उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को उनके पहले कार्यकाल को लेकर एक सफल और सख्त प्रशासक के रूप में जाना जाता है । मुख्यमंत्री के तौर पर उनके पहले कार्यकाल में प्रशासन को चलाने के लिए जो उपाय किए गए उसे उनकी हनक और कड़क छवि के साथ ही बिगड़ी ब्यूरोक्रेसी को पटरी पर लाने की कामयाब कोशिश के तौर पर याद किया जाता है । कल्याण सिंह कहां करते थे कि नौकरशाही वह घोड़ा है जो घुड़सवार के इशारे समझता है । यही वजह है ईमानदार और साफ छवि वाले दक्ष अफसरों की सही रिपोर्ट पर उन्होंने मंत्रिमंडल से कुछ महत्वपूर्ण साथियों को भी अनियमितता को लेकर बाहर का रास्ता दिखा दिया था ।
सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में कल्याण सिंह के बाद मुख्यमंत्री के तौर पर वैसी ही धारणा योगी आदित्यनाथ के बारे में बनी है, इसमें दो राय नहीं । हाल के सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद भाजपा की राजनीति में योगी का कद और छवि काफी अहम मानी गई है । उत्तर प्रदेश की सियासत और प्रशासनिक सिस्टम को समझने वाले योगी आदित्यनाथ ने कल्याण सिंह के पहले मुख्यमंत्रित्व काल वाली छवि देखते हैं और यह भी सुनिश्चित मानते हैं कि 2017 में सवा तीन सौ विधायकों वाली धमाकेदार सरकार बनाने वाले गोरक्षं पीठाधीश्वर के नेतृत्व में ही भजप्स 2022 में विपक्ष का मुकाबला करेगी । और यह सच्चाई भी है ।
लेकिन पुलिस तंत्र की कमजोरी और योगी आदित्यनाथ की लाख कोशिशों के बाद भी खुद को न बदलने के लिए उद्यत दिख रहे अफसरों की हरकतों से तमाम सवाल भी हाल के महीनों में उठे हैं जिसका जवाब मुख्यमंत्री को ढूंढना होगा क्योंकि इन्ही कमजोरियों को लेकर इतिहास का सबसे कमजोर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर है । सरकार जिन अफसरों पर भरोसा करके उन्हें जनता की सेवा के लिए फील्ड में भेजती है, वे उस पर खरे उतरना तो दूर, अपनी हरकतों से न सिर्फ शासन बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि को बट्टा लगाते हैं । मुख्यमंत्री ऐक्शन लेते हैं, अफसर सस्पेंड होते हैं और मीडिया की सुर्खियां बनती हैं लेकिन जनता. के मन मे यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है कि जिलों में पदस्थ रहने के दौरान जो नुकसान इन अफसरों द्वारा किया गया है, चाहे वह सुशासन की अपेक्षा के विपरीत कुशासन का या फिर सरकार और मुख्यमंत्री की छवि का, उसकी भरपाई कैसे होगी । उत्तर प्रदेश में फिलहाल सात आईपीएस अधिकारी.विभिन्न आरोपों में निलंबित चल रहे हैं, जिसमे एकाध तो सरकारी अफसरों की आपसी खींचतान का शिकार हुए हैं, बाकी के ऊपर जो गंभीर आरोप हैं, उसका प्रत्यक्ष संबंध आम जनता से है ।
महोबा के एसपी रहे मणिलाल पाटीदार ने सरकार की छवि पर जो बट्टा लगाया है, उसकी भरपाई मुश्किल है ।
ऐसे में सवाल उठता है कि महीनों या सालों तक जिले की तैनाती के दौरान शासन में उच्च पदस्थ जिम्मेदार लोगों को यह भ्रष्टाचार अथवा अनियमितता क्यों नहीं दिखी । इसकी भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए । कनिष्ठ अफसरों को अति महत्व के दायित्व कौन देता रहा है।
यही नहीं, जनता से सीधे जुड़े अफसरों को तैनाती देने में अहम भूमिका निभाने के साथ ही सरकार के नीति निर्धारण और क्रियान्वयन से जुड़े शीर्ष अफसरों की आपसी खींचतान भी चिंता की बड़ी वजह है ।
क्या अफसरशाही पर अत्यधिक भरोसा और निर्भरता उत्तर प्रदेश के कड़क, ईमानदार और परिश्रमी मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित योगी आदित्यनाथ की छवि के लिए प्रतिकूल प्रभाव पैदा कर रहा है, फिलहाल सूबे के ताजा हालात पर यह सवाल आम चर्चा में है । कोरोना का अब तक के आपदा काल से मोर्चा लेने में मुख्यमंत्री योगी ने अफसरों के साथ ही मुख्यरूप से समस्त रणनीति तैयार की और उस पर क्रियान्वयन किया ! सब जानते हैं कि चुनिंदा आईएएस अफसरों की टीम-11 के हवाले ही इस आपदा से लड़ने के काम को अंजाम दिया गया ।
सवाल यही उठ रहे हैं कि जब मुख्यमंत्री अफसरों पर इतना भरोसा जता रहे हैं तो यह अफसरशाही जवाब में उन्हें क्या दे रही है। पिछले दिनों कोरोना से लड़ाई के लिए पीपीई किट सहित अन्य खरीदों में जिस तरह जिले जिले घोटाले सामने आ रहे हैं तो यह चर्चा आम होना स्वाभाविक है कि अफसरशाही आखिर इस तरह की बेईमानी को रोकने में नाकाम क्यों रही ?
इसमें कोई शक नहीं कि मुख्यमंत्री ने पिछले कुछ महीनों, दिन रात एक कर दिया और प्रवासी श्रमिकों सहित आम आदमी को राहत देने की तमाम कोशिशें की है । इस दौरान उनकी अथक मेहनत की खुलकर तारीफ हुई और स्वयं प्रधानमंत्री ने इस कष्टकाल मे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए गए कामों को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए अन्य राज्यों को इससे नसीहत लेने की बात सार्वजनिक रूप से की । उन्होंने देश दुनिया के सामने मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की कोशिशों की खुले मन और खुले मंच से तारीफ भी की ।
सरकार लाख सफाई दे और एसआईटी कुछ भी जांच करे लेकिन अब यह धारणा आम हो गई है कि उत्तर प्रदेश में कोविड संकट के इस दौर में आपदा को ही अवसर बना बैठे अधिकारियों ने जम कर लूट की। खुद सत्तापक्षा के विधायकों व नेताओं की ओर से जिले जिले में यह मामला उठाने के बाद योगी सरकार ने अब महज दो कनिष्ठ अफसरों को निलंबित कर एसआईटी की जांच के आदेश दिए हैं और सवालों के घेरे में आए जिलाधिकारियों को केवल ट्रांसफर किया है। अब इसे सरकार का भ्रष्टाचार पर प्रहार कह कर प्रचारित किया जा रहा जबकि जांच के दायरे में उन बड़े अफसरों को भी आना चाहिए जो लगातार कोरोना किटों की खरीद को लेकर जिलों में व संबंधित विभागों को आदेश निर्देश भेज रहे थे। सरकार की ओर से बती 24 जुलाई को भेजे गए गए एक पत्र का हवाला देकर कहा जा रहा है कि उसने सभी नगर निकायों को 2800 रुपये मं कोरोना किट खरीदने की सलाह दी थी। हालांकि उक्त पत्र में ग्राम पंचायतों के लिए इस तरह का कोई निर्देश नहीं है न हीं उन्हें इस आशय का कोई पत्र भेजा गया है। इतना ही नहीं जून में भी जब प्रदेश सरकार ने कोरोना किट के तहत पल्स आक्सीमीटर, थर्मल स्कैनर आदि खरीद कर गांवों में काम करने वाली आशा बहुओं को देने का आदेश जारी किया तब भी इसकी कोई तय कीमत नहीं बतायी गयी। नतीजन हर जिले में अपनी सुविधानुसार मनमाने दामों पर खरीद कर ली गयी।
यह सब भी तब हुआ है जब प्रदेश के मुख्य सचिव आरके तिवारी ने इसी 19 जून को सभी अधिकारियों को एक पत्र भेज कर समस्त शासकीय खरीद जेम पोर्टल के जरिए करने के आदेश दिए थे। संबंधित सामाग्री के जेम पोर्टल पर उलब्ध न होने की दशा में ई टेंडर से खरीदने को कहा गया था। उत्तर प्रदेश सरकार के पंचायती राज विभाग के मुखिया ने 23 जून को एक पत्र भेज कर ग्राम पंचायत स्तर पर कोरोना किट (पल्स आक्सीमीटर और थर्मल स्कैनर) खरीद कर आशा कार्यकर्ताओं को देने के निर्देश भेजे गए थे। इस आदेश में कहीं इस बात का जिक्र नहीं था कि खरीद किस दर पर की जाएगी। यह पत्र सभी जिलाधिकारियों व जिला पंचायती राज अधिकारियों को भेजा गया था। हालांकि इसके बाद बीती 24 जुलाई को पंचायती राज विभाग के प्रमुख मनोज कुमार ने नगर विकास विभाग को पत्र लिखकर शहरी निकायों में पल्स आक्सीमटर व थर्मल स्कैनर की खरीद 2800 रुपये में करने को कहा गया और इस संदर्भ में अलीगढ़ में हुयी खरीद का उदाहरण देते हुए वहां के मुख्य विकास अधिकारी से संपर्क करने को कहा गया। जब तक यह पत्र जिलों में पहुंचता कोरोना किट की आधे से ज्यादा खरीद हो चुकी थी और ग्राम पंचायतों को लिए तो इस तरह का कोई स्पष्ट निर्देश तक नही दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदर्श वाक्य आपदा में अवसर को सबसे सही तरीके से उत्तर प्रदेश के अफसरों नें अपनी कार्यशैली में उतारा है। जेम पोर्टल या ई टेंडर के निर्देशों को दरकिनार कर गांवों में मनमर्जी की एजेंसी से खरीद कर ली गयी। प्रदेश के दर्जनों जिलों से कोरोना किट की गांव गांव में की गयी खरीद में धांधली की खबरें सत्तापक्ष के विधायक और विपक्ष भी उठा रहा है।