क्या होता है जब आप ‘अकेले’ हों

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अकेलेपन व तन्हाई में बहुत बड़ा अंतर है, जो व्यक्ति अपने अकेलेपन में खुश रहता है वह इन दोनों के बीच के अंतर को भी भली-भांति समझ लेता है

सद्गुरु जग्गी वासुदेव
एक बार महात्मा बुद्ध से उनके शिष्य ने सवाल किया ‘क्या अकेला चलना ज्यादा बेहतर है या किसी के साथ? इस सवाल के जवाब में बुद्ध बोले ‘किसी मूर्ख व्यक्ति के साथ चलने से बेहतर है आप अकेले ही यात्रा करें…..अगर आपको एक सफल यात्रा करनी है और यह भी चाहते हैं कि आप इस यात्रा को जल्द से जल्द पूरा कर लें तो आपका अकेला चलना ही बेहतर है। लेकिन अगर आपको किसी लंबी यात्रा पर निकलना है तो किसी का साथ होना सही है… लेकिन यह बात सबसे अधिक महत्व रखती है कि जिस व्यक्ति के साथ आप चल रहे हैं वह कौन है!! हम इस दुनिया में अकेले आते हैं और अकेले ही जाते हैं… जो व्यक्ति अकेला रहना नहीं जानता उसके साथ किसी का होना जटिल हालात पैदा कर सकता है।’

किसी खास की तलाश
हम मनुष्य अपने जीवन में किसी खास की तलाश करते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि हमें अकेला रहना नहीं भाता। अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए हम अलग-अलग प्रकार के समझौते करते हैं, हर स्थिति में खुद को ढालने की कोशिश करते हैं। अकेला ना रहना पड़े इसके लिए हम अपने जीवन की बागडोर किसी अन्य व्यक्ति के हाथ में सौंपने में भी देर नहीं करते, बगैर ये सोचे कि क्या वह व्यक्ति हमारे जीवन के लायक है भी या नहीं…!!!

अकेला रहना
ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो यह सोचते हैं कि अकेला रहना सही नहीं है। जो लोग अकेले रहते हैं उन्हें या तो एंटी सोशल का टैग दे दिया जाता है या फिर उन्हें बेहद अहंकारी प्रवृत्ति का मान लिया जाता है। जबकि वे अपने अकेलेपन में काफी खुश और संतुष्ट रहते हैं, उनके लिए यह मजबूरी नहीं बल्कि पसंदगी है। उन्हें खुश रहने के लिए किसी और का साथ नहीं चाहिए…वे अपनी कंपनी में ही काफी एंजॉय कर लेते हैं।

मान-सम्मान
जो लोग अकेले रहते हैं उन्हें समाज में ज्यादा मान-सम्मान भी नहीं मिलता। एक तो वो खुद किसी को अपने जीवन में हस्तक्षेप नहीं करने देते, दूसरा लोग भी उनसे जुड़ने की कोशिश नहीं करते, उनके विषय में अलग-अलग धारणाएं बना लेते हैं।

सोलो ट्रिप्स है च्वॉइस
मेरी एक दोस्त है वह हमेशा सोलो ट्रिप्स पर जाती है, और मेरे लिए हैरानी की बात तो यह है कि वह इन ट्रिप्स का मजा भी उठाती है। जब उससे अकेले लंच पर जाने, अकेले ट्रिप्स पर जाने के बारे में सवाल करो तो उसके जवाब वाकई कंविंसिंग होते हैं……. ‘कम से कम मैं अपने अनुसार घूम सकती हूं, अपनी च्वॉइस का भोजन कर सकती हूं, अगर लेट निकलने का मन हो या जल्दी जाने का मन हो तो किसी का इंतजार तो नहीं करना पड़ता….!’

जीवन से संतुष्टि
मैं भी आप सभी की तरह ये सोचती रहती हूं कि आखिर कोई अकेला रहकर क्या आनंद ले सकता है… भला अकेलेपन में कैसा मजा.. !! मेरे लिए भी ‘अकेलेपन का आनंद’ एक पहेली जैसा ही था, लेकिन जब मैंने कुछ ऐसे लोगों से बात की जो अधिकांशत: अकेले ही रहते हैं, कुछ उदाहरण अपने सामने महसूस किए तब जाकर समझ आया कि वो लोग मुझसे कहीं ज्यादा खुश और अपने जीवन से संतुष्ट थे।

अपवाद
यहां मैं उन लोगों के बारे में बिल्कुल बात नहीं करूंगी जो दूसरों से दूर रहने के लिए तन्हा रहते हैं… यहां चर्चा उन लोगों की होगी जो स्वयं के निकट रहने के लिए अकेले रहते हैं।

अकेलापन
अकेलापन आपको भिन्न-भिन्न तरह से खास बनाता है, इसके कई तरह के भौतिक लाभ हैं, जिसमें सबसे पहली चीज है कि आप अपने अनुसार जीवन का मजा उठा सकते हैं, आपको किसी की रजामंदी की आवश्यकता नहीं होती। दूसरा, आप अन्य लोगों से ज्यादा प्रॉडक्टिव भी होते हैं, आपको किसी चीज के लिए ना तो माफी मांगनी पड़ती है और ना ही किसी से परमिशन लेनी होती है।

आध्यात्मिक पक्ष
आपके अकेलेपन के कुछ बेहद महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पक्ष भी हैं, जिसे आप नकार नहीं सकते। जो व्यक्ति एकांत वातावरण में अपने विचारों और मनोभावों के साथ रहता है वह स्वयं को तो बेहतर तरीके से समझने लगता ही है, साथ ही दूसरों के लिए भी उसके दिल में जगह बनने लगती है। वह मानवता की गहराई से अवगत होता है……..ऐसा इंसान भले ही अपनी भावनाओं का प्रदर्शन ना कर पाए लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि उसके भीतर अन्य लोगों से कहीं ज्यादा संवेदनशीलता होती है। आप को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन आपको पसंद करता है और कौन नहीं, आप स्वयं से प्रेम करते हैं और ये बात आपके लिए काफी है।

अकेला इंसान
जब इंसान अकेला रहना सीख जाता है तब दूसरे लोगों के साथ उसका वास्तविक जुड़ाव होता है, क्योंकि यहां जरूरत और स्वार्थ पूरी तरह समाप्त हो जाता है। अगर कुछ शेष रहता है तो वह उस रिश्ते और सामने वाले व्यक्ति का महत्व।

भौतिक रूप से अकेला रहना
यहां अकेलेपन का अर्थ केवल भौतिक रूप से अकेला रहना है…ऐसा नहीं है कि वे लोग अपने परिवार या निकट के लोगों से जुड़ाव नहीं रखते या फिर उनके दोस्त नहीं होते। अकेलेपन और तन्हाई में एक बहुत बड़ा अंतर है… जो व्यक्ति अपने अकेलेपन में खुश रहता है वह इन दोनों के बीच के अंतर को भी भली-भांति समझ लेता है। इस स्थिति में आपका स्वयं के साथ जुड़ाव मजबूत होता है, आप आध्यात्मिक रूप से सशक्त होते हैं… आप अलग-अलग प्रकार से खुद के बारे में ज्यादा गंभीरता से सोचने लगते हैं।

मनुष्य का दिमाग
प्रकृत्ति की समस्त रचनाओं में मनुष्य ही एकमात्र ऐसी कृति है जो अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर वह सब हासिल कर सकता है जो शायद कभी उसने सोचा भी ना हो…। मनुष्य का दिमाग असीमित विचारों को सहेजकर रख सकता है.. अन्य जीव-जंतु केवल उसी आधार पर रह जाते हैं जिस पर उनकी रचना हुई है.. लेकिन मनुष्य शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि अपने दिमाग और इच्छाशक्ति के बल पर वह क्या नहीं पा सकता। इंसान चाहे तो वह स्थिर रहकर अपने जीवन में हो रही घटनाओं को देख सकता है… और चाहे तो उन्हें अपने पक्ष में करने का प्रयत्न भी कर सकता है, यह व्यक्तिपरक है। यकीन मानिए जिसने जीवन का यह रहस्य समझकर अकेलेपन में खुद को तलाश लिया उसे हरा पाना वाकई बेहद मुश्किल हो सकता है।