नई दिल्ली। भारत के लिए चंद्रयान-2 एक अति महत्वपूर्ण मिशन था। चंद्रयान-2 का मिशन लगभग नब्बे प्रतिशत तक सही चल रहा था लेकिन केवल चंद्रमा की सतह पर उतरने के ठीक पहले विक्रम लैंडर का संपर्क इसरो से टूट गया और उसकी हार्ड लैंडिंग चंद्रमा पर हुई। वैज्ञानिक पहले ही इसकी लैंडिंग को लेकर कह रहे थे कि यह एक जटिल प्रक्रिया होगी और साफ्ट लैंडिंग कराना आवश्यक था। यह पहली बार था कि इसरो इस तरह का कार्य कर रहा था। लेकिन इसरो इसमें सफल नहीं हो पाया और विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग हुई। अब एक बार फिर से चंद्रयान-2 का अपडेट आया है। भले ही चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से अब तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है, मगर इसरो ने अब तक उम्मीदें नहीं छोड़ी है। चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की तलाश और उससे संपर्क साधने की कोशिश में जुटा नासा ने कहा है कि अब तक विक्रम लैंडर से कोई डाटा प्राप्त नहीं हुआ है। हालांकि, इसरो ने कहा है कि लूनर सरफेस का अध्ययन करने के लिए उसका पेलोड बेहतर काम कर रहा है। चंद्रयान 2 के लैंडर और रोवर से चंद्र सतह की फिजिकल आॅबजर्वेशन के डेटा के अभाव में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा है कि सोडियम, कैल्शियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, टाइटेनियम और लोहे जैसे तत्वों का पता लगाने के लिए पेलोड को जैसे काम करना चाहिए, वैसे काम कर रहा है। इतना ही नहीं, इसरो को यह भी उम्मीद है कि चंद्रमा की सतह पर जैसे ही दिन होगा, एक बार फिर से विक्रम लैंडर से संपर्क साधने की कोशिश तेज कर दी जाएगी।
गौरतलब है कि बीते सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ से कुछ मिनट पहले ‘विक्रम का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। इसके बाद से ही बेंगलुरु स्थित अंतरिक्ष एजेंसी लैंडर से संपर्क स्थापित करने के लिए ”हरसंभव कोशिशें कर रही है, लेकिन चंद्रमा पर रात शुरू होने के कारण 10 दिन पहले इन कोशिशों को स्थगित कर दिया गया था। हालांकि, बाद में नासा के आॅर्बिटर ने जो तस्वीरें जारी की थी, उसमें उसने कहा था कि विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग हुई है।
मंगलवार को इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि ‘अभी यह संभव नहीं है, वहां रात हो रही है। शायद इसके बाद हम इसे शुरू करेंगे। हमारे लैंडिंग स्थल पर भी रात का समय हो रहा है। चंद्रमा पर रात होने का मतलब है कि लैंडर अब अंधेरे में जा चुका है। उन्होंने कहा, ”चंद्रमा पर दिन होने के बाद हम प्रयास करेंगे। चंद्रयान-2 काफी जटिल मिशन था जिसमें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के अनछुए हिस्से की खोज करने के लिए आॅर्बिटर, लैंडर और रोवर को एक साथ भेजा गया था।
इसरो ने प्रक्षेपण से पहले कहा था कि लैंडर और रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिनों के बराबर होगा। कुछ अंतरिक्ष विशेषज्ञों का मानना है कि लैंडर से संपर्क स्थापित करना अब काफी मुश्किल लगता है।