Wheat Research Institute Karnal : गेहूं की फसल में पीले रतवा का प्रकोप, किसान भाई कैसे करें इसकी पहचान और प्रबंधन

0
197
डॉ ज्ञानेंद्र सिंह, गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान करनाल
डॉ ज्ञानेंद्र सिंह, गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान करनाल

Aaj Samaj (आज समाज), Wheat Research Institute Karnal , करनाल,5 मार्च, इशिका ठाकुर :
अबकी बार किसानों के खेतों में गेहूं की फसल काफी अच्छी लहरा रही है। जिसके चलते कृषि विशेषज्ञ का भी अनुमान है कि अबकी बार पूरे भारत में गेहूं की बंपर पैदावार होगी, अब तक का गेहूं उत्पादन का देश का रिकॉर्ड टूटेगा। लेकिन किसानों के खेतों में अब कई स्थान पर गेहूं की फसल में पीले रतवा का प्रकोप देखने को मिला है।

जिसे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आती है। अगर समय रहते इसका प्रबंध न किया जाए तो यह गेहूं के उत्पादन पर काफी प्रभाव डालता है। कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि रतवा तीन प्रकार का होता है पीला,काला और भूरा रतवा। उत्तरी भारत के पंजाब और हरियाणा राज्य में पीले रतवा का प्रकोप देखने को ज्यादा मिलता है। तो आईए जानते हैं कि पीला रतवा क्या होता है और इसका प्रकोप गेहूं की फसल को कैसे प्रभावित करता है और किसान इसको कैसे नियंत्रित कर सकते हैं

पीला रतवा का लक्षण

गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान करनाल के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि पीला रतवा गेहूं में लगने वाला एक मुख्य रोग है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि गेहूं के फसलों पर उनकी पौधों पर पीले रंग का पाउडर लगा होता है। पहले यहां खेत के एक हिस्से को अपना शिकार बनाता है उसके बाद धीरे-धीरे यह पूरे खेत में फैल जाता है और फसल का रंग पीला पड़ जाता है। यह एक प्रकार का पाउडर होता है, जब किसान अपने खेत में से निकलते हैं तो वह उसके कपड़ों पर लग जाता है यह इसकी मुख्य पहचान है। इस गेहूं के पौधों पर पीला रंग की धारियां भी बन जाती है । अगर कोई किसान भाई खेत में इस प्रकार के लक्षण देखता है ,तो तुरंत वह कृषि विशेषज्ञों से मिलकर इसका उपचार करें।

खेत में क्यों होता है इसका प्रकोप

कृषि विशेषज्ञ ने जानकारी देते हुए बताया कि जिस खेत में हम फसल के उस बीज को लगाते हैं । जिसमें पहले पीले रतवा का प्रकोप था उस फसल में इसका ज्यादा प्रकोप देखने को मिलता है या फिर जिस खेत में ज्यादा नमी होती है उस खेत में भी इसका प्रकोप देखने को मिलता है। वही किसान कई बार पैदावार ज्यादा निकालने के लिए खेत में ज्यादा यूरिया डाल देते हैं उस खेत में नमी बनी रहती है और उसमें भी इसका प्रकोप देखने को मिलता है।

फसल का उत्पादन पर पड़ता है इसका प्रभाव

उन्होंने बताया कि अगर समय रहते हैं इसका प्रबंध न किया जाए तो यह धीरे-धीरे पूरे खेत में इसका प्रभाव फैल जाता है। जिसके चलते पैदावार में काफी गिरावट आती है। अगर समय रहते किसान इसका प्रबंध न करे तो यह खेत में काफ़ी उत्पादन पर प्रभाव डाल देता है। यह एक प्रकार का फंगीसाइड होता है जो पौधों को अपने प्रकोप से सूखा देता है। पौधे का जो रस होता है उसको यह चूस लेता है और पौधा सूख जाता है। जिसके चलते उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

पीला रतवा के प्रकोप को रोकने के लिए की जा रही नई किस्म तैयार

उन्होंने बताया कि पिछले काफी समय से इसका प्रभाव काफी देखने को मिला है। जिसके चलते गेहूं संस्थान के वैज्ञानिक इसके ऊपर काम कर रहे हैं और अब गेहूं संस्थान ऐसे नए बीज तैयार कर रहे हैं जिसमें इसका प्रभाव कम होता है ताकि किसानों को नुकसान होने से बचाया जा सके। मौजूदा समय में जो भी बीज संस्थान तैयार करते हैं। जिसके चलते इन बीजो में इस बीमारी से लड़ने की क्षमता होती है जिसके चलते गेंहू पर इसका प्रभाव कम देखने को मिलता है।

कैसे करें नियंत्रित

उन्होंने बताया कि कुछ ऐसी गेहूं की किस्म चयनित की गई है जिनमें इसका प्रकोप ज्यादा होता है किस उस किस्म को लगाने से बचे, अगर उसके बावजूद भी किसान अपने खेत में इस बीमारी को देखते हैं तो उसके लिए किस 200 मिलीलीटर प्रॉपिकॉनाजोल नामक दवाई 200 लीटर पानी में मिलकर अपने खेत में स्प्रे करें. ऐसा करने से वह इस पर नियंत्रित कर सकते हैं और एक अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

Connect With Us: Twitter Facebook