किंतु उनके लिए कुछ नहीं किया गया। तब अचानक लॉक डाउन पूरी तरह समाप्त करने का क्या आशय निकाला जाए! क्या सरकार व्यापारियों के दबाव में है? अन्यथा क्या वजह है, कि सरकार अब सब कुछ खोलने की हड़बड़ी में है। जब लॉक डाउन पीरियड था, तब पुलिस भी चौकस थी। हर आधा किमी पर बैरियर लगे थे। पुलिस की इस नाकाबंदी को पार कर जाना मुश्किल था। लोग भटकते रहे। किंतु जैसे ही लॉक डाउन में जरा-सी ढील मिली। पुलिस फुर्र हो गई। शायद वह भी लॉक डाउन की रात-दिन की ड्यूटी से राहत चाहती थी। कोविड अस्पतालों की कमियाँ खुल कर सामने आने लगीं। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की कोई देखभाल नहीं और प्राइवेट अस्पतालों में खुली लूट। दिल्ली के बड़े-बड़े नामी-गिरामी अस्पताल कोविड मरीजों को बेड देने के लिए पाँच लाख रुपए की माँग अंडर टेबल करते और इलाज का लगभग तीन लाख का खर्च अलग। यानी जुकाम टाइप एक बीमारी के इलाज के लिए आठ से दस लाख का स्वाहा। अस्पताल किसी के भी मरने-जीने से उदासीन रहे। ऐसी अफरा-तफरी भरे माहौल में अनलॉक से डर फैलना ही था। इसीलिए बाजार तो खुले, लेकिन लोग नहीं आए। मार्केट में सन्नाटा है। हर चीज के दाम आसमान पर हैं। आता, दाल, चावल, मसाले आदि सभी। यही कारण है, कि लो नहीं निकल रहे। वे इस कठिन दौर में पैसा बचा कर रखना चाहते हैं। उनको लगता है, कि वही चीजें खरीदी जाएँ जो जीवन के लिए अनिवार्य हो। उपभोक्ता वस्तुओं पर वे पैसा नहीं उड़ाना चाहते। तमाम लोगों की नौकरियाँ खत्म हो गई हैं, और जिनकी बची हुई हैं, उनमें पगार किसी की आधी तो किसी की तिहाई हो गई है। और वह भी समय पर नहीं मिलती। सच बात तो यह है, कि सरकारी कर्मचारियों को छोड़ कर शेष सभी लोग बेहाल हैं। लोगों के पास की जमा-पूँजी मोदी सरकार ने 2014 में निकलवा ली थी। ऊपर से जीएसटी ने सत्यानाश कर दिया। तब फिर कैसे यह उम्मीद की जाए, कि अनलॉक को लोग सपोर्ट करेंगे। मगर जब ज्यादा सख़्ती की जरूरत है, तब सरकार सारे व्यावसायिक संस्थान खोल रही है। माल, होटल, रेस्तराँ आदि सब। बल्कि महाराष्ट्र में तो स्कूल खोलने की तैयारी है। मुझे लगता है, कि प्रधानमंत्री जी को कुछ बातों पर गौर करना चाहिए। जैसे उन्हें स्वयं कोरोना के बारे में कोई आधिकारिक बयान देना चाहिए। उन्हें सारी ट्रेनें और सार्वजनिक परिवहन सेवाएँ शुरू कर देनी चाहिए। बस लोगों को अपना रूटीन बदलने का आदेश दें। अर्थात् काम तो चलेगा, लेकिन समय बदल जाएगा। छह-छह घंटे की पाली होगी। हफ़्ते के सातों दिन काम करना पड़ेगा। बीमार पड़े, तो इलाज मुफ़्त और सरकार कराएगी। सारे निर्माण कार्य रात को होंगे, इसलिए मजदूरों का पलायन नहीं होगा। हर हाथ को काम भी मिलता रहेगा। विदेशों के लिए भी आवा-जाही शुरू कर दें। बस हिदायत यह रहे, कि बिलावजह का आना-जाना नहीं हो। दिल्ली-एनसीआर का साइज छोटा करने के लिए सिर्फ़ केंद्र सरकार के दफ़्तरों को छोड़ कर बाकी के दफ़्तर या तो छोटे शहरों में शिफ़्ट किए जाएँ अथवा लोगों को वर्क फ्रÞाम होम के लिए प्रोत्साहित किया जाए। सर्विस सेक्टर को हतोत्साहित कर उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए। स्कूल, कालेज, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च आदि सब खोले जाएँ, लेकिन पूरी सफाई और फिजिÞकल डिस्टैंसिंग के साथ। अब बाकी प्रधानमंत्री जी तय करें।