आखिरकार कानपुर के विकरु गांव में आठ पुलिसवालों की हत्या करने वाला दुर्दांत विकास दुबे मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर से मिल ही गया और अब पुलिस की हिरासत में है ।
दावे इल्जाम का सरकारी और सियासी दौर भी शुरू हो चुका है। पुलिस वालों के कत्लेआम के गुनाहगार ने
आत्मसमर्पण किया या गिरफ्तारी हुआ, इस पर भी बहस शुरू हो गयी है। प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव से लेकर दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह चौहान तक सवाल-जवाब की लाइन में आ चुके हैं। जातीय ऐंगल भी जरायम की इस काली कहानी में प्रवेश कर चुका है । ये तेरा माफिया और वो उसका माफिया तक बहस चल गई है । लेकिन उस मूल सवाल का जवाब कोई देने को तैयार नहीं है जिसके चलते विकास दुबे जैसी घृणित बीमारियां समाज में लाइलाज होती जा रही हैं।
आठ पुलिस वालों की शहादत के बाद दुर्दांत गैंग से जुड़े पांच लोगों को अलग अलग मुठभेड़ों में मार गिराने और अपराधियों के साथ अत्यंत कठोर रुख से
खुद को शाबासी दे रही यूपी पुलिस के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर शातिर अपराधी वारदात के बाद दो दिन कैसे कानपुर में ही रहा फिर चंबल के रास्ते उज्जैन कैसे निकल गया। दो दिन पहले फरीदाबाद में विकास के छिपे होने की खबर में क्या सच्चाई है। विकास दुबे के हिरासत में होने की खबर आते ही शहीद सीओ के परिजनों ने कहा कि ये सुनियोजित सरेंडर है , गिरफ्तारी नही है।
विकास दुबे की गिरफ्तारी पर उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार कहते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत कड़ी कार्रवाई होगी। विकास दुबे को ट्रांजिट रिमांड पर यूपी लाया जाएगा और विकास के बाकी फरार साथियों पर भी जल्द शिकंजा कसा जाएगा।
विकास दुबे के हाथ से फिसलने पर एडीजी का कहना है कि पूरे देश की पुलिस एक है। हम और एमपी पुलिस अलग नहीं हैं। इसको सफलता या असफलता से नहीं देखा जाएगा।
विकास के आत्मसमर्पण के बाद पहला बयान मध्यप्रदेश के भाजपा सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्रा का आया है। मिश्रा पिछले विधानसभा चुनावों में कानपुर में भाजपा के प्रभारी रहे थे।
विकास दुबे के उज्जैन के महाकाल मंदिर में गुरुवार सुबह पकड़े जाने के बाद मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि अभी वो मध्यप्रदेश पुलिस की कस्टडी में है। गृहमंत्री ने कहा कि अभी गिरफ्तारी कैसे हुई इसके बारे कुछ भी कहना ठीक नहीं है। मंदिर ये अंदर बाहर से गिरफ्तारी हुई इसके बारे भी कहना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि समर्पण या गिरफ्तारी इंटेलीजेंस की बात है ज्यादा कुछ भी कहना सही नहीं है। उनका कहना है कि वारदात होने के बारे में पहले से ही हमने पूरी मध्यप्रदेश पुलिस को अलर्ट पर रखा था।
उधर विकासदुबे के पकड़े जाने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि नरोत्तम मिश्रा पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा की ओर से कानपुर के प्रभारी थे। वही टीवी पर सबसे पहले बयान देने आए। कांग्रेस ने कहा कि दाल में कुछ काला की बात छोड़िए यहां तो पूरी दाल ही काली है।
विकास दुबे के पकड़े जाने के तुरंत बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी सरकार साफ करे कि यह आत्मसमपर्ण है कि गिरफ्तारी है। साथ ही उसके मोबाइल की सीडीआर सार्वजनिक की जाए ताकि सच्ची मिलीभगत का भंडाफोड़ हो सके। प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीट में कहा कि कानपुर के जघन्य हत्याकांड में यूपी सरकार को जिस मुस्तैदी से काम करना चाहिए था, वह पूरी तरह फेल साबित हुई। अलर्ट के बावजूद आरोपी का उज्जैन तक पहुंचना, न सिर्फ सुरक्षा के दावों की पोल खोलता है बल्कि मिलीभगत की ओर इशारा करता है। प्रियंका गांधी ने कहा कि यूपी सरकार को मामले की सीबीआई जांच करा सभी तथ्यों और प्रोटेक्शन के ताल्लुकातों को जगज़ाहिर करना चाहिए।
दरअसल गुजरे कुछ दशकों का अतीत देखें तो उत्तर प्रदेश के बारे में यह धारणा पुष्ट करने के लिए पर्याप्त से अधिक उदाहरण हैं कि यहां जरायम की फसल बोकर सियासत की उपज काटी जाती है । एक जमाने में विशुद्ध राजनीति की उर्वर जमीन रहे हिंदी हृदय प्रदेश में ऐसे अनगिनत पूर्व और मौजूदा माननीयों की फेहरिश्त अब आम है जिनके हाथ खून से सने रहे हैं । सिर्फ विधानसभा और संसद ही नहीं, ऐसे कई महानुभावों ने माननीय मंत्री जी के पद की शोभा बधाई है ।
वास्तव में यूपी की सियासत में कुछ दशकों का ऐसा दौर रहा जब एन केन प्रकारेण चुनाव जीतने के लिए और सत्ता तक पहुंचने के लिए दुर्दांत अपराधी और बाहुबली राजनीति करने वालों की सख्त जरूरत हो गए थे । नेता उनकी मदद से चुनाव जीतते थे और वे बदले में नेता जी के संरक्षण ने जरायम और उसके जरिए धनबल और बाहुबल बढ़ाने का आशीर्वाद । धनबल और बाहुबल से तृप्त होने के बाद सीधे सियासत में प्रवेश की अतृप्त इच्छा को पूरा करने की ललक धीरे धीरे प्रवृत्ति बन गई ।
विकास दुबे वस्तुतः इसी प्रवृत्ति का प्रतीक है जिसका साथ लेना तमाम इलाकाई सांसदों और विधायकों की मजबूरी बन गई । राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में शिवली थाने में घुसकर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री का कत्ल करने वाले जघन्य अपराधी को सात साल बाद ही कानपुर पुलिस ने निष्क्रिय बताकर उसकी हिस्ट्रीशीट फाड़ दी । सरकार मायावती की थी और तत्कालीन एसएसपी आंनद स्वरूप ने पुलिस लाइन में सार्वजनिक रूप से यह नेक काम किया था ।
मतलब सरकार किसी की भी हो, सांसद और विधायक किसी भी दल के हों, विकास दुबे के बगैर उनका काम नही चलता था । रोज किसी न किसी विधायक, सांसद या महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ विकास की तस्वीरें साया हो रही हैं और माननीय सफाई दे रहे हैं कि सार्वजनिक जीवन में बहुत से लोग साथ में फोटो खिंचा लेते हैं । इन तस्वीरों वाले नेताजी लोग किसी एक पार्टी के नहीं, बहुदलीय हैं ।
यही हाल स्थानीय पुलिस का भी रहा है ।
विकास दुबे के स्थानीय पुलिस पर आतंक का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि उसने 3 जुलाई को चौबेपुर थाने के दरोगा को सीधे जान से मारने की धमकी तो दी ही, यह भी कहा था कि वह इतने पुलिस वालों को मारेगा गिनती नहीं हो पाएगी। दरोगा शर्मा ने एसओ विनय तिवारी को इसकी जानकारी भी दी थी पर लेकिन उसने सन्नाटा खींच लिया और यह बात उच्चाधिकारियों को बताने की जरूरत नही समझी ।
इलाकाई पुलिस का हाल यह था कि वह विकास दुबे का मूड देखकर उससे बात करती थी। दुबे का मूड अच्छा होता तो वह राह चलते पुलिस वालों से हाल चाल ले लिया करता था लेकिन मूड खराब हो तो वह सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक वह किसी को भी गाली दे देता था। चौबेपुर में शायद ही ऐसा कोई पुलिस कर्मी बचा हो जिसे दुबे ने धमकी न दी हो। उसके बावजूद कोई कुछ कहने को नहीं तैयार था। घटना से कुछ दिन पूर्व विकास के गुर्गों ने सिपाही को तमाचा मार दिया था। वह गांव की तरफ चला आया था महज इसी बात से गुर्गे नाराज हो गए थे।
फिलहाल इस सम्पूर्ण प्रकरण में पुलिस कनेक्शन की जांच आईजी रेंज लखनऊ लक्ष्मी सिंह कर रही हैं । शहीद पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्र के उस वायरल पत्र के गायब होने के मामले की भी जांच आईजी कर रही हैं।
विगत मार्च माह में यह पत्र पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्र ने तत्कालीन एसएसपी अनंत देव को लिखा था जिसमे चौबेपुर के एसओ विनय तिवारी को साफ साफ विकास दुबे का मददगार बताते हुए कहा था कि अगर कार्रवाई नही की गई तो शिवली थाने में घुसकर राज्यमंत्री की हत्या करने वाला दुर्दांत अपराधी किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है ।
आखिरकार हुआ वही लेकिन सिस्टम सोता रहा । वास्तव में जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि जिस विकास दुबे से शहीद देवेंद्र मिश्र ने इतना बड़ा खतरा बताते हुए अपराधी और उससे मिलीभगत करने वाले अपने मातहत पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत बताई थी, उसकी दबिश के पहले वरिष्ठ अफसरों ने तैयारी का क्या आकलन किया था । जून माह के पहले हफ्ते में ही डीजीपी के निर्देश जारी हुए थे कि किसी भी ख़तरनाक अपराधी पर दबिश के पहले तैयारियां इतनी मुकम्मल होनी चाहिए जैसी दंगा रोधी आपरेशन में होती है।
बड़ा सवाल यहां उठता है कि क्या एसएसपी ने दबिश देने वाली टीम की तैयारियां जानी थीं ? चर्चा तो इस बात की भी है कि उच्चाधिकारियों को इसकी जानकारी ही नहीं थी ।
अभी विकास दुबे, जय बाजपेई और पूर्व एसएसपीअनंत देव , जो अभी एसटीएफ के डीआईजी हैं, के कनेक्शन की भी जांच हो रही है ।
इसमें कोई शक नही कि इधर तीन सालों में अपराधियों के खिलाफ पुलिस की छवि आक्रामक रही है और मुठभेड़ों में तमाम अपराधी मारे गए हैं लेकिन इस घटना ने बाकी बातों को बहुत पीछे छोड़ दिया है । फिलहाल पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती विकास के खिलाफ मुकदमे की सख्त पैरवी करके उसे जल्द से जल्द सजा दिलाने की होनी चाहिए क्योंकि ऐसे दुर्दांत अपराधियों का यूपी की जेलों में रहकर समानांतर जरायम के कारोबार चलाने के उदाहरण भरे पड़े हैं।
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अघ्यक्ष हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)