एक नवयुवक जो जल्दी ही बोध को प्राप्त करना चाहता था। वह रोज गुरु से कहे कि कब बोध होगा, कब बोध होगा? एक दिन इस युवक को पता चला कि दूर एक शहर में एक ऐसा गुरु है, जिसके पास लोगों की बड़ी जल्दी उन्नति होती है। वह अपने गुरु के पास जाकर कहता है- गुरुदेव! मैने सुना है एक गुरु हैं, जो जल्दी ही उन्नति करा देते हैं। तो क्या आप अनुमति देंगे कि मैं उन गुरु के पास चला जाऊं? गुरु ने कहा – हाँ, चले जाओ। लम्बी यात्रा करके उस गुरु तक पहुँच गया और वहाँ जाकर जब उस गुरु से मिला तो गुरु ने पूछा कि कहाँ से आए हो? तो उसने अपने बौद्ध -मठ का नाम लिया। सुनकर गुरु के ओंठो पर मुस्कान आ गई और वह मौन रहे। फिर बोले कि ठीक है। फिर वह युवक बीस साल तक उनके पास रहा। बीस साल लग गए उसको साधना करते हुए और बड़े उतार-चढ़ाव आए। फिर एक दिन उसके भीतर साधना का कमल खिल गया। बड़ा आनंदित होकर गुरु के पास गया और प्रणाम करके उनको धन्यवाद देता है और कहता है- आपकी कृपा से अंतत: मेरी इच्छा पूर्ण हो गई? गुरु ने कहा – क्या तुम जानते हो कि मेरा गुरु कौन है? युवक ने कहा – यह तो आज तक मैने पूछा ही नहीं, तो कृपया आज मुझे बता ही दीजिए।
गुरु ने कहा – बेटे! तू जिस गुरु को छोड़ कर आया है, वह मेरा ही गुरु है। जो तुम्हें यहाँ बीस सालों में हुआ है, वह मुझे मेरे गुरु ने दो सालों में दिया था। चूँकि तुमने जब कहा कि तुम वहाँ से आ रहे हो तो इस नाते तू मेरा गुरु भाई था। मुझे तुम पर बड़ी करुणा आ रही थी कि अपने महान गुरु की महिमा को तू पहचान ही नहीं पाया। तू कहीं भटक न जाए इसलिए मैने तुमको यह रहस्य उस समय नहीं बताया और चुपचाप तुमको यहाँ रख रहने की अनुमति दे दी। पर तेरी जल्दबाजी के कारण और तेरी गुरु को जाँचने और परखने की कमी के कारण तूने इतना समय गँवाया है। और मैं यह जानता हूँ कि अगर तुम वहाँ रहते और उन्हीं के पास रहते तो शायद यह कार्य आधे समय में ही हो जाता। क्योंकि गुरु तो गुरु ही है, कोई चेला गुरु के बराबर नहीं हो सकता। आगे गुरु बोले – मैं जिनकी धूल माथे पर लगा कर बुद्धत्व को प्राप्त हुआ था, तू ऐसे महान गुरु को छोड़ कर मेरे पास आया था। इंसान के पास जो होता है, वह उसको पहचान ही नहीं पाता।