्ट्रीय जनता दल के पिछले 15 साल के राज का लेखा- जोखा बताने से पहले सुशासन बाबू आप बताइए आपने 15 साल में बिहार के लिए क्या किया ? इसका हिसाब आपको देना पड़ेगा। इस चुनाव में बिहार की जनता एक संदेश साफ- साफ दिखा है कि सिर्फ नारों से सत्ता नहीँ हासिल की जा सकती है उसका हिसाब भी देना होगा।
आम बिहारियों के लिए राज्य की बदहाली आज भी अहम मुद्दा है। बिहार देश का ऐसा राज्य है जहाँ बेरोजगारी कभी आम चुनाव का मुद्दा नहीँ बनी। वहाँ चुनावों का सिर्फ एक मुद्दा जातिवाद और कानून- व्यवस्था रहा। लेकिन इस बार बेगारी अहम और बिहार के युवाओं की आवाज बन गया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के अनुसार सम्पूर्ण भारत की अपेक्षा बिहार में बेरोजगारी दोगुनी बढ़ी है। अप्रैल-मई 2020 के दौरान बेरोजगारी दर जहाँ 24 फीसदी रहीं वहीँ बिहार में यह आंकड़ा 46 प्रतिशत तक पहुँच गई। बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत छह प्रतिशत के करीब है जबकि बिहार में अभी यह 12 प्रतिशत से ज्यादा है। बिहार में दो चरणों के चुनाव खत्म होने को हैं। अब सिर्फ अंतिम चरण का चुनाव बचा है। जिसकी वजह से राजनीतिक दलों में बेचैनी देखी जा रहीं है।
सियासी दल अपने- अपने जीत के दावे भले करें लेकिन चुनावी सभाओं में मंच तो सभी का बैठा है। चुनाव का परिणाम क्या होगा यह सवाल सभी के मन और मस्तिष्क पर छाया है। दूसरे चरण के बाद स्थित और दिलचस्प हो चली है। चुनावी सर्वे तो भाजपा और सुशासन बाबू की सरकार बनवा चुके हैं, लेकिन धरातल पर तस्वीर बदली दिखती है। मुकाबला सीधे नीतीश बनाम तेजस्वी हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह तेजस्वी को जंगलराज का युवराज कहा और सियासी हमला बोला उसकी गूँज बिहार में फिलहाल कहीँ दिखती नहीँ है। डबल युवराज का हमला भी फेल होता दिखता है। बिहार की राजनीति से राष्ट्रीय मसले गायब हैं।
इस बार राम मंदिर, धारा- 370 और तीन तलाक जैसे मुद्दे कोई मायने नहीँ रखते हैं। पीएम मोदी ने चुनावी सभाओं में धर्म और राष्ट्रवाद के जरिये ध्रुवीकरण करने की कोशिश की , लेकिन कोई खास सफलता नहीँ मिलती दिखी। उन्होने भारत माता की जय बोलने, छठ मईया और श्रीराम बोलने को लेकर भी विपक्ष पर तगड़ा हमला किया लेकिन उसका भी बिहार के लोगों पर कोई खास असर नहीँ दिखा। लॉकडाउन के दौरान 40 लाख बिहारी प्रवासियों का पलायन बिहारियों को गहरा जख्म दिया है। नीतीश सरकार उन प्रवासियों का आँसू नहीँ पोंछ पायी। बिहार चुनाव अब सीधे हवा के बजाय जमीन पर लड़ा जा रहा है। बेरोजगारी, पलायन, भ्रष्टचार और बिहारियों से जुड़े मसले अहम हो गए हैं। बिहार में चमकी बुखार से हजारों बच्चों की मौत होती है। सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीँ है। आम लोगों को समय से इलाज नहीँ मिल पाता है। चमकी बुखार जहाँ हजारों माताओं की कोख सुनी कर देता है वहीँ डेंगू भी कई जिलों में कहर मचा रखा है।
लीची किसानों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीँ है। उन्हें सही बजार और फसल की कीमत नहीँ मिल पाती है। चीनी मिल बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हो चले हैं। चीनी मिलों में ताला लग गया है और मशीनें जंग खा रहीं हैं। राज्य में 28 चीनी मिलों में चौदह में तालाबंद है। फिर सत्ता में राजद हो या जदयू क्या फर्क पड़ता है।
बिहार में बाढ़ आज भी एक अहम समस्या है, जिसका समाधान फिलहाल निकलता नहीँ दिखता है। बाढ़ को रोकने के लिए बने बाँध बाढ़ में वह गए। विकास की यही असली तस्वीर है। बिहार का युवा नीतीश से खफा है। क्योंकि उसके पास रोजगार नहीँ है। वह पलायन का अभिशाप झेल रहा है। लॉकडाउन में बिहारियों के प्रति नीतीश सरकार की बेरुखी खल रहीं है। लोग बिहार तक पैदल यात्रा करने को मजबूर हुए लेकिन नीतीश सरकार समय पर कारागार कदम नहीँ उठाया। कोटा से भी छात्रों को लाने में विलम्ब किया। हालाँकि बाद में घिरने के बाद कदम उठाए गए लेकिन फजीहत के बाद। सरकारी विभागों में लाखों रिक्तियों को भरा नहीँ गया है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
Sign in
Welcome! Log into your account
Forgot your password? Get help
Password recovery
Recover your password
A password will be e-mailed to you.