Vijayadashmi Article : विजय दशमी दस पापों का परित्याग

0
79
Vijayadashmi Article : विजय दशमी दस पापों का परित्याग
Vijayadashmi Article : विजय दशमी दस पापों का परित्याग

Vijayadashmi Article | यह हकीकत है, हम सबके अंदर भी किसी न किसी रूप में रावण जिंदा है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी विकारों को हराना होगा। अपने मन के रावण पर विजय पानी होगी। दशहरा हमें यह भी संदेश देता है कि अगर कोई अनैतिकता पर अडिग है तो एक न एक दिन उसका विनाश निश्चित है।

सतेन्द्र सिंह
सतेन्द्र सिंह

भले ही वह रावण जैसा महायोद्धा या मायावी ही क्यों न हो? त्रेतायुग का रावण तो भले ही मर गया, लेकिन दहेज, नशा, भ्रष्टाचार, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, धार्मिक असंतोष, धन की लालसा और हत्या रूपी कलयुगी रावण आज भी समाज में जिंदा हैं। बेखौफ अपना तांडव मचा रहा है।Þ

दशहरा का पर्व काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी सरीखे दस पापों का परित्याग है। इस त्यौहार से किवदंती-दर-किवदंती शताब्दियों से जुड़ी हैं। एक मान्यता यह है, त्रेतायुग में भगवान श्री राम का लंकापति राक्षसेन्द्र रावण पर श्रीविजय की स्मृति का प्रतीक है।

देवताओं और मनुष्यों पर चिरकाल से राक्षसों के अत्याचार रूपी बादलों को चीरकर आज के दिन ही सदाचार का सूर्य आलोकित हुआ था। इस स्वर्णिम दिन ही माता सीता को लंका की अशोक वाटिका से मुक्ति मिली थी। प्रभु श्रीराम के वियोग की ज्वालाओं में धधकते माता सीता के तन और मन को शीतलता की अनुभूति हुई।

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, विजयदशमी के दिन दशहरा मनाने की कहानी मां दुर्गा से जुड़ी हुई है। कहा जाता है, दशमी के दिन मां दुर्गा ने चंडी रूप धारण कर महिषासुर नामक असुर का वध किया था। महिषासुर और उसकी राक्षसी सेना ने अत्याचारों से देवताओं का जीना मुहाल कर दिया था।

मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी फौज से जमकर युद्ध किया और अतंतः 10वें दिन मां दुर्गा ने महिसाषुर का वध कर दिया, इसीलिए अश्विन माह की शारदीय नवरात्र में 10वें दिन दशहरा मनाने की परंपरा है।

अब हमारे सामने यक्ष प्रश्न यह है, क्या हम अपने मन के रावण को मार चुके हैं? मानवता से प्रेम करने वाले हर इंसान के दिमाग में सवाल-दर-सवाल कौंधते हैं। क्या हमास सरीखे दहशतगर्दों के पास दिल नहीं है? क्या वे सभी शस्त्रधारी भेडिए बन गए हैं? क्या वह रावण सरीखे हैं?

हमारे जहन में मणिपुर की जातीय खूनी हिंसा का मंजर भी बार-बार उभर आता है। लोग क्रोध, नफरत और गुस्से को आखिर कब दफन करेंगे। उन्होंने अपने सपनों को जलते हुए देखा है। अपने को लुटते हुए देखा है। मणिपुर से लेकर फिलिस्तीन और इस्राइल वार के दीगर देश में अनगिनत मर्डर, रेप, लूट, अपहरण की घटनाएं देखने और सुनने को मिलती हैं। इसे देखकर यही प्रतीत होता है कि मनुष्य के अंदर का रावण अभी जिंदा है, मरा नहीं है।

गुणों और कर्मों से ही पहचान बनती है। भगवान राम भी अपने स्वभाव, गुणों और कर्मों के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। उन्होंने राजपाट छोड़ 14 साल वनवास में बिताए, लेकिन फिर भी एक श्रेष्ठ राजा कहलाते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य, दया, करुणा, धर्म और मर्यादा के मार्ग पर चलते हुए राज किया।

आज भी बड़े-बुजुर्गों के बीच यदि संस्कृति और सदाचार की बात होती है तो भगवान राम का ही नाम लिया जाता है। भगवान राम के व्यक्तित्व में अनेक गुण समाए हुए हैं। श्रीराम के विशेष गुणों में एक है सहनशीलता और धैर्य। हमें भी अपनी मर्यादा का पालन करना करना चाहिए। आजकल धैर्य नदारद है।

हर चीज शीघ्र-अतिशीघ्र पाने की चाह है। फिर चाहे वह धन हो या सफलता। भगवान राम ने स्वयं राजा होते हुए भी सुग्रीव, हनुमानजी, केवट, निषादराज, जाम्बवंत और विभीषण सभी को समय-समय पर नेतृत्व करने के अधिकार दिए। आपको और हमें भगवान राम की तरह एक आदर्श भाई की भूमिका निभाने की जरूरत है।

भगवान राम के लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण के कारण ही उन्हें आदर्श भाई कहा जाता है। राम ने मित्रता का रिश्ता भी दिल से निभाया। केवट, सुग्रीव, निषादराज और विभीषण सभी उनके परम मित्र थे। मित्रता निभाने के लिए भगवान राम ने कई बार स्वयं भी संकट झेले।

रामचंद्र जी का चरित्र धर्म, ज्ञान, नीति, शिक्षा, गुण, प्रभाव, तत्व और रहस्य से हैं। उनका व्यवहार देवता, ऋषि, मुनि, मनुष्य, पक्षी, पशु आदि सभी के साथ ही प्रशंसनीय, अलौकिक और अतुलनीय है। इनका कोई भी आचरण ऐसा नहीं है, जो कल्याणकारी न हो।

उन्होंने साक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा होते हुए भी मित्रों के साथ मित्र जैसा, माता-पिता के साथ पुत्र जैसा, सीता जी के साथ पति जैसा, भाइयों के साथ भाई जैसा, सेवकों के साथ स्वामी जैसा, मुनि और ब्राह्मणों के साथ शिष्य जैसा, इसी प्रकार सबके साथ यथायोग्य त्यागयुक्त प्रेमपूर्ण व्यवहार किया है। अतः उनके प्रत्येक व्यवहार से हमें शिक्षा लेनी चाहिए। जहां कहीं भी ये सब गुण समाहित हो जाएं वहां ‘रामराज्य’ हो ही जाएगा।

रावण अहंकार और अज्ञानता का प्रतीक है। यह एक राक्षसी विचारधारा है। अगर अहंकार, असामाजिकता और आतंक जैसी राक्षसी बुराइयों का पुतला जलाना ही दशहरा है तो क्यों नहीं, पहले हम अपने अंदर इन प्रवृत्तियों को खत्म करें। असंख्य विकार, अकुंठित वासनाएं, राक्षसी स्वभाव सभी के अंदर गुठली मारे बैठा है, जिस पर ज़रा-सा दबाव पड़ते ही सबका असली चेहरा सामने आ जाता है।

यह बड़ा ही खतरनाक है। यह हकीकत है, हम सबके अंदर भी किसी न किसी रूप में रावण जिंदा है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपी विकारों को हराना होगा। अपने मन के रावण पर विजय पानी होगी। दशहरा हमें यह भी संदेश देता है कि अगर कोई गलत कार्य करने पर अडिग है तो एक न एक दिन उसका विनाश निश्चित है।

भले ही वह रावण जैसा महायोद्धा या मायावी ही क्यों न हो? त्रेतायुग का रावण तो भले ही मर गया, लेकिन दहेज, नशा, भ्रष्टाचार, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, धार्मिक असंतोष, धन की लालसा और हत्या रूपी कलयुगी रावण आज भी समाज में जिंदा हैं। बेखौफ अपना तांडव मचा रहा है।

अंत में कहना होगा, दशहरा प्रेरणा पर्व दुष्प्रवृत्ति से दूर रहने और सद्प्रवत्ति को अपनाने की प्रेरणा देता है। दुराचारी निशाचरों, पापियों या दुर्जनों की कोई जाति नहीं होती, न धर्मात्मा और सज्जनों की ही कोई जाति होती है। दोनों किसी भी धर्म, जाति, राष्ट्र में हो सकते हैं।

व्यक्ति का कार्य और व्यवहार ही स्वयं उसे देवता, दानव और मानव में विभाजित कर देता है। अस्तु इस दशहरा हमें रावण के दुश्चरित्र से दूर रहकर श्रीराम के आदर्श और पवित्र आचरण से प्रेरणा लेनी चाहिए।

(लेखक तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद (यूपी) के एमजेएमसी एल्युमिनाई हैं। इसके अलावा अंग्रेजी, हिन्दी के संग-संग एजुकेशन में परास्नातक हैं।)

यह भी पढ़ें : What Does Ravana’s Ten Heads Represent ? : रावण के दस सिर किन-किन बुराइयों के प्रतीक हैं ?

यह भी पढ़ें : Vijayadashmi 2024 : गुरुकुल और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में श्रीराम

यह भी पढ़ें : Dussehra 2024 : दशहरे के पर्व पर अपने अंदर के रावण को जलाएं

यह भी पढ़ें : Dussehra 2024 : राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का उत्सव