यह साल कोरोना संकट के बीच गुजरने की आशंकाओं के बीच उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव यानी 2022 की लड़ाई के लिए सियासी दलों के पास अब ज्यादा वक्त नही बचा है और शायद इसीलिए हिंदी पट्टी में राजनीतिक गतिविधियां न सिर्फ फिजां बल्कि जमीन पर भी दिखने लगी हैं ।
फिलहाल यूपी की सियासत कुछ अलग अंदाज में दिख रही है जहां चैंपियन भाजपा को तगड़ी चुनौती देने को तैयार मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बजाय सत्तारूढ़ दल कमजोर कांग्रेस को विरोध के ज्यादा मौके मिल रहे हैं। दरअसल यह मुख्य विपक्ष से सीधे भिड़ने के बजाय विरोधी मतों के बंटवारे की भाजपाई रणनीति का हिस्सा है ।
पिछले साल भर की सियासी गतिविधियों पर निगाह डालें तो पहली नजर में कांग्रेस ही भाजपा से लड़ती दिखती है जबकि यह स्थापित सत्य है कि सूबे में यह राष्ट्रीय पार्टी गुजरे तीन दशक से लगातार कमजोर हुई है। विरोध प्रदर्शन या गिरफ्तारी के ज्यादा मौके कांग्रेस को ही मिले हैं। मुसलमानों की मायावती से नाराजगी बढ़ी है और यह वर्ग एकमुश्त समाजवादी पार्टी की ओर न झुके इसमें भाजपा की भलाई है, कांग्रेस को अच्छा हिस्सा मिले तो उसकी मलाई है ।
वास्तव में उत्तर प्रदेश में तेजी से विपक्ष की खाली जगह को भर रही कांग्रेस के मुकाबिल अब भाजपा के साथ ही बहुजन समाज पार्टी भी खड़ी हो गयी है। इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजरने और निहायत लुंजपुंज संगठन के बावजूद प्रियंका गांधी की सक्रियता के चलते लगातार मजबूत हो रही कांग्रेस के मुकाबले यूपी में विपक्ष की राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुकी बसपा सुप्रीमों बीते कुछ समय से न केवल कांग्रेस पर हमला बोल रही हैं बल्कि अपने बयानों से भाजपा के बगलगीर भी दिखायी दे रही हैं। मायावती को लेकर भाजपा का प्रेम इस कदर बढ़ता दिखाई से रहा है कि हाल ही में उनके समर्थन भरे बयानों के लिए खुद मुख्यमंत्री योगी ने फोन कर धन्यवाद दिया था। ऐसी चर्चाएं सियासी गलियारों में गरम हैं ।
कोरोना संकट, प्रवासी मजदूरों की समस्या , आजमगढ़ और जौनपुर में हुए दलित-मुस्लिम विवादों से लेकर हालिया चीन सीमा विवाद पर भाजपा की लाइन के मुताबिक बयान देकर मायावती ने अपनी खासी किरकिरी तो कराई है साथ ही प्रियंका को कटाक्ष करने का मौका भी दिया है। चीन-भारत सीमा विवाद पर भाजपा की खुल कर वकालत करने के बाद कांग्रेस ने मायावती को अघोषित प्रवक्ता बता दिया। भाजपा बीते दिनों में कई बार मायावती के बयानों की सराहना भी कर चुकी है। इससे पहले प्रवासी मजदूरों को उत्तर प्रदेश में जगह जगह पहुंचाने के लिए प्रियंका गांधी के 1000 बसें देने को लेकर हुए विवाद में भी मायावती कांग्रेस पर जुबानी हमला बोल चुकी हैं। तब मायावती ने प्रवासी मजदूरों की हालत के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बता दिया था।
दरअसल कोरोना संकट काल में उत्तर प्रदेश की सियासत में नए तरह के सियासी समीकरण देखने को मिल रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सूबे में राजनीतिक सक्रियता से बसपा अध्यक्ष मायावती काफी बेचैन हैं। मायावती लगातार कांग्रेस पर हमलावर हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बसपा और बीजेपी के बीच ऐसी कौन सी सियासी केमिस्ट्री है, जिसकी वजह से मायावती बीजेपी पर नरम तो कांग्रेस पर गरम हैं।
प्रियंका गांधी और योगी सरकार के बीच बस विवाद में जब मायावती कूदी थी तो ऐसा लगा मानो वह यूपी सरकार का बचाव कर रही हो। अपने ट्वीट के एक पूरी श्रृंखला में मायावती का तीखा हमला कांग्रेस पार्टी पर दिखाई देता है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने तो बकायदा बीजेपी के सहयोगी के तौर पर बसपा को कहना शुरू कर दिया है और मायावती को बीजेपी का प्रवक्ता तक कह डाला है।
उत्तर प्रदेश में कभी मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस का हुआ करता था, लेकिन 90 के दशक से यह सपा और बसपा के बीच बंटता रहा है। प्रियंका गांधी की नजर यूपी में मुस्लिम वोटर्स पर भी है। सूबे में सीएए-एनआरसी विरोध के दौरान मारे गए मुस्लिम परिवारों के घर जाकर प्रियंका गांधी ने मुलाकात की थी और खुलकर योगी सरकार पर हमला बोला था। प्रियंका के इस दांव से मुस्लिम समुदाय के बीच काफी बेहतर संदेश गया था। इसके अलावा प्रियंका आजमगढ़ में मुस्लिम महिलाओं से जाकर नए समीकरण बनाने की कोशिश की थी।
दरअसल मायावती इन्हीं तीनों वोटबैंक के जरिए यूपी में अपनी खोई हुई सियासत को पाना चाहती हैं। जिस पर अब प्रियंका गांधी ने नजर गड़ा दिया है। इसीलिए मायावती कांग्रेस को फिलहाल बीजेपी से बड़ा शत्रु अपने लिए मान रही हैं। शायद यही कारण है कि बसपा प्रमुख बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर आक्रमक रुख अख्तियार किए हुए हैं।
वहीं कांग्रेस के लोग भी मायावती पर यूं ही सवाल नहीं उठा रहे हैं। कोरोना के संकट काल में बसपा प्रमुख मायावती इकलौती ऐसी बड़ी नेता हैं जिन्हें फोन कर योगी आदित्यनाथ ने धन्यवाद दिया था। मुख्यमंत्री राहत कोष में विधायकों से उनकी निधि से पैसे लिए जा रहे थे तब बीएसपी के विधायकों को मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसे देने के आदेश मायावती ने दिए और इसी बात को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मायावती को धन्यवाद भी दिया था। राजनीति संकेतों का खेल होता है और अगर संकेत मानें तो कहीं ना कहीं बीजेपी और बीएसपी के बीच सियासी केमिस्ट्री दिख रही है और कांग्रेस इसी के बहाने मायावती पर निशाना साध रही है।
राजनैतिक नजरिए से भी देखें तो मायावती की बहुजन समाज पार्टी इस समय पहचान के संकट से गुजर रही है लेकिन उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री संघर्ष किए बिना हार मानने वाली नहीं हैं। भले ही पार्टी में नेतृत्व की दूसरी कतार दिखाई नहीं देती हो। अपनी सियासी किस्मत को बदलने के लिए उन्होंने प्रियंका गांधी को अपने रोष का निशाना बनाया है। कांग्रेस के गांधी परिवार के शीर्ष नेतृत्व पर हमले करना एक तरह से उन्हें भारतीय जनता पार्टी का सहयोगी साबित करता है। साथ ही इससे राजनीतिक प्रेक्षकों को भाजपा से उनके पूर्व संबंधों पर रोशनी डालने का मौका भी मिलता है। मायावती ने 1995 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए सवर्ण हिंदू वोट बैंक वाली पार्टी भाजपा का सहयोग लिया था।
यह भी साफ नजर आता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद मायावती ने जल्दी ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के वर्चस्व को स्वीकार कर लिया। भाजपा ने जब बसपा के 2007 के नारे ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ‘ को हड़प लिया तो उन्होंने अपनी नाखुशी जाहिर करने की भी ज़रूरत नहीं समझी। बसपा के लिए ये नारा महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि मायावती ने 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण और दलित मतदाताओं को परस्पर साथ लाकर जीत हासिल की थी। प्रियंका गांधी भी मतदाताओं के उन्हीं वर्गों को लुभाने का प्रयास कर रही हैं। मायावती को इस होड़ का असर महसूस हो रहा है और इसलिए वह प्रियंका गांधी पर हमला करने का कोई अवसर नहीं चूकती हैं।
भाजपा के साथ भविष्य के गठबंधन के संदर्भ में यह सारी बातें सार्थक नज़र आती हैं। बसपा कांग्रेस को प्रियंका गांधी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में पैठ बनाने से रोकने की कोशिश कर रही है। प्रियंका गांधी भी ये सब अच्छी तरह समझती हैं. पिछले हफ्ते, राज्य के एक बालिका संरक्षण गृह में दो लड़कियों के गर्भवती पाए जाने संबंधी आरोप पर उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार का नोटिस मिलने पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रियंका गांधी ने ज़ोर देकर कहा था कि योगी सरकार के खिलाफ सच बोलने से वह पीछे नहीं हटेंगी क्योंकि वह ‘इंदिरा गांधी की पोती’ हैं ना कि ‘कुछ विपक्षी नेताओं की तरह भाजपा की अघोषित प्रवक्ता.’ यह मायावती पर परोक्ष हमला था।
लगातार प्रियंका की सक्रियता और सड़कों पर उतर कर राजनीति करने की शैली भी मायावती को अपने लिए खतरे का सबब लगती है। गौरतलब है कि जहां कांग्रेस कोरोना काल में भी पेट्रोल डीजल मंहगाई, प्रवासी मजदूरों, बेरोजगारी को लेकर सड़क पर उतर आंदोलन कर रही है वहीं मायावती ने बयानों के अलावा इन मुद्दों पर कुछ नही किया है।
दूसरी ओर कांग्रेस बसपा की इस लड़ाई में भाजपा को अपना फायदा दिख रहा है। यहीं कारण है कि वह कांग्रेस पर तो हमलावर है पर बसपा पर नरम। भाजपा को लगता है कि मजबूत कांग्रेस को चुनावी मैदान में पटकनी दे पाना ज्यादा मुफीद रहेगा बनिस्बत एकजुट विपक्ष के और यही कारण है कि प्रदेश में करीब करीब जनाधार शून्य हो चुकी कांग्रेस के हर राजनैतिक पैंतरे का जवाब देने के लिए भाजपा सहित पूरी प्रदेश सरकार मैदान में उतर आती है।