आज बांझपन एक बहुत ही आम समस्या बन गई है। इस समस्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारे देश में प्रत्येक 6 में से 1 कपल बांझपन की समस्या से जूझ रहा है। जहां देश के आंकड़ों को देखते हुए ये एक साधारण समस्या दिखाई पड़ती है वहीं दूसरी ओर जो कपल इस समस्या से जूझ रहे हैं, उनके लिए ये एक बहुत ही गंभीर समस्या है। बांझपन सिर्फ एक कपल के लिए ही नहीं बल्कि दो परिवारों के लिए भी एक बड़ा सिरदर्द बन गया है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) से कैसे बांझपन से मुक्ति मिल जाती है।
आईवीएफ बांझपन से मुक्ति दिलाने का एक बहुत ही आसान और सुरक्षित उपाय है। आईवीएफ के अंतर्गत महिला के 10 से 15 अंडे बनाए जाते हैं और फिर उसे बाहर निकालकर पुरुष के वीर्य के साथ मिलाकर उनका फर्टिलाइजेशन किया जाता है। जिसके बाद एक सही समय पर उसे महिला के यूट्रस में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस दौरान महिला की परस्पर निगरानी रखी जाती है और उसके यूटरस में डाले गए फर्टिलाइज्ड अंडों पर भी नजर रखी जाती है। सामान्यत: इस प्रक्रिया के तहत महिलाएं अपने गर्भ में बच्चा पालने में सफल हो जाती हैं। बताते चलें कि प्राकृतिक रूप से एक महिला सिर्फ एक अंडा ही बनाती है लेकिन आईवीएफ में 10 से 15 अंडे बनाए जाते हैं।
आईवीएफ से पहले किए जाते हैं कई तरह के टेस्ट
आईवीएफ से पहले और बाद में कपल के कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। यहां सबसे ज्यादा जरूरी टेस्ट आईवीएफ से पहले होते हैं। इसमें कपल का शुगर लेवल, हार्मोन्स, शुक्राणु आदि चेक किए जाते हैं। यदि इन टेस्ट में कहीं भी गड़बड़ी होती है तो आईवीएफ के बावजूद सफलता नहीं मिल पाती। इसलिए आईवीएफ से पहले सभी जरूरी टेस्ट किए जाते हैं और यदि वे ठीक नहीं हैं तो पहले उन्हें ठीक किया जाता है। जिसके बाद ही आईवीएफ की प्रक्रिया शुरू की जाती है। आईवीएफ का सक्सेस रेट 40 फीसदी है। पहली बार आईवीएफ कराने वाले 100 में 40 कपल ही माता-पिता बन पाते हैं। हालांकि, पहली बार में असफलता मिलने के बाद