Dussehra, आज समाज: दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व रामायण की उस महाकाव्य कथा की याद दिलाता है, जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। रावण का अंत केवल एक राक्षस के अंत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह हमें यह सिखाने के लिए है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, आखिरकार सत्य, धर्म और नैतिकता की जीत होती है।
अहंकार, घमंड, लालच, ईर्ष्या, हमारे भीतर के रावण
हर साल हम इस दिन रावण के विशाल पुतले जलाते हैं, लेकिन क्या हम सच में इसका मर्म समझ पाते हैं? रावण का पुतला जलाना तो मात्र एक प्रतीकात्मक क्रिया है। असली लड़ाई उस रावण के खिलाफ है, जो हमारे भीतर बैठा है। अहंकार, घमंड, लालच, ईर्ष्या, क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाएं, ये सभी हमारे भीतर के रावण हैं, जिन्हें हमें पहचानना और समाप्त करना अत्यावश्यक है।
आज हर कोई अपने अहंकार को पाल रहा
इस दशहरे पर, हमें केवल बाहर के रावण को जलाने के बजाय अपने भीतर के रावण को जलाने का प्रयास करना चाहिए।आजकल का समय ऐसा है कि लोग चाहे छोटे हों या बड़े, सभी किसी न किसी रूप में अपने अहंकार को पाल रहे हैं। सोशल मीडिया और आधुनिक जीवनशैली ने हमें दिखावे की दुनिया में डाल दिया है, जहां हम हर समय अपने आप को दूसरों से बेहतर साबित करने में लगे रहते हैं। हम भूल जाते हैं कि सच्ची महानता विनम्रता में है, न कि दिखावे और घमंड में।
हर कोई आज अपने कामों, अपनी उपलब्धियों और अपनी विचारधारा को सबसे बड़ा मानने लगा है। यही हमारे समाज का रावण है, जो हमारे आपसी रिश्तों को कमजोर कर रहा है और हमें विभाजित कर रहा है। दशहरे पर रावण के पुतले जलाने का असली उद्देश्य यही है कि हम इस बात को समझें कि असली रावण हमारे अंदर है। जो घमंड, बुराई, और गलत विचारों के रूप में हमें अपने कब्जे में किए हुए है। इस पर्व पर हमें अपने भीतर के रावण का वध करना चाहिए।
अपने समय का सबसे बड़ा ज्ञानी था रावण
रावण अपने समय का सबसे बड़ा ज्ञानी था। उसके पास अपार शक्ति और विद्वत्ता थी, परंतु उसकी सबसे बड़ी कमजोरी उसका अहंकार था। यही अहंकार उसका सबसे बड़ा शत्रु बन गया। वह यह मान बैठा था कि उसके सामने कोई टिक नहीं सकता। उसका घमंड इतना बढ़ गया था कि उसने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझ लिया और अपनी सीमाओं को भूलकर अन्याय और अनाचार की राह पर चल पड़ा। यह हमें सिखाता है कि चाहे हमारे पास कितना भी ज्ञान, धन या शक्ति हो, अगर हम विनम्रता छोड़ देते हैं, तो पतन अवश्यंभावी होता है।
सीता का अपहरण बना विनाश का कारण
रावण ने सीता का अपहरण किया, जो उसके विनाश का कारण बना। इस कथा के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि जब हम गलत रास्ते पर चलते हैं और अपने अहंकार के अधीन हो जाते हैं, तो उसका अंत निश्चित रूप से बुरा होता है। हम भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इसी तरह के छोटे-छोटे अहंकार से घिरे रहते हैं। जब हम किसी को क्षमा नहीं कर पाते, जब हम किसी की सफलता को देख कर जलते हैं, या जब हम किसी के प्रति द्वेष और क्रोध से भर जाते हैं, तो ये सब हमारे अंदर के रावण के रूप हैं।
अहंकार से मुक्त था भगवान राम का जीवन
भगवान राम का जीवन अहंकार से मुक्त था। एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, और आदर्श राजा होने के बावजूद, उन्होंने कभी भी अपने पद या शक्ति का अहंकार नहीं किया। वे हमेशा विनम्र, दयालु और न्यायप्रिय रहे। उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया, चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न आई हो। उनके जीवन से हमें यह सिखना चाहिए कि शक्ति और ज्ञान के बावजूद विनम्रता और सत्य के पथ पर चलना ही सच्ची महानता है।
अहंकार की हार थी रावण का वध
जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तो यह केवल एक राजा की हार नहीं थी, बल्कि अहंकार की हार थी। रावण के पास अपार ज्ञान और शक्ति थी, लेकिन उसका अहंकार उसके पतन का कारण बना। इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि चाहे हमारे पास कितना भी कुछ क्यों न हो, अगर हम विनम्र नहीं हैं और अहंकार से ग्रस्त हैं, तो हमारा पतन भी निश्चित है। दशहरे का सही अर्थ तभी है जब हम खुद को भीतर से शुद्ध करें।
भगवान राम ने हमेशा विनम्रता और सत्य का साथ दिया
भगवान राम ने जीवनभर विनम्रता और सत्य का साथ दिया, हमें भी उनके मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। इस पर्व पर, एक संकल्प लें कि हम अपने भीतर की बुराइयों को पहचानेंगे और उन्हें जड़ से समाप्त करेंगे। इस बार दशहरा मनाने से पहले, अपने भीतर के रावण को पहचानें और उसे नष्ट करने का प्रयास करें। यही असली विजय है, और यही सच्ची अच्छाई की जीत होगी। आइए, इस दशहरे पर हम सब मिलकर अपने अंदर के रावण को मारें और जीवन को प्रेम, सच्चाई और विनम्रता से भरें।
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