Swartphone And Health, (आज समाज), नई दिल्ली: आज के समय में मोबाइल फोन हर किसी छोटे या बड़े व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बन गया है। बच्चों से पुरुष व महिलाओं को भी मोबाइल की आज इतनी लत लग चुकी है कि उठते-बैठते, चलते-फिरते, यहां तक कि खाते-पीते भी वे मोबाइल में ही मशगूल रहते हैं। लेकिन ऐसा करने वाले सभी लोग सावधान जो जाएं, क्योंकि जितना मोबाइल सुविधाजनक है उतना ही यह जीवन के लिए खतरा भी है।
- 12 से 35 साल के बीच में होगी उम्र
मोबाइल में मशगूल होकर आसपास के माहौल से बेखबर रहते हैं युवा
अक्सर आज देखा जाता है कि खासकर युवा पार्कों, ट्रेनों, बस व अन्य साधनों से सफर करते हुए कान में ईयरफोन, ईयरबड्स या अन्य लिसनिंग डिवाइसों का इस्तेमाल कर आसपास के माहौल से पूरी तरह बेखबर रहते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके बगल में क्या हो रहा है। लेकिन ऐसा करने वाले लोग आने वाले समय में बहरे हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। डब्ल्यूएचओ की मेक लिसनिंग सेफ गाइडलाइंस के एक अनुमान के अनुसार 2050 तक दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा युवा बहरे हो सकते हैं। इन युवाओं की उम्र भी 12 से 35 साल के बीच में होगी।
हमारे सुनने की खराब आदतें वजह
डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस कहती हैं कि ऐसा हमारे सुनने की खराब आदतों की वजह से होगा। इसमें बताया गया है कि फिलहाल 12 से 35 साल के लगभग 50 करोड़ लोग विभिन्न कारणों से न सुन पाने या बहरेपन की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से 25 फीसदी वे हैं जो अपने निजी डिवाइसों जैसे ईयरफोन, ईयरबड, हेडफोन पर ज्यादा तेज साउंड में लगातार कुछ न कुछ सुनते रहने के आदी हो चुके हैं। जबकि 50 फीसदी के आसपास वे हैं जो लंबे समय तक मनोरंजन की जगहों पर बजने वाले तेज म्यूजिक, क्लब, डिस्कोथेक, सिनेमा, फिटनेस क्लासेज, बार या अन्य सार्वजनिक जगहों पर बजने वाले तेज साउंड के संपर्क में रहते हैं। ऐसे में लाउड म्यूजिक सुनने का शौक या ईयर डिवाइसें ज्यादा इस्तेमाल करने का शौक आपको बहरा बना सकता है।
ज्यादा वॉल्यूम कान के लिए खतरा
पर्सनल डिवाइसों में आमतौर पर वॉल्यूम का स्तर 75 डेसीबल से 136 डेसीबल तक होता है। अलग-अलग देशों में इसका मेक्सिमम स्तर अलग भी हो सकता है। हालांकि यूजर्स को अपने डिवाइसेज का वॉल्यूम 75 डीबी से 105 डीबी के बीच रखना चाहिए और इसे सीमित समय के लिए यूज करना चाहिए। इससे ऊपर जाने पर कान को खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि डिवाइसों में आने वाला वॉल्यूम भी काफी ज्यादा होता है। उनका कहना है कि सबसे सुरक्षित वॉल्यूम कानों के लिए 20 से 30 डेसीबल है। इस वॉल्यूम में आमतौर पर दो लोग बैठकर शांति से बात करते हैं। इससे ज्यादा आवाज के संपके में रहने से कानों की सेंसरी सेल्स को नुकसान होने लगता है।
इलाज भी संभव नहीं, प्रिवेंशन ही बचने का तरीका
सबसे खराब जो चीज है, वह डिवाइसों के इस्तेमाल से आया हुआ बहरापन कभी ठीक नहीं होता है। लगातार और लंबे समय तक तेज साउंड में रहने के चलते हाई फ्रीक्वेंसी की नर्व डैमेज हो जाती है। वह रिवर्सिबल नहीं होती। न उसकी कोई सर्जरी नहीं होती है और न ही कोई मेडिसिन होती है जिससे नर्व को ठीक कर लिया जाए। इसलिए प्रिवेंशन ही बहरेपन से बचने का एक तरीका है।