आज समाज डिजिटल,नई दिल्ली:
राजधानी में बीते करीब पांच वर्षों से स्कूली ट्रांसपोर्ट के लिए निजी तौर पर नई गाड़ियों (कैब) की खरीद नहीं हो पा रही है। नई कैब की खरीद में स्पीड गवर्नेंस (गति नियंत्रण यंत्र) से जुड़ा नियम आड़े आ रहा है, इसको लेकर स्कूल ट्रांसपोर्ट से जुड़ी यूनियन मांग कर रही है कि सरकार नियमों में बदलाव करे या फिर छूट प्रदान करे। वहीं, सरकार चाहती है कि स्कूल ट्रांसपोर्ट भी सार्वजनिक परिवहन की तरह इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करे, जिसको लेकर ट्रांसपोर्ट यूनियन के तमाम संदेह हैं। इसी दुविधा के बीच स्कूल से बच्चों को लाने में लगी कैब की संख्या कम हो रही है और स्कूलों का ट्रांसपोर्ट अभिभावकों को महंगा पड़ रहा है।
परिवहन विभाग के नियम के चलते नहीं हो पा रही खरीद
नियम के तहत स्कूलों में चलने वाले वाहनों की गति सीमा 40 किलोमीटर प्रतिघंटा पर निर्धारित की गई है। साथ ही उनमें कंपनी फिटेड स्पीड गवर्नेंस होना चाहिए। क्योंकि बाहर से लगवाए जाने वाले स्पीड गवर्नेंस में छेड़छाड़ कर फेरबदल करने की गुंजाइश रहती है। अब स्कूल कैब के लिए सीमित वाहनों की जरूरत होती है। इसलिए अधिकांश कंपनियां स्पीड गवर्नेंस नहीं लगाती हैं और अगर लगाकर बेचती भी हैं तो वो परिवहन में इस्तेमाल होने वाली बसों के हिसाब से 60 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति सीमा का स्पीड गवर्नेंस लगा रही हैं।
अपने स्तर पर ऑटोमोबाइल कंपनियों से बात करे सरकार :स्कूल कैब यूनियन
उससे कम गति का स्पीड गवर्नेंस लगाने को तैयार नहीं हैं। स्कूल कैब यूनियन ने बीते दिनों ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ बातचीत में भी यह मुद्दा उठाया था। उनका कहना है कि सरकार अपने स्तर पर ऑटोमोबाइल कंपनियों से बात करे या फिर बाहर से स्पीड गवर्नेंस लगाने की इजाजत दे। अगर बाहर से स्पीड गवर्नेंस लगाने की इजाजत दी जाती है तो उसके बाद सरकार उन्हें लिखित रूप में स्वीकृति प्रदान करे। स्कूली कैब के तौर पर नई गाड़ियों की खरीद न होने से लगातार वाहनों की संख्या घट रही है। स्कूल एकता ट्रांसपोर्ट यूनियन के अध्यक्ष रामचंद्र कहते हैं कि तीन से चार साल पहले तक करीब 35 हजार कैब थीं, जिनमें इको, वैन जैसी गाड़ियां शामिल थीं। अब इनकी संख्या घटकर 30 से 32 हजार हो गई है। सरकार से मांग कर रहे हैं कि वो समाधान निकाले। ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ हुई चर्चा में इन्होंने इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद का प्रस्ताव रखा लेकिन अभी इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर कई तरह के संदेह हैं। नंबर एक चार्जिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। दूसरे बैटरी को बदलने पर कितना खर्च आएगा। क्योंकि अभी तक माना जा रहा है कि काफी पैसा खर्च होगा।
डीटीसी ने भी स्कूलों को बसें देने से किया इंकार
इस बार डीटीसी ने भी स्कूलों को बसें देने से मना कर दिया है। इससे बच्चों को स्कूल से भेजना और लाना महंगा हो गया है। क्योंकि सामान्य तौर पर स्कूल प्रति बच्चा चार से साढ़े चार हजार रुपये प्रति महीने का चार्ज करता है। हालांकि स्कूल के अपने ट्रांसपोर्ट के मुकाबले कैब से जुड़ा ट्रांसपोर्ट सस्ता है। कैब से स्कूल का ट्रांसपोर्ट दो हजार से ढ़ाई हजार रुपये के बीच बैठता है। रोहिणी में रहने वाले रघुवीर सिंह कहते हैं कि पहले वो कैब से अपने बच्चे को स्कूल भेजते थे तो दो हजार रुपये तक खर्च आता था लेकिन इस बार स्कूल बदला है तो उसमें स्कूल के ट्रांसपोर्ट से ही बच्चे आ जा रहे हैं। अब प्रति बच्चा चार हजार रुपये तक दे रहे हैं।