अयोध्या फैसले के बाद प्रदेश में शांति बने रहने पर खुशी मना रही योगी सरकार का चैन जल्दी ही काफूर हो गया। केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून लाने के बाद प्रदेश को अमनो चैन से रखने के दावे धरे रह गए। आमतौर पर पार्टी और कार्यकर्ताओं के बजाय चंद अफसरों के फीडबैक को ही जमीनी हकीकत समझने और उसपर जिददन फैसला लेने वाले भाजपा के कट्टर हिंदुत्व एजेंडे के ध्वजवाहक फिलहाल तनाव में हैं।
अटलजी की प्रतिमा अनावरण करने लखनऊ में मुख्यमंत्री के अधिकृत दफ्तर के समक्ष पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर वह प्रसन्नता नजर नहीं आई जो सामान्य तौर पर देखी जाती है। यही गोरक्षपीठाधीशर को देखकर भी लोगों ने महसूस किया । वैसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही अयोध्या के राममंदिर विवाद के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हालातों पर सराहनीय तरीके से काबू पाने के लिए बहुत खुश रहे हो , ताजा बवाल ने उन्हें बड़े तनाव में रखा है।
अभी बीते सप्ताह भर से प्रदेश में हिंसा का दौर था जो अब जाकर थमा है। बदहवास नौकरशाही ने प्रदेश में डिजिटल इमरजेंसी लगाने से लेकर बड़े पैमाने पर धड़ पकड़ जैसे कई काम कर हालात को काबू में करने का प्रयास किया । हालांकि इतने बड़े स्तर हुए प्रदर्शनों की झड़ी, हिंसा व भीड़ उपद्रव को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने दावे तमाम किए थे पर असली परीक्षा में सब धरा का धरा रह गया। राजधानी में बीते गुरुवार को भीड़ जुटने से रोकने व हिंसा पर लगाम के लिए बड़े इंतजाम का दावा था पर आखिरी मौके पर सब किया धरा बेकार नजर आया। प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में हुयी हिंसा में 16 लोगों की मौत और दर्जनों घायल हुए हैं। 50 से ज्यादा पुलिस वाले घायल हुए हैं करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हुयी है।
इन सबके बीच बड़ा सवाल यही है कि क्या मुख्यमंत्री की विश्वस्त नौकरशाही व सलाहकार मंडली सही दिशा में काम कर रही थी। क्या उससे परिस्थितियों का आकलन करने में चूक नही हुयी। प्रदेश का खुफिया तंत्र सही समय पर सूचनाएं देने और हालात के बेकाबू होने का अंदाजा क्यों नही लगा सका। मुख्यमंत्री को सब कुछ कंट्रोल में रहने का भरोसा देने वाले अफसरों पर आने वाले दिनों में गाज भी गिर सकती है।
उत्तर प्रदेश भर में नागरिकता कानून के विरोध में पांच दिनों तक हिंसक प्रदर्शन होते रहे। हिंसक भीड़ को रोक पाने में फेल पुलिस ने कानपुर में 20000 लोगों और पूरे प्रदेश के अन्य हिस्सों में 4500 से ज्यादा लोगों पर एफआईआर दर्ज की है। सहारनपुर में 1500 लोगों पर मुकदमे दर्ज किए गए हैं। कानपुर में हुई हिंसा में अलग-अलग थानों में कुल 15 रिपोर्ट दर्ज हुयी हैं इसमें 20000 अज्ञात उपद्रवियों को आरोपी बनाया गया है। आरोपियों पर बलवा, लूट, हत्या का प्रयास, 7 सीएलए समेत अन्य संगीन धाराएं लगायी गयी हैं। राजधानी लखनऊ में तमाम प्रतिबंधों के बावजूद कई जगहों पर हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारी जमा हुए, जुलूस निकाला, जमकर नारेबाजी की और तांडव मचाया। पूरे शहर में कई जगहों पर हिंसा फैली। राजधानी के पाश हजरतगंज इलाके में घंटों प्रदर्शनकारी बवाल करते रहे और पुलिस से उलझते रहे। बेकाबू हालात को संभालने के लिए प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह और अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी को सड़कों पर उतरना पड़ा। प्रदेश के कई अन्य शहरों में भी प्रदर्शन हुए और कुछ जगहों पर हिंसा की खबर है। संभल में उपद्रवियों ने बस को फूंक दिया। लखनऊ के बिगड़े हालात के मद्देनजर सरकार ने शाम को उच्चस्तरीय बैठक बुलाई। पूरे घटनाक्रम को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी नाराजगी जतायी।
कानपुर में कई हिस्सों में शनिवार को एब बार फिर हिंसा भड़की और यतीमखाना पुलिस चौकी में आग लगा दी गयी। यहां विधायक इरफान सोलंकी को हिरासत में लेने की खबर से भीड़ और भी ज्यादा उत्तेजित हो गयी। प्रदेश सरकार का कहना है कि अब तक 263 पुलिस वाले घायल हुए हैं जिनमें से 57 को गोली लगी है। हिंसाग्रस्त क्षेत्रो से 405 कारतूस बरामद हुए हैं।
बीते गुरुवार को राजधानी में हुयी हिंसा के सिलसिले में पुलिस ने लकीर पीटते हुए उपद्रवियों के नाम पर दर्जनों बुद्धजीवियों को गिरफ्तार कर उन्हें यातनाएं देना शुरु कर दिया है। लखनऊ में अंग्रेजी दैनिक दि हिन्दू के विशेष संवाददाता ओमर राशिद को शुक्रवार रात हिरासत में ले लिया गया। ओमर के खुद को पत्रकार बताने पर उन्हें बुरी तरह धमकाया गया और फोन छीन लिया गया। हालांकि बाद में उन्हें खेद प्रकट करते हुए छोड़ दिया गया ।
प्रदेश सरकार ने खुद ही बताया है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किए गए आपत्तिजनक, भ्रामक व भड़काऊ पोस्टों पर मैसेज के सिलसिले में अब तक 63 मुकदमें लिखे गए हैं जबकि 102 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। प्रदेश सरकार सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कड़ी निगरानी रख रही है। कुल 14101 सोशल मीडिया पोस्टों के खिलाफ कारवाई की गयी है। इनमें सबसे ज्यादा 7995 फेसबुक व 5965 ट्विटर पर हैं। राजधानी में फेसबुक लाइव करने पर भी कई लोगों को हिरासत में लिया गया है। राजधानी से लेकर कई शहरों में फेसबुक व ट्विटर पर नागरिकता कानून विरोध पर पोस्ट लिखने वालों को फोन पर एसा न करने को कहा जा रहा है। प्रदेश सरकार इस संबंध में लगातार चेतावनी भी जारी कर रही है।
प्रदेश सरकार ने खुद ही बताया है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किए गए आपत्तिजनक, भार्मक व भड़काऊ पोस्टों पर मैसेज के सिलसिले में अब तक 63 मुकदमें लिखे गए हैं जबकि 102 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। प्रदेश सरकार सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कड़ी निगरानी रख रही है। कुल 14101 सोशल मीडिया पोस्टों के खिलाफ कारवाई की गयी है। इनमें सबसे ज्यादा7995 फेसबुक व 5965 ट्विटर पर हैं। राजधानी में फेसबुक लाइव करने पर भी कई लोगों को हिरासत में लिया गया है। राजधानी से लेकर कई शहरों में फेसबुक व ट्विटर पर नागरिकता कानून विरोध पर पोस्ट लिखने वालों को फोन पर एसा न करने को कहा जा रहा है। प्रदेश सरकार इस संबंध में लगातार चेतावनी भी जारी कर रही है।
उधर प्रदेश में हिंसक घटनाओं और जनजीवन ठप हो जाने पर सरकार और विपक्ष के नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो गयी है। सपा अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार खुद ही माहौल बिगाड़ने में लगी है। उन्होंने कहा कि सरकार में ही दंगाई बैठे हैं और दंगों से भाजपा को फायदा होता है। सपा अध्यक्ष ने कहा कि हमने शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि नागरिकता कानून से देश के संविधान का उल्लंघन हुआ है और एनआरसी से देश भर में अफरातफरी फैलगी। अखिलेश ने कहा कि नोटबंदी की तरह भाजपा सरकार एक बार फिर से लोगों को लाइन में लगाने की तैयारी कर रही है। अखिलेश पर पलटवार करते हुए उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि विपक्ष देश व प्रदेश के लोगों को गुमराह करने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि सीएए से किसी मुस्लिम भाई का कोई नुकसान नहीं होगा। बिला वजह अफवाह फैलायी जा रही कि लोगों को लाइन में लगना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार दुष्प्रचार करने वालों की निंदा करती है। उप मुख्यमंत्री कहते हैं कि बाहरी लोग हिंसा में शामिल थे जिसमें बड़ी तादाद में माल्दा, बंगाल के लोग पकड़े भी गए हैं। उन्होंने कहा कि 75 में से 21 जिलों में गड़बड़ियां हुयीं और 500 से ज्यादा अवैध कारतूस मिले हैं। पूरे घटनाक्रम में 750 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हुए हैं जबकि 15 मौते हुयी हैं।
सरकार पर जनता के दमन व पुलिस हिंसा का मुद्दा उठाते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के मुताबिक मुख्यमंत्री ही धमकी देने में जुटे हैं और बदला लेने की बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोग अहिंसात्मक आंदोलन करना चाह रहे हैं पर प्रदेश में अघोषित आपातकाल चल रहा है। उन्होंने राज्यपाल से निर्दोष लोगों पर कायम मुकदमे वापस लेने की मांग की है।
वास्तव में इस हिंसा ने पिछली सदी के आठवें, नवें दशक की याद दिला दी जब एक शहर का साम्प्रदायिक उन्माद शीध्र ही बहुत से शहरों में फैल जाता था और हत्या, मारपीट,लूटपाट,आगजनी के बाद पुलिस फायरिंग होती थी । फिर उपद्रवियों पर मुकदमें,गिरफ्तारी तथा विरोधी दलों का विरोध प्रदर्शन व अन्त में मजिस्ट्रेटी या न्यायिक जांच की घोषणा के बाद अगले दंगे तक के लिए शान्ति आ जाती थी।सरकार बदलने के बाद कभी कभी दंगों से संबंधित मुकदमें वापस भी हो जाते थे।
संयोगवश ये दंगे साम्प्रदायिक न होकर सरकार के विरुद्ध हो रहे हैं।मुस्लिम नियत स्थान पर एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन करते हैं जो बाद में कहीं हिंसक भी हो जा रहा है और पुलिस के समझाने पर पथराव तथा वाहनों की आगजनी में बदल रहा है। गुजरी जुमा की नमाज के बाद ऐसी घटनाओं में चिन्ताजनक वृद्धि हुई है।
यह घटनाएं सीएए का ही परिणाम नहीं हैं। 2014 में भाजपा के केन्द्र में सरकार बनने के बाद से ही विपक्ष का बड़ा हिस्सा मुसलमानों को समझा रहा है कि भाजपा उनके हित में नहीं है।वैसे भी मुसलमान कांग्रेस,सपा,बसपा,तृणमूल आदि की अपेक्षा भाजपा को अपना हितैषी नहीं मानता। 2019 में भाजपा की दोबारा जीत ने इस वर्ग में अवसाद व निराशा का जन्म दिया है।तीन तलाक,अनुच्छेद 370 की समाप्ति पर वह भीतर से कुढ़ रहा था ,सीएए से उसे विश्वास हो गया है कि जिस तरह भाजपा अपने घोषणापत्र को लागू कर रही है , अगला कदम समान नागरिक संहिता व जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करना है।इन्हे नये राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का भी डर सता रहा है।इसीलिये वह करो या मरो की स्थिति में आ गया है।विरोधी दल इस धधकती आग में घी की आहुति दे रहे हैं।
– हेमंत तिवारी
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अध्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)