बीते दिनों शराब की बिक्री को इजाजत देने के बाद से ही कई राज्य सरकारें और केंद्र सरकार मीडिया और आम लोगों के निशाने पर हैं। सरकारों पर निरंतर लोगों की जान से साथ समझौता करने का आरोप लगाया जा रहा है। देश में चल रही कई चचार्ओं का विषय यह हो गया है कि क्या सरकारों ने लॉकडाउन हटाते ही वो स्थितियां पुन: स्थापित करदी हैं जो लॉकडाउन से पहले तक थीं।
जब ये सब चल रहा था तो मुझे विश्व के सबसे बड़े मेडिकल जर्नल लेंसत की स्टडी याद आ गई जिसमें ये दावा किया गया था कि भारत में 2010 से 2017 के बीच शराब के सेवन में 38 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। सरल में समझें तो 2010 में जहां साल भर में एक व्यस्क व्यक्ति 4.3 लीटर शराब का सेवन करता था वहीं 2017 तक यह आंकड़ा बढ़कर 5.9 लीटर प्रति व्यक्ति पहुंच गया। 2019 में आई एक और स्टडी जो भारत के एम्स में की गई थी बताती है कि भारत में तकरीबन 5.7 करोड़ लोग शराब की लत की चपेट में हैं। इसके साथ-साथ डब्ल्यूएचओ की 2018 में आई एक रिपोर्ट यह दावा करती है कि भारत में हर साल तकरीबन 260000 लोगों की मौत का कारण शराब का अत्यधिक सेवन है।
इन सब रिपोर्टों से तो यह लगता है कि शराब की बंदी ही सही फैसला है। इसकी बिक्री को फिरसे खोला जाना लोगों की सेहत के साथ दोहरा खिलवाड़ है, क्योंकि जितने लोग कोविड-19 से नही मरते उतने तो शराब के सेवन से मर जाते हैं। लेकिन इसके साथ-साथ हमें ये भी समझना चाहिए कि ढक्कन बंद शराब से आने वाला लाभदायक कर सरकारों के लिए क्यों इतना महत्व रखता है। खबर आई की अप्रैल महीने में आॅटोमोबाइल सेक्टर में भरी गिरावट देखी गई, भारी मतलब इतनी भारी कि भारत में मारुती और हुंडई समेत कई कंपनियों ने गाड़ियों की लोकल सेल को शून्य पाया। गाड़ियां ना बिकने की वजह से सरकारों का उनके रजिस्ट्रेशन और अन्य करों से मिलने वाला राजस्व लगबघ खत्म हो गया है। इसके साथ-साथ प्रॉपर्टी के ना बिकने की वजह से उससे मिलने वाला राजस्व भी सरकारों को नही मिल पा रहा। दूसरी तरफ पेट्रोल की बिक्री अप्रैल महीने में 61 प्रतिशत तक गिर गई वहीं डीजल की बिक्री 56.5 प्रतिशत कम रही। विमानों में पड़ने वाले ईंधन जिसकी कीमतों में हाल ही में 23 प्रतिशत की कटौती की गई और जो आम ईंथान की कीमतों के एक तिहाई कीमत पर है उसकी बिक्री में भी अप्रैल महीने में 91.5 प्रतिशत की रिकॉर्ड कटौती दर्ज की गई। ये आंकड़े राज्यों द्वारा संचालित तेल कंपनियों के हैं जो घरेलु बाजार के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से पर नियंत्रण रखती हैं।
इसके साथ-साथ देश में बेरोजगारी भी अपने चरम पर है। मई 3 को खत्म होने वाले सप्ताह में सीएमआईई के आंकलन के मुताबिक देश में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड 27.1 प्रतिशत हो गई है। दूसरी ओर देश की जीडीपी में तकरीबन 30 प्रतिशत योगदान वाला एमएसएमई सेक्टर काफी मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में अनुमानन ज्यादातर राज्यों का कुल कर राजस्व 80 से 90 प्रतिशत तक गिरा है और राज्यों की जिम्मेदारियां काफी हद तक बढ़ीं हैं। ऐसे में सवाल ये आता है कि ढक्कन बंद शराब से राज्यों को कितना राजस्व मिल जाता होगा। इसे जानने के लिए हमें ये समझना पड़ेगा की ढक्कन बंद शराब पर जीएसटी नहीं लगता इस पर राज्यों द्वारा बनते और बिकते समय एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है। कुछ जगह जैसे तमिलनाडु में तो इसपर वैट भी लगता है। इस कर को राज्यों द्वारा विशेष अतिरिक्त कर लगाकर बढ़ाया जा सकता है। हालांकि औद्योगिक इस्तेमाल में आने वाली अल्कोहल जीएसटी के अंतर्गत आती है।
आरबीआई की 2019 में आई एक रिपोर्ट (स्टेट फाइनेन्स- ए स्टडी आॅफ बजट आॅफ 2019-20) ये बताती है कि राज्यों की ढक्कन बंद शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 10-15 फीसदी हिस्सा है। बात करें 2018-19 की तो पूरे देश में (सभी राज्य+2 केंद्र शाशित राज्य) में ढक्कन बंद शराब से 150657.95 करोड़ का राजस्व राज्यों को मिला था जो 2019-20 में तकरीबन 16 प्रतिशत बढ़कर 175501.42 करोड़ हो गया। इसमें सबसे ज्यादा राजस्व उत्तर प्रदेश की सरकार का है जो 2018-19 के 25100 करोड़ से बढ़कर 2019-20 में 31517.41 करोड़ हो गया यानि तकरीबन 2500 करोड़ रूपए महिना। उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा राजस्व क्रमश: कर्नाटका (2018-19 में 19750 करोड़ और 2019-20 में 20950 करोड़), महाराष्ट्र (2018-19 में 15343.09 करोड़ और 2019-20 में 17477.39 करोड़), पश्चिम बंगाल (2018-19 में 10554.36 करोड़ और 2019-20 में 11873.65 करोड़) और तेलंगाना (2018-19 में 10313.69 करोड़ और 2019-20 में 10901 करोड़) का है। ढक्कन बंद शराब से आने वाला राजस्व ज्यादातर राज्यों में दूसरे या तीसरे स्थान पर सबसे बड़ा राजस्व है। इन सब चीजों से एक बात तो साफ है की ज्यादातर राज्यों के राजस्व के लिए ढक्कन बंद शराब महत्वपूर्ण है। शायद यही वजह है की पंजाब जैसे राज्य इसकी होम डिलीवरी करा रहे हैं। हालांकि गुजरात और बिहार जैसे राज्य जहां ‘शराबबंदी’ है, वो इसमें अपवाद हैं। समस्या ये रही कि लोग शराब कि दुकान के खुलने के साथ सब भूलकर लम्बी कतारों में लग गए। जुनून इतना था कि दिल्ली और आंध्र प्रदेश जहां ढक्कन बंद शराब की बिक्री पर अतिरिक्त 70 और 75 प्रतिशत कर लगाने के बावजूद शराब की बिक्री बदस्तूर जारी रही। इसके आलावा और भी राज्यों ने इसपर अतिरक्त कर लगाया है। ये बात तो तय है जब तक राज्यों को इतना राजस्व देने वाला कोई और विकल्प नहीं मिल जाता तब तक ढक्कन बंद शराब की बिक्री उनकी मजबूरी भी है और जरूरत भी।
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अक्षत मित्तल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)