अक्सर मां-बाप इस बात को नहीं समझ पाते कि उनके किस व्यवहार का बच्चों पर क्या असर हो रहा है। जो बातें या व्यवहार मां-बाप के लिए सामान्य हैं, वे उनके बच्चों को बहुत गहरे तक प्रभावित करती हैं, यहां तक कि उनसे बच्चों का भविष्य बदल जाता है, इसलिए मां-बाप के लिए यह समझना बहुत आवश्यक है कि वे बच्चों से कैसा व्यवहार करें।
आप शायद यह जानकर हैरान होंगे कि कैरिअर की भागम-भाग में उलझे होने के कारण पिता बनने पर मैं जिस ओर ध्यान नहीं दे सका था, आठ वर्ष पूर्व जब मैं पहली बार दादा बना तो मैंने उस विषय की ओर ध्यान देना शुरू किया और मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि मैं कितना अनाड़ी था।
ज्यादातर भारतीयों की तरह पेरेंटिंग के मामले में मेरी अज्ञानता भी बहुत गहरी थी। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि अगर आपका बच्चा आपसे बार-बार झूठ बोलता है तो इसका मतलब है कि आप बच्चे की शरारतों पर उसे जरूरत से ज्यादा डांटते-फटकारते हैं। बच्चे में अगर आत्म विश्वास की कमी है तो इसका कारण यह है कि आप बच्चे का हौसला बढ़ाने के बजाए उसकी कमियों के कारण उसकी आलोचना करते रहते हैं या उपदेश देते रहते हैं।
अगर आपका बच्चा हौसलेमंद नहीं है तो इसका कारण यह है कि आप हर काम में बिना जरूरत उसकी मदद करने लगते हैं और उसे खुद काम करने का मौका नहीं देते। इसी प्रकार, यदि आपका बच्चा बहुत जल्दी गुस्से में आ जाता है तो इसका कारण है कि आप उसके बुरे व्यवहार के बारे में तो उसे तुरंत जता देते हैं, या बिगड़ पड़ते हैं लेकिन वो जो अच्छे काम करता है, उसकी प्रशंसा नहीं करते, और यह मान लेते हैं कि ये करना तो उसका फर्ज ही था। अगर आपके बच्चे में ईर्ष्या का भाव बहुत अधिक है तो इसका कारण यह है कि आप उसे तभी शाबासी देते हैं जब वह कोई काम सफलतापूर्वक संपन्न कर दे, लेकिन यदि वह काम में सफल न हो पाये पर पहले से बेहतर हो जाए तो आप उसका हौसला बढ़ाना भूल जाते हैं। मान लीजिए कि बच्चा इम्तिहान में पास हो गया तो आप उसे मिठाई खिलाते हैं, पर अगर उसके नंबर सिर्फ 15 प्रतिशत आये और वह फेल हो गया तो डांट पड़ती है। यहां तक तो फिर भी कुछ ठीक है, पर अगर अगले साल भी वह फेल हो गया लेकिन इस बार उसने कुछ ज्यादा मेहनत की थी और उसके नंबर 25 प्रतिशत हो गये, तो आपको क्या करना चाहिए?
ऐसी स्थिति में आपको बच्चे से ये कहना चाहिए कि नालायक तू दूसरी बार भी फेल हो गया, या ये कहना चाहिए कि शाबास तूने 10 प्रतिशत नंबर बढ़ा लिए, अगले साल पूरी मेहनत कर और पास हो के दिखा। मेरी इस बात पर जरा गहराई से विचार कीजिएगा। आत्म विश्वास का इतना फर्क पड़ता है कि जीवन ही बदल जाता है। बच्चे के साथ जो व्यवहार हो रहा है वो मां की ओर से है, पिता की ओर से है, परिवार के किसी अन्य सदस्य की ओर से है या बच्चे के अध्यापक कर रहे हैं, इसका सीधा-सीधा असर बच्चे के भविष्य पर पड़ेगा, इसलिए इस मामले में बहुत सावधानी की आवश्यकता है। स्कूल-कालेज जो सिखा रहे हैं, वो रोजगार की शिक्षा है, नौकरी मिल जाए, उद्यमी बन जाएं, अच्छी आय हो जाए।
उसका संबंध ऐसे जीवन से नहीं है जिसमें स्वास्थ्य है, सम्मान है, सफलता है और खुशियां हैं, इसलिए अभिभावक के रूप में हमें उन बातों का ज्ञान भी होना चाहिए जिनसे हमारी पीढ़ियां सुधर जाती हैं या बिगड़ जाती हैं। जब मैं छोटा था तो मेरी मां मुझे रोज रसोई में अपने साथ बैठा लेती थीं, और मुझे दिखाती थीं कि खाना बनाने से पहले उन्होंने रात को राजमांह भिगो कर रखे, सब्जी बनाने के लिए अदरक, प्याज, लहसुन वगैरह छीले-काटे, मसाला पीसा। मेरी मां मुझे वह सब करते हुए दिखाती थीं और समझाती थीं कि जो खाना हमने पंद्रह मिनट में खाकर खत्म कर लिया, वह खाना कितनी मेहनत से बनता है। वह अनाज हम तक पहुंचने में मानो किसान का खून निचोड़ लेता है। किसान दिन-रात मेहनत करता है, खेत जोतता है, बीज डालता है, पानी देता है, खाद देता है, खर-पतवार साफ करता है, फसल की रखवाली करता है, फसल काटता है। महीनों लग जाते हैं तब फसल तैयार होती है। वे यह भी कहती थीं कि जो खाना हम खाते हैं उसमें पिता की कमाई और मां का प्यार छिपा है। उसे बर्बाद नहीं कर सकते।
मेरी मां ने मुझे अनाज की और भोजन की इज्जत करना सिखाया। खाना खाने से पहले, किसान का धन्यवाद करना, माता-पिता का धन्यवाद करना और भगवान का धन्यवाद करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा था, आज भी है। मेरी मां ने मुझे परिश्रम की महत्ता समझाई। उसका परिणाम यह था कि मैंने किसी भी तरह के काम में कभी शर्म नहीं की। दुनिया का कोई भी काम मेरे लिए छोटा नहीं है। मेरी मां ने मुझे परिवार का आदर करना सिखाया जिसका अर्थ है कि हमें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे परिवार की शान में फर्क आए। उन्होंने मुझे सिखाया कि किसी भी हालत में झूठ बोलना बुरी बात है, इससे मुझमें नैतिक साहस आया कि मैं सच बोल सकूं, हर हालत में सच बोल सकूं और अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकूं। उन्होंने मुझे जीवन की इज्जत करना सिखाया। मैं धन का जोखिम ले सकता हूं, जीवन का नहीं। मैं कभी भी गाड़ी इस तरह नहीं दौड़ाउंगा कि दुर्घटना हो जाए और जान चली जाए। जीवन के आदर का दूसरा अर्थ है कि हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें। संसार की सारी नेमतों के लिए मुझे उन्होंने भगवान का धन्यवाद करना सिखाया। आप जिस भी धर्म को मानते हैं, जिसे भी अपना इष्ट देव मानते हैं, आप चाहे उसे परमात्मा कहें, वाहेगुरू कहें, अल्लाह कहें, जीसस कहें, उसका स्मरण कीजिए। आज अभी उस परमात्मा का धन्यवाद दीजिए, जिसने आपके लिए अनाज बनाया, फल-फ्रूट बनाए, पेड़-पौधे बनाए, रिश्ते बनाए, परिवार बनाया। यह ऐप बिलकुल मुफ्त है। इस ऐप में कुछ नहीं बिकता। आप इसे प्ले स्टोर से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं और जीवन की हर खुशी के लिए परमात्मा का धन्यवाद कर सकते हैं। सार यह है कि अपने बच्चों के बुरे व्यवहार पर रोक लगाइए पर उनके अच्छे व्यवहार के लिए उन्हें शाबासी भी दीजिए।
पी. के. खुराना
(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)