सिर्फ डेढ़ महीने के लाकडाउन में देश की सबसे बड़ी आबादी और कई लाख करोड़ रुपये के सालाना बजट वाले सूबे उत्तर प्रदेश का खजाना खाली सा हो गया है। राजस्व प्राप्ति अपने न्यूनतम स्तर पर है। कारोबार के फिर से खुलने और उसके पुराने स्तर पर पहुंचने को लेकर अनिश्चितता है। केंद्र से मिलने वाला वित्तीय अंश भी हर हाल में घटना है और कई योजनाओं के लिए मिलने वाली मदद भी कम होनी तय है। देश के सबसे बड़े मानव संसाधन के आपूर्तिकर्त्ता राज्य उत्तर प्रदेश में बीते एक महीने में लाखों कामगार घर लौट आए हैं। हर बार पैसे कमाकर उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान करने वाले कामगार इस बार खाली जेब घर आए हैं। इन मजदूरों को दाना-पानी, रोजी रोजगार भी उपलब्ध कराना एक दुष्कर काम है। यूपी सरकार का दावा है कि एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी), मनरेगा और छोटी व मझोली ईकाईयों में घर वापस लौटे मजदूरों को काम दिलाएगी। बड़ी ढांचागत परियोजनाओं में मजदूरों को खपाने के लिए एक्सप्रेस वेज परियोजनाओं पर तो काम शुरू भी किया जा चुका है।
इन तमाम दिक्कतों के बीच सबसे निराश करने वाली हालात उत्तर प्रदेश के राजकोष की है जो महज दो महीनों में ही हाथ खड़े कर देने की दशा में पहुंच गया है। प्रदेश में वित्तीय जानकारों का कहना है कि राजस्व के मोर्चे पर इस तरह की हालात पहले कभी देखने को नही मिली थी। जाहिर है इन हालात में निपटने का कोई अजमाया नुस्खा भी प्रदेश चलाने वालों के पास नहीं है।
अप्रैल माह की यूपी सरकार की वित्त विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्व प्राप्ति में वर्ष 2020-21 के लिए 1,66,021 करोड़ रुपये का लक्ष्य निर्धारित है। अप्रैल महीने में 2012.66 करोड़ रुपये की ही आय प्राप्त हुई है। ये निर्धारित वार्षिक लक्ष्य का मात्र 1.2 प्रतिशत है। इसी प्रकार टैक्स के रूप में राजस्व के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए निर्धारित वार्षिक लक्ष्य 19,178.93 करोड़ रुपए के सापेक्ष महज 282.12 करोड़ रुपये की ही प्राप्ति हुई है, जो वार्षिक लक्ष्य 1.5 प्रतिशत है।
अप्रैल का यूपी का कलेक्शन देखें तो जीएसटी का लक्ष्य 4930.28 है और प्राप्ति कुल 1448.63 (29.4 प्रतिशत) हुई है। वैट का लक्ष्य 2400 करोड़ था और प्राप्ति 401.20 यानी कुल 16.7 प्रतिशत प्राप्ति हुई है। आबकारी विभाग ने अप्रैल माह का शराब बिक्री का लक्ष्य 3560.13 करोड़ रुपये का तय किया था जबकि प्राप्ति 41.96 करोड़ हुई है जो 1.2 प्रतिशत ही है। रजिस्ट्री आदि के जरिए स्टाम्प निबंधन विभाग ने 1686.94 लक्ष्य तय किया था जबकि इसके बरअक्स अबतक की कुल प्राप्ति 15.60 यानी 0.9 प्रतिशत हुई है।
इन सब वजहों के चलते अपेक्षा के उलट प्रतिक्रिया का जोखिम उठाते हुए भी यूपी सरकार ने शराब की बिक्री खोलने का फैसला किया। शराब की दुकानें खुलते ही उमड़ी भीड़ ने कम से कम राजस्व के मोर्चे पर उपजी हताशा को दूर ही करने का काम किया है। हालांकि इससे पहले राज्य सरकार संपत्तियों की आनलाइन रजिस्ट्री खोलकर कुछ राजस्व जुटाने की असफल कवायद कर चुकी थी।
साफ है कि बीते कुछ दिनों में प्रदेश सरकार का राजस्व बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इसी के चलते प्रदेश सरकार ने अपने वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट बढ़ाने व शराब पर कोविड सेस लगाने का फैसला किया है। डीजल पेट्रोल पर वैट बढ़ाने से प्रदेश सरकार को 2070 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। सरकारी आदेश के मुताबिक डीजल पर एक रुपये और पेट्रोल पर दो रुपये वैट बढ़ाया गया है।
शराब की कीमतों को बढ़ाने को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना कहते हैं कि मौजूदा हालात में यह जरूरी हो गया था । सभी तरह की देशी शराब पर प्रति बोतल पांच रुपये बढ़ाए गए हैं जबकि अंग्रेजी शराब की रेगुलर ब्रांड में 180 मिली तक 20 रुपये, 500 मिली तक 30 रुपये व इससे ज्यादा मात्रा की बोतल पर 50 रुपये कीमत बढ़ायी गया है। प्रीमियम ब्रांडों पर भी इतनी ही वृद्धि की गयी है जबकि विदेशों से आयतित शराब को और भी मंहगा किया गया है। वित्त मंत्री ने बताया कि शराब पर बढ़े दाम से प्रदेश सरकार को 2350 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा।
उधर उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के कई राज्यों में शराब की दुकानें खुलने आलोचना हो रही है। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों व चैनलों में शराब की दुकानों पर भीड़ दिखा इसे गलत कदम करार दिया जा रहा है। हालांकि इसके पीछे राज्य सरकारों की मजबूरी कहीं ज्यादा है। दरअसल जीएसटी आने के बाद राजस्व के नाम पर प्रदेश सरकारों के पास पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट के अलावा शराब ही खजाना भरने का एकमात्र सहारा रह गया है। लाकडाउन के बीच डीजल-पेट्रोल की बिक्री बुरी तरह घटी है। एसे में कम से उत्तर प्रदेश जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले सूबे के पास शराब की बिक्री खोलने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा था। राज्य के लिए राजस्व का एक अन्य बड़ा स्त्रोत खनन का काम भी लाकडाउन के चलते बंद है। हालांकि खनन गतिविधियों की इजाजत तो है पर न तो मजदूर हैं न ही निकलने वाले खनिजों की खपत और न उन्हें लाने ले जाने के लिए परिवहन सुविधा।
हालांकि लाकडाउन के बाद शराब की बिक्री खुलने के पहले ही दिन उत्तर प्रदेश में कमाई के मामले में होली-दीवाली का रिकार्ड टूट गया है। अकेले सोमवार को प्रदेश के विभिन्न शहरों में करीब 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की शराब बिकी है। लाकडाउन में 43 दिन बंद रहने के बाद खुलने पर राजधानी लखनऊ में सबसे ज्यादा 6.5 करोड़ रुपये की शराब बिकी है। वाराणसी, नोयडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद, गोरखपुर, प्रयागराज जिलों में सामान्य दिनों के मुकाबले दो गुना तक शराब बिकी है।
शराब की दुकानों के खुलते ही उमड़ी भीड़ और सोशल डिस्टैंसिंग का धज्जियां उड़ते देख प्रदेश सरकार ने कई तरह के प्रतिबंध मंगलवार से लगा दिए हैं। कई जगहों पर सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कराने के लिए पुलिस के बड़े अधिकारियों को खुद उतरना पड़ा है। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में ज्यादातर पुलिस को शराब की दुकानों पर भीड़ को नियंत्रित करने में लगाना पड़ा है। नए नियमों के मुताबिक आबकारी विभाग ने शराब खरीदने की सीमा तय कर दी है। शराब की दुकानों पर अनावश्यक भीड़ को रोकने के लिए दुकानदारों को टोकन सिस्टम लागू करने को भी कहा गया है। शराब की होम डिलीवरी की इजाजत नहीं दी गयी है। एक व्यक्ति को कितनी शराब दी जाएगी यह भी तय कर दिया गया है।
शराब के बाद प्रदेश सरकारों को बड़ा राजस्व देने वाले पान मसाला कारोबार को भी लाकडाउन से आजाद कर दिया गया है। अब पान मसाला बनेगा और बिकेगा भी। जाहिर है कि यूपी सरकार के इन कदमों से सरकारी खजाने को कम से कम महीने में रोजमर्रा का खर्च चलाने का तंगी कुछ कम होगी। हालांकि अब भी बड़ा दारोमदार केंद्र से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर ही है जिसके बूते कम से बाहर से लौटे और प्रदेश में बेरोजगार हुए लोगों का पेट कुछ हद तक भरा जा सकेगा। अब तक तो प्रदेश की सरकार को केंद्र से भी निराशा ही हाथ लगी है। बीते डेढ़ महीने में यूपी को केंद्र से नसीहतें, आदेश, प्रावधान ही मिले हैं न कि आर्थिक सहायता। इसके उलट वित्त प्रबंधकों का मानना है कि आने वाले दिनों में जीएसटी का कलेक्शन घटेगा तो प्रदेशों को कम पैसा मिलेगा। कारोबार मंदा रहेगा तो उत्पाद शुल्क की वसूली कम रहेगी। कारोबार ठंडा तो डीजल पेट्रोल की खपत घटेगा जिसका नतीजा कम वैट वसूली के रुप में सामने आएगा। शराब से मिलने वाला करीब 35000 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व ही डूबते के लिए तिनके का सहारा नजर आ रहा है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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