कैंसर अब तक की सबसे पुरानी हेल्थ डिजीज में से एक है। और लक्षणों को नेगलेक्ट करने और इसे अपने शरीर में बढ़ने देने के बजाय खतरनाक हेल्थ इश्यूज का इनिशियल स्टेज में पता लगाना बेहतर है। इसलिए हेल्थ एक्सपर्ट्स वार्न करते हैं कि बुखार, सांस फूलना और एनर्जी की कमी सिर्फ थकान से कहीं ज्यादा हो सकती है। ऐसे लक्षण लिम्फोमा का उलट हैं जो एक तरह का ब्लड कैंसर है और दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले कैंसर में से एक है। इसलिए क्यूंकि सितंबर को ब्लड कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में माना जाता है, यहां हम लिम्फोमा के बारे में कुछ जानकारी के साथ हैं जो ब्लड कैंसर का एक रूप है और अगर जल्दी पता चल जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है।
लिम्फोमा लिम्फोसाइट्स (व्हाइट ब्लड सेल्स) का अनकंट्रोल्ड मल्टीप्लीकेशन है और शरीर की इम्यून सिस्टम में शुरू होता है। ये लिम्फ नोड्स, प्लीहा, बोन मैरो, ब्लड या दूसरे आॅर्गन्स में डेवलप हो सकता है, आखिरकार एक ट्यूमर को डेवलप कर सकता है। विशेषज्ञ का मानना है कि लिम्फोमा सबसे आम ब्लड कैंसर है, और सभी कैंसर का तीन से चार प्रतिशत हिस्सा होता है। आंतों का लिम्फोमा भारत में विशेष रूप से आम है। लिम्फोमा दो तरह का होता है। हॉजकिन और नॉन-हॉजकिन। नॉन-हॉजकिन लिंफोमा आलसी, आक्रामक या बहुत आक्रामक व्यवहार का हो सकता है। कभी-कभी लिम्फोमा को क्लीनिकली रूप से ससपेक्टेड माना जाता है और ग्लैंड की सूजन और बुखार की वजह से क्षय रोग के रूप में माना जाता है।
लिम्फोमा के लक्षण
लिम्फ नोड्स की सूजन बुखार,रात को पसीना अनएक्सप्लेंड वेट लॉस एनर्जी की कमी, डिजीज सामान्य लक्षणों की नकल करता है और अगर लक्षण कुछ हफ्तों तक बने रहते हैं तो पूरी तरह से जांच की सलाह दी जाती है।
वजह
डिजीज उम्र और जेंडर स्पेसिफिक नहीं है, लेकिन बच्चे और एडवांस्ड आयु वर्ग के लोग ज्यादा संवेदनशील होते हैं। हालांकि लिम्फोमा की वजह से स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं हैं, माना जाता है कि उनके कई जेनेटिक लिंक्स हैं और ये केमिकल कार्सिनोजेन्स/दवाओं और वायरल इनफेक्शन की वजह से भी होते हैं।
ट्रीटमेंट और सावधानियां
ट्रीटमेंट के पहलू पर,एक्सपर्ट्स ने सिफारिश की कि लिम्फोमा के रोगी पर्सनल हाइजीन बनाए रखें, पर्यावरण के संपर्क से बचें और ताजा भोजन करें। जब आप शुरू में ट्रीटमेंट शुरू करते हैं, तो भोजन में पोटेशियम की मात्रा कम होनी चाहिए क्योंकि लिम्फोमा सेल्स फटने पर पोटेशियम छोड़ती हैं। बाद में, उन्हें हेल्दी फूड लेना चाहिए जिसमें असाधारण रूप से साफ फल और हरी सब्जियां शामिल हों। अगर रोगी को एक स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट और एंटीबायोटिक की एक खुराक दिए जाने के बाद भी लक्षण जारी रहते हैं, तो मन में हाइ लेवल का सस्पिशन डेवलप होना चाहिए। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कैंसर के टाइप्स के आधार पर लिम्फोमा की इलाज दर बहुत ज्यादा होती है, अगर समय पर इसका इलाज किया जाए।
इसकी सफलता दर 90-95 फीसदी है। लेकिन ट्रीटमेंट इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी किस लिंफोमा से पीड़ित है और उसकी कंडीशन क्या है। रोग के पहले दो स्टेप्स में ठीक होने की दर 95 प्रतिशत तक होती है। बाद के दो स्टेज, तीन और चार में, सफलता दर कहीं 60 से 70 प्रतिशत के बीच है। इस तरह की हाई क्योर रेट इसलिए है क्योंकि लिम्फोमा एक कीमो-सेंसिटिव बीमारी है। जल्दी डायग्नोसिस और प्रोपर ट्रीटमेंट इस हाइ क्योर टाइम का मंत्र है।