राज्य में भाजपा सबसे बड़े दल के रुप में उभरी है। उसके पास 105 विधायक हैं। इसके पूर्व दोनों दलों के नेता राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी से मिल चुके हैं। राज्य में आठ नवम्बर तक नयी सरकार बन जानी चाहिए। अभी सियासी नाटकबाजी का अच्छा मौका है। शिवसेना क्या आदित्य ठाकरे को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। जिसकी वजह से वह 50-50 के फामूर्ले की बात कर रही है। दोनों दलों के बीच सीटों का बड़ा अंतर है। 2014 के चुनाव की अपेक्षा इस बार दोनों दलों की सीटें कम आयी हैं। भाजपा के पास 105 सीटें हैं जबकि उसके सेना के पास उसकी आधी यानी 56 सीटें हैं फिर भाजपा यह शर्त क्यों मानेगी। इतने बड़े दल होने के बाद वह क्यों झुकना चाहेगी। शिवसेना हर बार इस तरह का सियासी नाटक करती है। लेकिन बाद में वह फिसल जाती है। अगर आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का ख्वाब पूरा नहीं हो पाया तो शिवसेना सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका वाले मंत्रालय चाहेगी। जिस पर भाजपा को समझौता करना पड़ेगा। क्योंकि ताली एक हाथ से नहीँ बजती। जनता ने जो जनादेश दिया है उसका दोनों को सम्मान करना होगा। भाजपा-शिवसेना को युति चलाने के लिए नरम रुख अख्तियार करना पड़ेगा।
भाजपा और शिवसेना नेताओं के बीच तल्खी बढ़ गयी है। भाजपा नेता संजय कांकड़े के एक कल्पनातीत बयान ने यह उलझन और बढ़ा दी है। उन्होंने यहां तक कह डाला कि शिवसेना के 40 से 45 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। फिलहाल कांकड़े के इस बयान में कोई जमींनी सच्चाई नहीं दिखती है। भाजपा राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रभावशाली राजनीति की वजह से अपना अच्छा विस्तार कर लिया है। जबकि भाजपा को आगे बढ़ाने वाली शिवसेना ही है। बाला साहब ठाकरे की अंगुली पकड़ कर भाजपा आगे बढ़ी है। दक्षिण के राज्यों में भजपा का कोई अस्तित्व नहीं था। शहरी राजनीति में शिवसेना की पकड़ आज भी मजबूत है। शिवसेना का उभार पहले क्षेत्रिय संगठन के रुप में हुआ। बाला साहब ठाकरे कभी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन फैलती सियासी जमींन और राज्य में बढ़ती पैठ की वजह से ठाकरे परिवार राजनीति में आगे बढ़ा। बाला साहब के जाने के बाद अब उद्धव के बाद वह तीसरी पीढ़ी कि राजनीति कर रही है। लेकिन उसकी रणनीति कितनी कामयाब होगी, यह वक्त बताएगा। भाजपा नेता सुधीर के बयान विनाश काले विपरीत बुद्धि ने इस तल्खी को और बढ़ा दिया है। महाराष्ट्र में कांग्रेस आज भले हासिए पर है। लेकिन वह अपनी धर्म निरेपक्ष छबि को कभी नुकसान नहीं होने देगी। क्योंकि राज्य में एनसीपी से मिल कर उसने अच्छी राजनीति की है। 2019 के चुनाव में दोनों दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। कांग्रेस और एनसीपी राज्य में विपक्ष की मजबूत भूमिका में हैं। इसलिए भजपा-शिवसेना सरकार को दमदार प्रतिपक्ष का सामना करना पड़ेगा। जहां तक तीसरे विकल्प की बात शिवसेना कर रही है।
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