इस कोरोना काल में एकबार फिर से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का मुद्दा गरमाने की कोशिश चल रही है। याद रहे कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो साल पहले असम के लखीमपुर में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि मोदी सरकार असम को कश्मीर नहीं बनने देगी और इसीलिए एनआरसी को लागू किया गया है ताकि प्रत्येक घुसपैठिए को चुन-चुनकर निकाला जा सके। शाह ने असम के बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करने की घोषणा की थी। पिछले साल 31 अगस्त को जब असम एनआरसी की अंतिम सूची सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में प्रकाशित हुई और 3.3 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19 लाख लोगों के नाम सूची से बाहर रह गए तो बीजेपी को सदमा लगा था। सूची से बाहर रहने वालों में मुसलमानों के साथ हिन्दू भी थे जो निर्धारित कागजात नहीं पेश करने के चलते सूची से बाहर रह गए थे। बीजेपी और संघ परिवार की उस कथित काल्पनिक थ्योरी के साथ एनआरसी की अंतिम सूची मेल नहीं खाती थी कि असम में करोड़ों बांग्लादेशी घुसपैठिए रहते हैं, जिनकी शिनाख्त कर डिटेंशन सेंटर में बंद करने की जरूरत है। यही वजह है कि बीजेपी ने इस एनआरसी को मानने से इनकार कर दिया और अमित शाह ने कहा कि पूरे देश के साथ असम में नए सिरे से एनआरसी अपडेट की प्रक्रिया चलाई जाएगी। जिस तरह नागरिकता साबित करने के लिए एनआरसी प्रक्रिया के दौरान कठोर मापदण्डों को अपनाया गया और खास तौर पर मुसलमानों को बार-बार कागज दिखाने के लिए मजबूर किया गया, उसे देखते हुए किसी विदेशी का नाम सूची में शामिल होने का आरोप निराधार प्रतीत होता है। उस दौरान मुसलमानों को भीषण मानसिक-आर्थिक यातना से होकर गुजरना पड़ा। दर्जनों व्यक्तियों ने खुदकुशी कर ली। ऐसे कई मुसलिम व्यक्तियों को पकड़कर डिटेंशन कैंप में बंद कर दिया गया जिनके पास नागरिकता के सारे कागजात हैं।
कहा जा रहा है कि अब असम में एनआरसी के अधिकारियों ने तैयार रजिस्टर से कथित अयोग्य नामों को हटाने का आदेश दिया है। इससे पहले राज्य की बीजेपी सरकार एनआरसी की आलोचना करते हुए 10-20 प्रतिशत नामों का फिर से सत्यापन करने की बात करती रही है। राज्य के सभी जिÞला उपायुक्तों को 13 अक्टूबर को लिखे पत्र में एनआरसी के राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा ने बताया है कि कुछ अयोग्य व्यक्तियों के नाम एनआरसी की अंतिम सूची में पाये गए हैं, जिन व्यक्तियों को विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किया गया या चुनाव अधिकारियों द्वारा संदिग्ध मतदाता (डी वोटर) के रूप में चिह्नित किया गया या जिनके मामले विदेशी ट्रिब्यूनल के पास विचाराधीन हैं। एनआरसी की तैयारी को नियंत्रित करने वाले कानूनों के अनुसार ऐसी श्रेणियों में आने वाले व्यक्तियों को एनआरसी से बाहर रखा जाना चाहिए। शर्मा ने एनआरसी के जिÞला प्रभारियों को ह्यऐसे नामों को हटाने के लिए स्पीकिंग आॅर्डर लिखने के निर्देश दिए। विशेष रूप से व्यक्ति की पहचान का पता लगाने के बाद यह कदम उठाने के लिए कहा।
शर्मा ने लिखा कि जहां तक व्यक्ति की पहचान का संबंध है, सत्यापन के दौरान अनिवार्य रूप से व्यक्ति की सही पहचान करने की आवश्यकता होगी ताकि भविष्य में कोई अस्पष्टता उत्पन्न न हो।
उन्होंने लिखा है कि इसलिए आपसे ऐसे व्यक्तियों की सूची प्रस्तुत करने का अनुरोध किया जाता है जो एनआरसी में शामिल होने के लिए पात्र नहीं हैं, साथ ही ऐसे नामों के विलोपन के लिए आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रत्येक मामले के कारणों को उचित ठहराते हुए स्पीकिंग आॅर्डर देने का अनुरोध भी किया जाता है। शर्मा ने मीडिया को बताया है कि हाँ, हमने घोषित विदेशियों, संदिग्ध मतदाताओं और ऐसे व्यक्तियों के नामों को एनआरसी से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिनके मामले विदेशी ट्रिब्यूनल के पास विचाराधीन हैं। नामों की सूची अभी भी कई जिÞलों से आ रही है और अभी एनआरसी में इस तरह के गलत निष्कर्षों की कुल संख्या पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। पूर्वोत्तर मामलों के जानकार दिनकर कुमार कहते हैं कि इस तरह के गलत बहिष्कार के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि एक सिंक्रनाइज रीयल-टाइम डेटाबेस की कमी है जो एनआरसी अधिकारियों को एक संदिग्ध ह्यविदेशीह्ण की स्थिति को दशार्ता हो। अधिकारियों ने कहा कि एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाया जाएगा जो घोषित या संदिग्ध विदेशियों के डेटाबेस को सुव्यवस्थित करेगा, जैसे विदेशी ट्रिब्यूनल में मामलों की स्थिति और राज्य पुलिस की सीमा शाखा द्वारा जांच। असम सरकार ने दोहराया है कि वह एनआरसी के पुन: सत्यापन की अपनी माँग पर डटी हुई है- सीमावर्ती जिÞलों में 20% और अन्य जगहों पर एनआरसी में शामिल नामों में 10%। यहाँ तक कि उसने पूर्व एनआरसी समन्वयक प्रतीक हाजेला की आलोचना भी जारी रखी है और उनको गलत समावेशन और बहिष्करण के साथ एक दोषपूर्ण एनआरसी तैयार करने के लिए जिÞम्मेदार बताया है।
असम के मुख्यमंत्री सबार्नंद सोनोवाल ने इस महीने की शुरूआत में डिब्रूगढ़ में एक रैली में कहा कि हम एक सही एनआरसी चाहते हैं। जो एनआरसी अभी तैयार हुआ है वह दोषपूर्ण है। हमने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि असम के लोग इस एनआरसी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। कई अवैध विदेशियों के नाम इसमें शामिल हैं। एनआरसी में केवल वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम शामिल होने चाहिए।
असम-मेघालय कैडर के 1995-बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी प्रतीक हाजेला ने 2013 के बाद एनआरसी की तैयारी की कवायद का नेतृत्व राज्य समन्वयक के रूप में किया था और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल उनको असम से बाहर स्थानांतरित कर दिया गया। राज्य सरकार के साथ उनके संबंधों के बिगड़ने के कारण उनके तबादले की नौबत आई थी। हाजेला को शर्मा द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जो असम सिविल सेवा के अधिकारी हैं, जिन्होंने 2014 से फरवरी 2017 तक एनआरसी के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया। जिन 19 लाख लोगों के नाम एनआरसी से बाहर रखे गए उनको एक साल बाद भी अस्वीकृति की पर्ची जारी नहीं की गई है और उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। इसी अस्वीकृति पर्ची के सहारे वे विदेशियों के न्यायाधिकरणों में बहिष्करण के खिलाफ अपील कर सकते हैं। अधिकारियों ने कहा है कि कोरोना संकट की वजह से अस्वीकृति पर्ची जारी नहीं हो पाई है। इसके अलावा शर्मा कह चुके हैं कि उन्होंने जारी किए जाने वाले कुछ आदेशों में कई विसंगतियां पाईं और इसलिए फिर से जांच करने का निर्देश दिया और अभी जांच जारी है।