Why Congress Lost in Haryana : क्या शालीनता से हारना भी नहीं आता ?

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Why Congress Lost in Haryana : क्या शालीनता से हारना भी नहीं आता ?
Why Congress Lost in Haryana : क्या शालीनता से हारना भी नहीं आता ?

Why Congress Lost in Haryana | राकेश शर्मा | Rakesh Sharma | आजकल राजशाही नौनिहाल के देशी / विदेशी प्रायोजक असमंजस में होंगे की किस (अ) सफल व्यक्ति पर वह बार-बार दांव लगा रहे है जो अट्ठासी चुनाव हार चुका है और हारने की शतकीय पारी की और तेजी से बढ़ रहा है लेकिन सबक लेने को तैयार ही नहीं है।

Rakesh Sharma
Rakesh Sharma

यह इसलिए लिख रहा हूं कि बृहस्पतिवार को हरियाणा चुनाव में मिली बुरी शिकस्त पर कांग्रेस की चुनावी समीक्षा की शोक सभा हुई और नतीजा वही ढाक के तीन पात। जिस कारण चुनाव हारे इस समीक्षा बैठक की शुरूआत उसी के साथ हुई तब कोई सच्चाई के साथ किसी सार्थक नतीजे की उम्मीद कैसे कर सकता है।

सुनने में आया है कि बैठक में निष्कर्ष निकाला गया कि आपसी गुटबाजी के चलते और एकजुट होकर नहीं लड़ना हरियाणा में इस चुनावी पराजय का मुख्य कारण रहा। कुमारी सैलजा हरियाणा में कांग्रेस का एक बहुत बड़ा दलित चेहरा है जिन्हे कांग्रेस हाई कमांड की शह के बाद भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ग्रुप ने इस चुनाव में प्रारंभ से ही प्रताड़ित किया|

उनके मांगने पर भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया, उनके समर्थकों को टिकट नहीं दिया गया, चुनाव के दौरान उन्हें जातिसूचक शब्दों से संबोधित कर बेइज्जत किया गया, हुड्डा ने अपने समर्थकों को नब्बे में से बहत्तर सीट दिलवा दी जोकि बगैर हाई कमांड की सहमति के संभव ही नहीं था क्यूंकि राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों ने हुड्डा को खुली छूट देकर चुनाव में पार्टी की फूट की नींव रख दी थी।

और कल भी चुनावी समीक्षा की शोक सभा में कुमारी सैलजा जैसी दिग्गज नेता की उपेक्षा कर उन्हें इस बैठक में भाग लेने का निमंत्रण ना भेजकर इस छद्म समीक्षा का तर्कहीन उदाहरण ही पेश किया गया है। जब समीक्षा एकपाक्षीय हो तो नतीजा निष्पक्ष कैसे निकलेगा।

कांग्रेस को भी लोकसभा में 543 में से 99 सीट लाकर विजयी शंख ध्वनि की बांसुरी बजाते बजाते 99 के अंक से बहुत प्रेम हो गया लगता है। इनके सारे महासचिवों, प्रवक्ताओं की हार की प्रतिक्रियाओं को ध्यान से सुनें तो सभी कह रहे है जिन ईवीएम की बैटरी (99) प्रतिशत थी वहां भाजपा जीती और जहां 65 प्रतिशत थी वहीं सिर्फ कांग्रेस जीती।

एक बालक को भी कितनी हास्यास्पद बात नजर आती होगी। आजकल हम सभी मोबाइल का प्रयोग करते हैं और घर से निकलते हुए लगभग 99 प्रतिशत या शत प्रतिशत मोबाइल की बैटरी चार्ज करके निकलते हैं और शाम को घर वापस आते आने तक बैटरी 65 प्रतिशत छोड़ो कई बार 10 प्रतिशत ही रह जाती है तब क्या हमारी मोबाइल पर बात नहीं होती, व्हाट्सएप नहीं आते, एसएमएस नहीं आते, मेल नहीं आते, इंस्टाग्राम, एक्स, फेसबुक काम नहीं करते ?

करते है तो यह कौन सा 99 प्रतिशत और 65 प्रतिशत का नया खेल जनता को समझाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, उलजलूल दलीलें दी जा रहीं है, निर्वाचन आयोग को दोष दिया जा रहा है, भाजपा को दोष दिया जा रहा है नहीं किया जा रहा तो सिर्फ ईमानदार आत्मावलोकन नहीं किया जा रहा ।

खैर , इसकी उम्मीद भी नहीं थी और ना ही होगी। मुझे तो इस हार का मुख्य कारण ही राजशाही परिवार का ‘गांधी’ सरनेम ही नजर आता है जिसे अंधभक्त चापलूसी के चलते मानने को तैयार नहीं हैं और देश इस पचपन वर्षीय राजशाही नौनिहाल पर विश्वास करने को तैयार नहीं है।

देश तो छोड़ो अब इस हार के बाद बिना किसी वैचारिक प्रतिबद्धता के बने खंडित, विखंडित इंडी गठबंधन के मुख्य साथी भी राहुल और कांग्रेस को गरिया रहे हैं और यह सब कांग्रेसी भीगी बिल्ली की तरह दुम दबाकर अपनों के द्वारा ही अपना हाल बेहाल होता देखकर सकते में हैं।

उन्हें लगने लगा है की सिर्फ मोदी को सत्ताच्युत करने के उद्देश्य से बने इस इंडी गठबंधन के स्वघोषित भविष्य के प्रधानमंत्री के हाथ उनका भविष्य असुरक्षित है। वरना ओमर अब्दुल्ला क्यों कह रहे हैं कि हम कांग्रेस के बिना भी जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने को तैयार हैं, दिल्ली में आप पार्टी ने अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है, उधर शिव सेना उद्धव गुट अपने अखबार सामना के द्वारा कांग्रेस को आंख दिखा रहा है|

हरियाणा की हार से अहंकार त्यागने का सबक दे रहा है, उद्धव को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने की बात कह रहा है, उत्तर प्रदेश जहां कांग्रेस होने वाले दस उपचुनाव में दस में से पांच सीटें मांग रही थी समाजवादी पार्टी के अखिलेश ने दस में से छ: सीटों पर कांग्रेस से बात किए बिना अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये|

कह रहे हैं कांग्रेस के कितने विधायक इन दस सीटों पर जीते थे (शून्य) फिर कैसे पांच सीट मांग सकते है ज्यादा से ज्यादा हो सकता है हम कांग्रेस को दया कर दो सीट देने पर विचार कर सकते हैं। अतिआत्मविश्वास से भरी अहंकारी कांग्रेस पार्टी का इन्ही के गठबंधन के साथियों ने क्या हाल कर दिया है ।

यही हाल होता है जब कोई गठबंधन मोदी हटाने के लिए बिना किसी वैचारिक सामंजस्य के नकारात्मक विचार की नींव पर बनाया जाता है। इस गठबंधन का हाल देखो पंजाब में कांग्रेस और आप अलग-अलग लड़ते हैं, दिल्ली में लोकसभा एक साथ लड़ते हैं, हरियाणा विधान सभा अलग-अलग लड़ते हैं, अब फिर दिल्ली विधान सभा अलग-अलग लड़ने की बात कर रहे हैं, कश्मीर में नतीजों के बाद अभी तक कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन पत्र नहीं भेजा|

बंगाल में ममता के खिलाफ कम्युनिस्ट और कांग्रेस एक साथ लड़ते हैं और केरल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट एक दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं, शिव सेना उद्धव और समाजवादी जब मर्ज़ी कांग्रेस को गरियाते रहते हैं। मतलबी नकारात्मक विचार से उपजे गठबंधन का यही हाल होना था और हो रहा है।

इस मौके पर 1948 में आयी एक फिल्म प्यार की जीत का एक गीत मन में गुनगुना रहा है जिसे राजेंद्र कृष्ण और कमर जलालाबादी ने लिखा और मोहम्मद रफी ने आवाज दी थी ‘एक दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा।’

राजशाही परिवार के नौनिहाल को ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाकर देश को जातियों, भाषा, धर्म, भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर विभाजित करने की सोच को त्याग कर विकास की बात, राष्ट्र प्रेम की बात करनी ही होगी वरना झूठ, फरेब, मक्कारी, धूर्तता के भ्रम के भंवर में फंसाकर की लोकतंत्र खतरे में है, संविधान खतरे में हैं, संवैधानिक संस्थाएं खतरे में है की काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ेगी और 99 से गिरकर कहां पंहुचोगे इसका शायद आपको अंदाजा भी नहीं है।

अतिआत्मविश्वास और अहंकार त्यागकर भारत राष्ट्र को समझना होगा, भारतीयों के राष्ट्र के प्रति प्रेम को समझना होगा, वरना हजारों किलोमीटर की पदयात्रा सिर्फ़ किसको खुश करने के लिए की यह तो आप ही जानते हो। हरियाणा विधान सभा कांग्रेस को बहुत कुछ सीखा रहें हैं, सफलता असफलता की कोख से जन्म लेती है लेकिन कोई सीखने को तैयार ही नहीं हो तो यही कहा जाएगा कि शालीनता से हारना भी नहीं आता सीखने की बात तो बहुत दूर की है !!

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