उत्तर प्रदेश पुलिस बड़ी शान से अपना परिचय लिखती है “करीब 243286 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले और लगभग 20 करोड़ (2011 की जनगणना के मुताबिक) से ज्यादा जनसंख्या के साथ, उत्तर प्रदेश पुलिस को न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा एकल पुलिस बल होने का गौरव प्राप्त है”। हमें भी यह बताते सुखद अनुभूति होती है कि हम उसी महकमें के एक वरिष्ठ अधिकारी के बेटे और एक अधिकारी के दामाद हैं। हम ऐसे अफसर के बेटे हैं, जिसने अपनी निष्पक्ष और निडर कार्य प्रणाली से हजारों पीड़ितों को इंसाफ दिलाया। हमारी बहन और भाई के श्वसुर भी इसी महकमें के अफसर थे। हमारे बहनोई के नाना देश के भारतीय पुलिस सेवा के दूसरे बैच में यूपी कैडर के अफसर थे। हम वर्दी के साये में पले-बढ़े। बेटियों, दलितों और आमजन के प्रति संवेदनशील वर्दी को देखा था मगर कुछ वर्षों से जिस तरह का पुलिसिया चेहरा देख रहा हूं, उस पर लज्जा आती है। हाथरस के एक दलित परिवार की किशोरी की गैंगरेप और हिंसा से तड़पते हुए मौत हो गई। अपराधियों ने जो किया, उससे अधिक वीभत्स बलात्कार यूपी पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली ने किया है। सत्ता सुख भोग रहे राज्य के नेता हों या केंद्र के सत्तानशीन किसी को भी इस घटना पर लज्जा नहीं आई। न महिला आयोग और न दलितों की सियासत करके ऐश करने वाले नेताओं का सिर इस घटना पर लज्जा में झुका। लोकसेवक कहलाने वाले पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को लज्जा नहीं आई। संवेदनशील लोगों और सियासी नेताओं पर लाठियां बरसीं, मुकदमें दर्ज हुए।
हैवानियत का शिकार किशोरी के बार-बार गिड़गिड़ाने के आठ दिन बाद पुलिस ने एफआईआर में गैंगरेप की धारा जोड़ी, तब कहीं बलात्कार की पुष्टि के लिए मेडिकल जांच हो सकी। विशेषज्ञ जानते हैं कि इतने दिनों बाद जांच का परिणाम शून्य ही आता है। 15 दिनों तक तड़पते मौत से जूझते इस बेटी ने दिल्ली के अस्पताल में दम तोड़ दिया, तब कहीं शोर मचा। कांग्रेस सहित कई सियासी नेताओं ने सवाल खड़े करते हुए प्रदर्शन किया, तब रिया-सुशांत-कंगना में व्यस्त मीडिया और सत्ता के कान में जूं रेंगी। उधर, यूपी पुलिस-प्रशासन सबूत नष्ट करने में जुटे रहे। उसने रात ढाई बजे ने जबरन लाश जलवा दी। परिजनों को न शव देखने दिया और न अंतिम संस्कार करने दिया। सभी को गांव में कैद कर दिया गया। अफसर मुलजिमों को पकड़ने के बजाय पीड़ित परिवार के बयान बदलवाने के लिए धमकाते दिखे। सच, दुनिया के सामने न आये, इसके लिए मीडिया को गांव से एक मील पहले ही रोक दिया गया। पीड़ित परिवार का दर्द सांझा करने जाते कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को 200 किमी पहले गिरफ्तार कर लिया गया। राहुल के साथ जा रही दिल्ली महिला कांग्रेस अध्यक्ष का पुलिस ने ब्लाउज तक फाड़ दिया, उन्हें दुपट्टे से अपनी लाज बचानी पड़ी। पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे चार सांसदों के साथ बदसलूकी की गई। दिल्ली की निर्भया को इंसाफ दिलाने वाली महिला वकील को भी गांव में नहीं जाने दिया गया। पुलिस ने गांव को यूं घेर रखा है, जैसे वहां आतंकियों से मुठभेड़ हो रही हो। गांव के लोगों के मोबाइल फोन छीन लिये गये हैं। सरकार प्रकरण को मैनेज करने में लगी रही।
यह गैंगरेप की एक घटना मात्र है क्योंकि जब इस किशोरी के इंसाफ के लिए शोर मचा था, तभी यूपी के बलरामपुर में एक दलित परिवार की बेटी की गैंगरेप से मौत हो गई। उसका शव भी रात के अंधेरे में जला दिया गया। भदोही और आजमगढ़ में मासूम बच्चियों से बलात्कार हो रहा था। महोबा, बुलंदशहर, मथुरा, मेरठ सहित कई जिलों में बेटियों की आबरू लुट रही थी। बागपत में इंसाफ न मिलने पर दुष्कर्म पीड़िता ने जहर खा लिया। लखीमपुर खीरी में एक बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। लखनऊ में दलित समुदाय की छात्रा को अगवा कर बलात्कार किया गया था, जिसकी एफआईआर एक माह बाद दर्ज हो सकी। गाजियाबाद में सातवीं में पढ़ने वाली बच्ची गैंगरेप का शिकार हुई और पुलिस ने 20 दिनों बाद एफआईआर दर्ज की। यूपी में रोजाना बलात्कार की 10 एफआईआर दर्ज होती हैं, जबकि इससे कई गुना अधिक घटनाओं की एफआईआर ही दर्ज नहीं होतीं। भाजपा के एक पूर्व मंत्री चिन्मयानंद और विधायक कुलदीप सेंगर ने छात्रा को हवस का शिकार बनाया था। ऐसा नहीं है कि सिर्फ यूपी में ही बलात्कार की घटनाएं होती हैं। जब हाथरस में शोर मचा था तभी बिहार के गया में गैंगरेप हुआ और पीड़िता ने आत्महत्या कर ली। मध्यप्रदेश के जबलपुर में दो साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। राजस्थान के बारां में अपने दोस्तों के साथ गईं दो लड़कियों के साथ रेप की एफआईआर दर्ज हुई। अजमेर में एक महिला ने बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया। हालांकि इन दोनों मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने कलमबंद बयान में लड़कियों ने रेप की बात से इंकार किया था, फिर भी पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। हमें याद है कि कुछ साल पहले जम्मू-कश्मीर के कठुआ में एक बच्ची के साथ कई दिनों तक गैंगरेप हुआ था, जिससे उसकी मौत हो गई थी। आरोपियों के बचाव में भाजपा नेता और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री की अगुआई में प्रदर्शन हुआ था।
अंतराष्ट्रीय संस्था थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में लिखा है कि भारत विश्व में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है। विश्व में सबसे अधिक बलात्कार भारत में होते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो करीब 89 बेटियां रोजाना बलात्कार की एफआईआर दर्ज कराती हैं। इसमें से सिर्फ 26 फीसदी मामलों में ही पुलिस अभियोग चलाती है। जिससे सिर्फ तीन फीसदी मामलों में ही आरोपियों को सजा होती है। 1970 के दशक में बलात्कार के 44 फीसदी मामलों में आरोपियों को सजा होती थी मगर अब अदालत पहुंचे मामलों में सिर्फ 27 फीसदी में सजा हो पाती है। इन हालात के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी संस्था ने जिनेवा में कहा कि बलात्कार के मामलों में भारतीय कानून का पालन कराने वाली सरकार, पुलिस और न्यायाधीश किसी भी स्तर पर अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभाते। वह अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं, जिससे बलात्कार की घटनायें बढ़ती हैं। जितनी एफआईआर दर्ज होती हैं, उससे कई गुना अधिक घटनायें होती हैं। भारत में हर घंटे आधा दर्जन से अधिक महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं। आपको याद होगा, जब 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक बेटी के साथ गैंगरेप हुआ था, जिस पर देश भर में उग्र प्रदर्शन हुए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने एयरपोर्ट पहुंचकर पीड़िता का हाल जाना था। उसे अच्छे इलाज के लिए विशेष विमान से सिंगापुर भेजा था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी अस्पताल में घायल बेटी से मिलने गई थीं। उन्होंने तत्काल बेटियों की मदद को निर्भया फंड बनाया और कानून को सख्त बनाकर बेटियों के लिए न्याय सुलभ कराया था।
आज विश्व के सभी बड़े अखबारों में हाथरस गैंगरेप देश को लज्जित कर रहा है। हमारे सत्तानशीन राजनेता हों या सरकार और पुलिस, कोई भी बेटियों के प्रति संजीदा नहीं हैं। नतीजतन, बेटियों की मदद के लिए बने निर्भया फंड का साढ़े सात हजार करोड़ रुपये सरकार के खाते में पड़ा है। बेटियों को न थाने में सम्मान और मदद मिलती है और न ही सरकार के स्तर पर। हालात तो यह हैं कि 2013 के कानून के मुताबिक कार्रवाई और जांच में लचर रहने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ अब तक किसी भी राज्य में मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है। वजह साफ है, सभी के हाथ खून से सने हैं। कभी सियासी फायदे के लिए तो कभी निजी हितों के लिए। यही कारण है कि यूपी और केंद्र के किसी मंत्री और वरिष्ठ अफसर ने पीड़ित परिवार का हाल जानने की जहमत नहीं उठाई। यूपी में पिछले 32 साल से सपा, बसपा और भाजपा सत्ता की मलाई खा रहे हैं मगर ऐसे वक्त में तीनों दलों के राष्ट्रीय नेताओं को छोड़िये, प्रदेश स्तर का भी कोई नेता हाथरस नहीं गया। जब शनिवार सुबह राहुल गांधी ने दोबारा अपने 35 सांसदों के साथ हाथरस जाने का ऐलान किया, तब आनन-फानन में घटना के 20 दिन बाद डीजीपी और एसीएस गृह को पीड़िता के गांव भेजा। मीडिया को छूट मिली। फजीहत कराने के बाद सरकार ने राहुल-प्रियंका को पांच प्रतिनिधियों के साथ गांव जाने की अनुमति दी। एसपी सहित पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित किया मगर सरेआम गुंडई करने वाले डीएम, एडीएम, संयुक्त मजिस्ट्रेट पर कोई कार्रवाई नहीं की। हम उम्मीद करते हैं कि हाथरस की घटना से हमारी सरकारें सबक लेंगी और भविष्य में किसी बेटी का चीरहरण नहीं होने देंगी। बेटियां भी बेटों की तरह बेखौफ हो बिंदास घूम सकेंगी। जब तब ऐसा नहीं होगा, नारी को देवी कहने का कोई अर्थ नहीं। हम विश्व पटल पर इसी तरह लज्जित होते रहेंगे। न्याय होने मात्र से कुछ नहीं होगा बल्कि इसका अहसास भी होना चाहिए।
जय हिंद!
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक मल्टीमीडिया हैं)