अंबाला। ऐसे समय में जब पूरे देश की चुनावी सरगर्मी अपने चरम पर है, तो उत्तर-पूर्वी हिस्से में असम और मेघालय की सीमा पर घने जंगलों के बीच स्थित एक गांव अपनी अलग ही कहानी लिख रहा है। आजादी के इतने सालों बाद भी देश के एक हिस्से को चुनावी मानचित्र में जगह नहीं मिल पाई है, यह चौंकाने वाली बात है। असम में गुवाहाटी से करीब 90 किलोमीटर दूर जंगलों में लोंगटुरी पहाड़ नाम का एक गांव बसता है। एक तरफ पूरा राज्य चुनाव के तीसरे चरण की तैयारियों में जोर-शोर से जुटा हुआ है, वहीं दूसरी ओर लोंगटुरी पहाड़ में चुनाव की जरा सी भी हलचल नजर नहीं आती है। यहां न तो किसी तरह की राजनीतिक चर्चा है, न किसी पार्टी के बैनर-पोस्टर और न ही प्रचार-प्रसार का शोरगुल। कुल 25 परिवारों के इस गांव को अब तक चुनाव के मानचित्र में शामिल नहीं किया गया है। यहां के निवासियों ने कई बार कामरूप जिले के चुनाव दफ्तर में भी शिकायत की, लेकिन अधिकारियों की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। यहां के निवासियों ने व्यवस्था के ऐसे लचर रूप को देखते हुए वोट देने की उम्मीद ही छोड़ दी है। लोंगटुरी पहाड़ से केवल 25 किलोमीटर दूर स्थित बोको टाउन में भाजपा और कांग्रेस के बीच जोरदार टक्कर की तैयारी चल रही है।
उम्मीदवार और कार्यकर्ता खून-पसीना एक कर मेहनत कर रहे हैं। इतने चुनावी हल्ले-हंगामे के बीच लोंगटुरी पहाड़ कहीं खो गया है। यहां न तो किसी ‘गरीबों की पार्टी’ की आवाज पहुंच रही है, और न ही अधिकारियों को यहां के लोगों की वेदना सुनाई दे रही है।