इस समय टीम इंडिया में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय यह है कि क्या ब्रिसबेन में टीम पांच गेंदबाज़ों के साथ उतरेगी। क्या आर अश्विन के साथ टीम को चारों तेज़ गेंदबाज़ों को उतारना होगा। क्या ऐसा करके टीम एक बल्लेबाज़ को कम खिलाने का खतरा मोल नहीं ले रही। इन सब विकल्पों पर इसलिए सोचना पड़ रहा है क्योंकि जसप्रीत बुमराह के एबडॉमिनल मसल्स में खिंचाव आ गया है और टीम प्रबंधन उनको लेकर कोई जोखिम नहीं उठिना चाहता।
यदि टीम इंडिया तीन तेज़ गेंदबाज़ों को खिलाती है तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि टीम के चार तेज़ गेंदबाज़ों में से कौन बाहर बैठेगा। इसमें कोई शक नहीं कि मोहम्मद सीराज ने अभी तक सीरीज़ में अपनी उपयोगिता दिखाई है और कप्तान रहाणे ने उनके लिए जैसी फील्ड सजाई, उसीके अनुकूल उन्होंने गेंदबाज़ी की। नवदीप सैनी के पास गति है और वह आम तौर पर इसका इस्तेमाल सीम के साथ गेंद को पटकने के लिए करते हैं। मोहम्मद शमी के इंजर्ड होने के बाद वह टीम इंडिया के अकेले ऐसे गेंदबाज़ हैं जो रिवर्स स्विंग से भी कहर बरपा सकते हैं। ऐसा उन्होंने बंगाल के खिलाफ कुछ साल पहले रणजी ट्रॉफी के सेमीफाइनल में किया था। तब उन्होंने दूसरी पारी में चारों विकेट रिवर्स स्विंग की मदद से बोल्ड करके हासिल किए थे। इस वक्त मौजूदा विकल्पों में उनके पास सबसे ज़्यादा गति है जिसकी ज़रूरत ब्रिसबेन के गाबा मैदान में टीम के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकती है।
अब बचते हैं शार्दुल ठाकुर और टी नटराजन। नटराजन का सबसे बड़ा प्लस पॉइट उनका बाएं हाथ का तेज़ गेंदबाज़ होना है। उन्हें जब भी बड़ी ज़िम्मेदारी दी गई है, तब-तब वह कसौटी पर खरे उतरे हैं। दो महीने पहले तक वह टीम इंडिया के नेट बॉलर थे। टी-20 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्हें मौका मिला तो डैब्यू मैच में ही चार ओवर में तीन विकेट हासिल करके उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और सीरीज़ में भारत की ओर से सबसे अधिक छह विकेट हासिल किए। इसी खिलाड़ी को फिर वनडे में मौका मिला। अब टेस्ट की टीम में शामिल हैं लेकिन उन्हें प्लेइंग इलेवन में जगह पाने का इंतज़ार है। स्लोअर और यॉर्कर उनकी गेंदबाज़ी की सबसे बड़ी विशेषता है लेकिन रेड बॉल क्रिकेट में स्विंग या सीम मूवमेंट के साथ गेंदबाज़ी करना ज़्यादा मायने रखता है। अगर बीच-बीच में अच्छी रफ्तार के साथ बाउंसर कर दी जाएं तो उसका असर और भी ज़्यादा होता है लेकिन नटराजन की बाउंसर करते हुए रफ्तार अक्सर कम हो जाती है। 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से विकेट नहीं चटकाए जा सकते और न ही दबाव बनाया जा सकता है। न ही उन्हें बहुत लम्बे स्पेल करने का अनुभव है।
जहां तक शार्दुल ठाकुर का सवाल है। अनुभव, स्विंग और बल्लेबाज़ी तीनों में वह बाकी गेंदबाज़ों पर भारी साबित होते हैं। चार साल पहले रणजी फाइनल में चेतेश्वर पुजारा सहित कुल आठ विकेट हासिल करके उन्होंने काफी उम्मीदें दिखाई थीं। विराट, हनुमा विहारी और रवींद्र जडेजा के उपलब्ध न होने से शार्दुल लोअल ऑर्डर में उपयोगी बल्लेबाज़ी कर सकते हैं। उनके पास टीम के बाकी साथियों की तुलना में ज़्यादा स्विंग है जो गाबा के मैदान में काफी उपयोगी साबित हो सकती है। यहां सवाल यह भी है कि क्या टीम इंडिया तेज़ गेंदबाज़ों के खेलने की स्थिति में कुलदीप यादव और अश्विन के रूप में दो स्पिनरों को उतारने का अहम फैसला करती है क्योंकि कुलदीप के पास अनुभव है लेकिन इससे टीम की बल्लेबाज़ी बुरी तरह से प्रभावित होने का खतरा पैदा हो जाएगा। ऐसी स्थिति में चार तेज़ गेंदबाज़ों के साथ अश्विन को उतारना ही बेहतर विकल्प होगा।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार एवं टीवी कमेंटेटर हैं)