पिछले दिनों विधानसभा में बड़ी तादाद में विधायकों के बागी तेवर से मची सनसनी , नागरिकता कानून को लेकर हिंसक प्रदर्शनों के बाद एकदम से बेकाबू हुए हालात के पीछे इंटेलिजेंस नाकामी की चर्चाएं और अब पुलिस महकमे में घूसखोरी के दस्तावेजी सबूतों वाले गोपनीय पत्र के खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं। सूबे में आमतौर पर लोगों का और निजी तौर पर मेरा भी स्पष्ट मानना है कि योगी आदित्यनाथ सौ फीसद ईमानदार और गजब के मेहनती हैं, मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के भूमिका में उनके नेतृत्व में यूपी पुलिस ने संगठित अपराध करने वाले माफियाओं पर काफी काबू पाया है लेकिन पुलिस की घूसखोरी और बाकी बदनाम हरकतों में कमी नही आई है , यह भी एक कठोर सच्चाई है।
फिलहाल कई सवाल सूबे की फिजा में तैर रहे हैं जिसे विपक्षी दल और सरकार के कामकाज से नाराज लोग सतह तक बता रहे हैं । वास्तव में जिलों में तैनात तमाम अफसर पैसे का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं और उसका असर ऊपर से नीचे तक दिख रहा है ?जब आईजी, डीआईजी और कप्तान पुराने दस्तूर को जारी रखते हुए रिश्वत से जमा काली कमाई का हिस्सा लेंगे तो थानों और सर्किल में तैनात अफसर नीचे से वसूल कर ही देंगे ? जिलों में पहली पोस्टिंग पाने वाले कुछ आईपीएस अधिकारी अगर रिश्वतखोरी में लिप्त हैं तो आने वाले अफसरों की नस्ल क्या सबक लेगी ?
दरअसल उत्तर प्रदेश में पुलिस महकमे मे तैनाती से लेकर नौकरी करने के कायदे कानून और परंपरा पर जब तब सवाल उठते रहे हैं। माना जाता है कि बीती तीन सरकारें बदलने में भी जनता के बीच पुलिस के कामकाज की शैली और की छवि ने अहम भूमिका निभायी थी। इधर प्रचंड बहुमत वाली सरकार केकार्यकाल के ढाई साल गुजार चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने आखिरकार वही सच सामने आ गया है जिसको लेकर यूपी पुलिस की सबसे ज्यादा बदनामी होती रही है। यूपी में थाने से लेकर जिले तक बिकने के आरोप अक्सर चस्पा होते रहे हैं पर इस बार तो खुद एक जिले के पुलिस कप्तान ने ही पूरे मामले को खोलकर सामने रख दिया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण के कथित वायरल अश्लील वीडियो का संज्ञान लियाऔर मेरठ के आईजी रेंज आलोक सिंह को जांच सौंपी गई जिसकी रिपोर्ट भी डीजीपी और शासन को पहुंच गई है। इसके साथ ही योगी ने एसएसपी के द्वारा मुख्यमंत्री को भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट और उसके लीक होने के मामले पर भी संज्ञान लिया है। माना जा रहा है कि इस प्रकरण में एसएसपी नोएडा वैभव कृष्ण के खिलाफ कार्रवाई के लिए उच्चपदस्थ अधिकारी मुख्यमंत्री योगी के आदेश का इंतजार कर रहे हैं।
शासन को भेजी अपनी रिपोर्ट में वैभव कृष्ण ने पांच आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार सहित तमाम तरह के आरोप लगाए थे। वायरल हुए अश्लील वीडियो के पीछे वैभव कृष्ण ने ऐसे ही अफसरों को मुख्य साजिशकर्ता बताया था।
माना जा रहा है कि यह मामला आहिस्ता – आहिस्ता ठंडा पड़ता जा रहा था लेकिन बहुचर्चित आईपीएस अधिकारी द्वारा आईपीएस अफसरों के कथित भ्रष्टाचार को लेकर नोएडा में एफआईआर दर्ज करने की तहरीर देने के बाद पेंच बढ़ गए हैं।
अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी जसवीर सिंह ने एसएसपी नोएडा द्वारा शासन को ढाई महीने पहले भेजी और पिछले पखवारे ही लीक हुई रिपोर्ट के आधार पर पांच आईपीएस अफसरों के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 20 थाने में तहरीर दी है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी से आरोपित अफसरों को निलंबित करने और उनके खिलाफ अलग से एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। इन पांचों अफसरों के कथित भ्रष्टाचार को लेकर उन्होंने आईपीएस एसोसिएशन से भी इस मुद्दे पर चर्चा करने की मांग उठाई है।
फिलहाल निलंबित चल रहे जसवीर सिंह कहते हैं कि उन्होंने अपनी तहरीर में भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम -1988 की धारा सात का उल्लेख किया है। रिपोर्ट में एसएसपी नोएडा ने जो भी साक्ष्य और जानकारियां दी हैं , वह दंडनीय अपराध की श्रेणी में है। उनका कहना है कि एसएसपी नोएडा ने मीडिया के सामने केस के इन्वेस्टिगेशन के दौरान पांच आईपीएस अफसरों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य होने का दावा किया है और इसकी गोपनीय रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय के साथ ही गृह और पुलिस महकमे के आला अफसरों को भेजी है । इस सूरत में प्रकरण की अलग से अपराध दर्ज करने की जरूरत है।
जसवीर सिंह ने मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में लिखा है कि रिपोर्ट में अफसरों द्वारा थानाध्यक्षों की पोस्टिंग-ट्रांसफर, खुद अफसरों की तैनाती को लेकर रेट लिस्ट के संबंध में अपराधियों के साथ साठगांठ के तमाम प्रमाण हैं। इनका संज्ञान लेते हुए आरोपित पांचों आईपीएस अफसरों को उनके वर्तमान पदों से हटाने की जरूरत है। ऐसा नहीं होने पर वे लोग जांच प्रभावित कर सकते हैं।
सीएम को भेजे पत्र में एडीजी जसवीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए लिखा है कि भ्रष्टाचार संबंधित प्रकरणों में किसी भी सामान्य व्यक्ति (जो इस देश का नागरिक हो) के उपयुक्त प्रार्थना पत्र पर जांच शुरू की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में समयबद्ध जांच पूरी कर तीन महीने में अभियोजन स्वीकृति होनी चाहिए इसलिए एसएसपी वैभव कृष्ण की साक्ष्यों के साथ भेजी गई रिपोर्ट पर तुरंत कार्रवाई करते हुए अलग से एफआईआर दर्ज करने की जरूरत है। एडीजी ने इस मामले की विवेचना न्यायिक पर्यवक्षेण के तहत स्वतंत्र एजेंसी से कराने या एसआईटी गठित करने की मांग भी की है। एडीजी जसवीर सिंह ने ढाई माह पहले भेजी गई रिपोर्ट पर अभी तक कोई कार्रवाई न किए जाने को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि साक्ष्यों के साथ इतनी गंभीर रिपोर्ट मिलने के बाद भी पांचों आईपीएस अफसर अपने पदों पर बने हुए हैं, यह एक गंभीर सवाल है।
दरअसल भ्रष्टाचार विरोधी (संशोधित) अधिनियम, 2018 की धारा सात के तहत व्यवस्था की गई है कि कोई भी सरकारी सेवक सेवा के दौरान किसी भी नागरिक से अनैतिक लाभ लेता या लेने का प्रयास करता है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। एसएसपी वैभव कृष्ण की रिपोर्ट में आरोपित अफसरों की बातचीत व वॉट्सऐप चैट के तमाम ऐसे साक्ष्य हैं, जो उनके खिलाफ हैं।
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अध्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)