Utterkaha: System sick in UP and outcry everywhere!: उत्तरकथा : यूपी में सिस्टम बीमार और हर ओर हाहाकार !

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 उत्तर प्रदेश में हर तरफ हाहाकार है। प्राणवायु के अभाव में मरते लोग… इलाज के बगैर मरते लोग… एम्बुलेंस न मिलने से मरते लोग और कुल मिलाकर लिजलिजे सिस्टम से मरते लोग. उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व शोककाल है । लखनऊ से लेकर बनारस और गोरखपुर से गाजियाबाद तक लोग कोरोना से कहीं ज्यादा सरकारी बदइंतजामी को कोस कोस कर मर रहे हैं । जिस  शामे अवध की खूबसूरती की चर्चा पूरी दुनिया में होती थी वहां अब श्मशाने अवध की तस्वीर दिख रही है । सुबहे बनारस के मोक्ष देने वाले मनकर्णिका घाट लाशों का बोझ संभाल नहीं पा रहा तो बीच आबादी के मैदान को अस्थाई श्मशान बना दिया गया है ।
दरअसल पिछले कुछ सालों के दौरान उत्तर प्रदेश में जिंदा और मुर्दा विभूतियों के नाम पर पार्क और बिल्डिंग खूब बनाए गए और पब्लिक हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सिफर। सत्ताधीशों ने अपना भविष्य कायदे से देखा और जनता के लिए सोचना बंद कर दिया शायद इसीलिए नए अस्पताल नहीं बनवाए। बहरहाल रेत की दीवार के मानिंद व्यवस्था ध्वस्त है और आम आदमी हांफ हांफ कर जान दे रहा है ।
 हालात की बदतरी की कल्पना ही कर सकते हैं कि जान बचाने के लिए आदमी को ब्लैक में 35 हजार रुपये का एक ऑक्सीजन सिलेंडर और इतने में ही रेमेडिसिविर के तीन इंजेक्शन खरीदने पड़ रहे हों ।
 वास्तव में अब तक सुनहरी तस्वीर दिखा रही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कोरोना की दूसरी लहर के आगे बेबस नजर आती है। उत्तर प्रदेश में आक्सीजन की कमी से दम तोड़ रहे मरीजों के परिजनों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। आक्सीजन के किल्लत से मारे मारे फिर रहे तीमारदारों का गुस्सा सड़कों पर दिखने लगा है।
अपने परिजनों के लिए आक्सीजन तलाश रहे तीमारदारों ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर राजधानी लखनऊ में हमला बोल दिया। गुस्साई भीड़ कई जगहों पर आक्सीजन के कारखानों और आपूर्ति करने वाले प्रतिष्ठानों को घेरे हुए है। रेमिडिसिविर जैसे प्राणरक्षक इंजेक्सन की भी प्रदेश में भारी किल्लत है और जमकर कालाबाजारी हो रही है। हालांकि मुख्यमंत्री ने आक्सीजन व रेमिडिसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने को कहा है।
कोरोना संक्रमण से रोकथाम को लेकर खुद अपनी ही पीठ थपाथपाने की लगातार कोशिश कर रही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को उसके ही मंत्री , विधायक सांसद और पार्टी के नेता ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। प्रदेश में कई चरणों में हो रहे पंचायत चुनावों ने कोढ़ में खाज का काम किया है। पंचायत चुनावों में उमड़ रही भारी भीड़ और बाहरी राज्यों से आ रही प्रवासी मतदाताओं की फौज ने स्वास्थ्य संकट पैदा कर दिया है। प्रदेश की राजधानी सहित ज्यादातर बड़े शहरों में मरीजों की भारी तादाद के चलते अस्पतालों में बेड नहीं बचे हैं तो मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी लाइन लगी है और घंटो इंतजार करना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव का दूसरा चरण  खत्म हुआ है जिसमें भारी तादाद में लोगो ने मतदान किया है।  सोमवार को 20 जिलों में मतदान हुआ  है जबकि 18 जिलों में पहले ही हो चुका है।  अब पंचायत चुनाव के साइड इफेक्ट्स भी सामने आने लगे हैं। जिन 18 जिलों में प्रथम चरण के मतदान 15 अप्रैल को हुए थे। उनमें से 16 जिलों में कोरोना के केस बढ़ गए हैं। ऐसे में अब हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह तो होना ही था। सरकार अब जो सुविधाएं कोरोना के नाम पर शुरू कर रही है। बढ़ती डिमांड के चलते वह भी नाकाफी ही होगी।
पंचायत चुनाव के प्रथम चरण के लिए 18 जिलों, अयोध्या, आगरा, कानपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर, जौनपुर, झांसी, प्रयागराज, बरेली, भदोही, महोबा, रामपुर, रायबरेली, श्रावस्ती, संत कबीर नगर, सहारनपुर, हरदोई और हाथरस में 15 अप्रैल को मतदान हुए थे। इन जिलों में 2.21 लाख पदों के लिए चुनाव हुए हैं, लेकिन अब इनके दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैं। खुद अधिकारियों का मानना है कि प्रदेश में पंचायत चुनाव में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों का ही कहना है कि बिना भीड़ के कौन सा चुनाव होता है? उनका कहना है कि पंचायत चुनाव में निर्वाचन आयोग द्वारा बड़ी-बड़ी बातें की गई, लेकिन कोई एक जगह इस तरह की नहीं है जहां कोरोना प्रोटोकॉल का पालन किया गया हो। यहां तक कि कोरोना मरीजों को भी वोटिंग के लिए छूट दी गई है। मतदान केंद्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग नहीं ही दिखी। वे कहते हैं कि सरकार ने धारा 144 लगाई थी कि 5 लोग से ज्यादा इकट्ठा न होने पाए लेकिन इसका असर चुनावों के दौरान नहीं दिखा। अब हालात ये हो गयी है कि इसका असर आने वाले दिनों में और दिखेगा। एक तरफ सरकार चिकित्सा सुविधाओं की डिमांड पूरी करने में लगी है तो दूसरी तरफ मरीज बढ़ रहे हैं ऐसे में डिमांड कैसे पूरी होगी।
दरअसल पंचायत चुनावों में वोट डालने को भारी तादाद में महानगरों से प्रवासी मजदूर लौट रहे हैं। लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों से आने वाली कई ट्रेनों से रोजाना के करीब 10 से 15 हजार यात्री उतर रहे हैं। इनमे से ज्यादातर यात्री पंचायत चुनावों में वोटिंग के लिए आए हैं। प्रवासी मजदूरों के लिए पंचायत चुनाव तो है ही साथ ही प्रवासी मजदूरों को डर है कि यह महानगर लॉकडाउन की तरफ बढ़ रहे है। ऐसे में लोग बिना परेशानी और तकलीफ के जल्द से जल्द अपने गांव पहुंचना चाहते हैं लेकिन यूपी सरकार की तैयारी इनके लिए नाकाफी है।
उधर कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए प्रदेश के किसी भी गांव में अभी क्वारैंटाइन सेंटर नही बने हैं। जहां बाहर प्रदेशों से आने वालों को आइसोलेट किया जा सके। स्टेशन पर दिखावे के लिए थर्मल स्कैनिंग हो रही है लेकिन ऐसा कोई केस सामने नही आया है कि जिसे आइसोलेट किया गया हो। यह सभी लखनऊ उतर कर सार्वजनिक परिवहन से अपने अपने शहरों की यात्रा कर रहे हैं। निगरानी समिति को एक्टिव किया गया है। लेकिन अभी भी गांव में कोई एक्शन दिख नही रहा है। केवल मुंबई की ट्रेनों से ही 1 अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच ढाई से 3 लाख प्रवासी मजदूर लखनऊ के आसपास शहरों और गांव में पहुंच चुके हैं।
अगर सरकार की ओर से ही जारी किए दैनिक आंकड़ों को देखा जाए तो अब तक जहां पंचायत चुनावों के लिए मतदान हो चुका है वहां के जिलों में जौनपुर में 15 अप्रैल को 265, 16 अप्रैल को 530, 17 अप्रैल को 435 केस थे जो 18 अप्रैल को बढ़ कर 511 हो गए हैं। इसी तरह महोबा में 15 अप्रैल को 6, 16 अप्रैल को 31, 17 अप्रैल को 95 तो 18 अप्रैल को 115 संक्रमित हो गए थे। रामपुर में 15 अप्रैल को 29 तो 18 अप्रैल को 210 केस रायबरेली में 15 अप्रैल को  309 से बढ़कर 18 अप्रैल को 345 मरीज हो गए थे। झांसी में 15 अप्रैल को 466 तो 18 अप्रैल को बढ़कर 954 केस हो चुके थे।
पंचायत चुनाव टालने के तमाम अनुरोध पर सरकार ने गौर ही नहीं किया और अपनी रफ्तार में चलती जा रही है।
 अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चिंतित हुए तो वहां इंतजाम की बागडोर अपने चहेते आईएएस अधिकारी रहे मौजूदा एमएलसी अरविंद शर्मा के हवाले कर दी जिसके सकारात्क परिणाम भी आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में जो हालात हैं वो कमोबेश सरकार के नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं। दरअसल सरकार की ओर से जो भी व्यवस्थाएं की जा रही हैं वो मरीजों की बढ़ती भीड़ के आगे नाकाफी हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री से लेकर हालात को संभालने वाले ज्यादातर अधिकारी खुद ही कोरोना संक्रिमत होकर आइसोलेशन में है और जनता पहले से ही चिकित्सा सुविधाओं के मामले में आइसोलेशन में चल रही है।