Bengal Britannia Biscuits Factory, (आज समाज), नई दिल्ली: बिस्किट बनाने के लिए मशहूर कंपनी ब्रिटानिया ने पश्चिम बंगाल में अपनी एक ऐतिहासिक फैक्ट्री बंद कर दी है। कोलकाता के तारातला में 1947 से चल रही यह फैक्ट्री प्रदेश की शान थी। इसमें 150 लोग काम कर रहे थे। कंपनी ने बताया है कि सभी कर्मियों ने अपनी इच्छानुसार वीआरएस ली है और इससे कंपनी का बिजनेस प्रभावित नहीं होगा।
डायजेस्टिव-फ्रेंडली फॉर्मूलेशन के लिए लोकप्रिय थे बिस्किट
ब्रिटानिया के ये बिस्किट अपने डायजेस्टिव-फ्रेंडली फॉर्मूलेशन के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय थे। मतलब लोग मानते थे कि ये बिस्किट आसानी से हजम हो जाते हैं। इसके विज्ञापन का जिंगल था- ‘दादू खाए, नाती खाए, ब्रिटानिया थिन एरोरूट बिस्कुटस’। इसका संदेश यही था कि ब्रिटानिया के इस बिस्किट को हर उम्र के लोग पसंद करते हैं। लेकिन अब न तो दादू और न ही नाती इस बिस्किट का स्वाद चख सकेंगे।
बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस की वसूली को जिम्मेदार ठहराया
बीजेपी नेता अमित मालवीय ने ब्रिटानिया की फैक्ट्री बंद होने के लिए सीपीएम की यूनियनबाजी और तृणमूल कांग्रेस की वसूली को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज की फैक्ट्री का बंद होना बंगाल के पतन का प्रतीक है, जो कभी अपनी सांस्कृतिक समृद्धि और बौद्धिक परिवेश के लिए मशहूर था। फैक्ट्री को सीपीएम की यूनियनबाजी के कारण काफी नुकसान झेलना पड़ा। उधर, तृणमूल कांग्रेस के नेता कुणाल घोष ने बीजेपी द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने कहा है कि फैक्टरी का बंद होना ब्रिटानिया के आंतरिक मैनेजमेंट के मसलों की वजह से है।
70 बर्ष से घरों का अहम हिस्सा था ब्रिटानिया
ब्रिटानिया का थिन एरोरूट बिस्किट, पिछले 70 बर्ष से हमारे-आपके घर का अहम हिस्सा बना हुआ था, जिसका उत्पादन पिछले सप्ताह ही बंद हो चुका है। दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से होती है और महालया की शुरुआत चाय-बिस्किट से। इस चाय-बिस्किट में आमतौर पर बिस्किट ब्रिटानिया थिन एरोरूट ही होते थे।
नैनो कार सहित कई बिजनेस समेट चुके हैं अपना बोरिया-बिस्तर
बता दें कि अशांति के समय में और राजनीतिक उठापटक के बीच बंगाल की इंडस्ट्री ने सबसे ज्यादा दर्द झेला है। 1960 से शुरू हुए आर्थिक बदलावों से शुरुआत होने के बाद अब तक प्रदेश से कई बिजनेस अपना बोरिया-बिस्तर समेट चुके हैं। राज्य की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में सिंगूर में नैनो कार के प्रोजेक्ट को लेकर इतना बड़ा विरोध हुआ था कि टाटा मोटर्स के पास सिंगूर का सपना छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। कंपनी को प्रोजेक्ट को हटाना पड़ा था।