उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव आते ही गांव गांव में कच्ची लहन की खुशबू फैल गयी है। अवैध शराब का धंधा उफान पर है तो नशे को दुगना करने के लिए तैयार की जा रही जहरीली शराब से मौतों की खबरे अखबारों के पन्ने रंग रही है। जहरीली शराब के सौदागरों के कारनामें यूपी की योगी सरकार की नयी आबकारी नीति और शराब सिंडीकेट को तोड़ने की सफलता पर पानी फेर रहा है।
पंचायत चुनाव के समय कई गांवों में प्रत्याशी प्रसाद की तरह शराब परोसते हैं। बड़ी खपत के लिए शराब की भट्ठियां गांवों के छोटे मजरों में कारखाने की तरह सजा दी जाती हैं। इनमें से कुछ चुनाव बाद बंद हो जाती हैं तो कुछ स्थायी हो जाती हैं।
पंचायत-प्रधानी के चुनाव में जिताऊ फार्मूले में दारू की महिमा का बखान करते हुए एक बड़े लीडर खुलासा करते हैं कि अपने कार्यकर्ता को तो थोड़ी- थोड़ी पीने की हिदायत दी जाती है, लेकिन विरोधी के समर्थकों को जमकर छकाई जाती है। अपनों के लिए ब्रांड भी अलग कर लिए जाते हैं। यह वही शराब होती है जिसके बनाने और पिलाने का घातक तरीका ही मौत का कारण बन जाता है। पंचायत चुनाव की दारू पार्टी के चलते पिछले हफ्ते प्रतापगढ़ और अयोध्या में आधा दर्जन से ज्यादा लोग जान गवां चुके हैं तो गुजरी रात बदायूं जिले में जहरीली शराब से तीन लोग परलोक सिधार गए जबकि चौथे अपनी दोनों आंखें गंवाने के बाद मरणासन्न स्थिति में हैं ।
पिछले दिनों बुलंदशहर के सिकंदराबाद में जहरीली शराब पीने से छह लोगों की मौत दुखद घटना हुयी तो प्रयागराज और मिर्जापुर में भी लोग मारे गए।
योगी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इस सरकार के कार्यकाल में अभी तक जहरीली शराब पीने से मौत की जितनी घटनाएं हुई हैं, पिछले कई दशकों में नही हुई थीं । नकली और दूसरे राज्यों से लाई गई शराब की बड़े पैमाने पर बरामदगी हुई है और दर्जनों की तादाद में आबकारी और पुलिस महकमे के अफसर-कर्मी सस्पेंड भी हुए हैं, फिर भी स्थिति पर काबू न हो पाना सरकार के लिए चिंताजनक है ।
मार्च 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जुलाई, 2017 में आजमगढ़ में जहरीली शराब पीने से 12 लोगों की मौत हो गई थी। बीते साल इसी तरह की घटना राजधानी के पड़ोसी जिले बाराबंकी में हुयी थी जहां आधा दर्जन लोगों की मौत हुयी थी। शराब से प्रतापगढ़, प्रयागराज चित्रकूट, अयोध्या में समेत कई जिलों में मौतें हुई हैं। सिर्फ मार्च के महीने में 25 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है।
सत्ता में आने के साथ य़ूपी में शराब के मजबूत सिंडीकेट को तोड़ने में सफल रही योगी सरकार आखिरकार जहरीली शराब के सौदागरों से हार गयी लगती है। एक के बाद एक जहरीली शराब के सेवन से होने वाली मौतों की घटनाएं आने वाले दिनों में होने वाले पंचायत चुनावों के मद्देनजर और खतरनाक दिखती जा रही हैं। कहा जा रहा है कि शराब माफिया पर तो अंकुश जरुर लगा पर उनकी जगह इस धंधे पर काबिज हुए छोटे कारोबारियों को असली की जगह नकली का खेल कुछ ज्यादा ही रास आ रहा है। जहां बड़े पैमाने पर यूपी में सरकारी लाइसेंसी दुकानों पर हरियाणा से मंगायी गयी नकली शराब धड़ल्ले से बिक रही है वहीं गांव-गांव में कुटीर उद्योग की तरह भी इसका उत्पादन किया जा रहा है। दरअसल भाजपा सरकार ने सपा और बसपा की सरकारों में अंग्रेजी शराब के कारोबार में एकाधिकार रखने वालों का नेटवर्क तो खत्म किया, लेकिन कच्ची और देशी शराब के स्थानीय माफियाओं का नेटवर्क तोडऩे में यह नाकाम रही है।
यह कड़वी हकीकत है कि यूपी में अरसे से शराब के कारोबार पर काबिज एक सिंडीकेट के टूटने और नयी आबकारी नीति के आने के बाद से अवैध धंधे ने परवाज भरी है। जहां पहले सिंडीकेट खुद ही अवैध शराब के धंधे पर लगाम लगाने के लिए पूरी फौज उतारता था और आबकारी विभाग के लचर तंत्र को बस नाम के लिए अपने साथ रखता था वहीं अब गांव गांव में ग्राम प्रधान से लेकर शहरों में छुटभैय्या कारोबारियों के हाथ में शराब का वैध कारोबार चला गया। ये नए कारोबारी राजस्व देने से बचने के लिए खुद ही हरियाणा और पड़ोंसी सूबों की शराब बेंचने से लेकर नकली माल तक बेंचते हैं।
यह किसी से छिपा तथ्य नहीं है कि उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में गांवों में दो-ढाई दशक में शराब कुटीर उद्योग की तरह पनपा है। यह उद्योग कहीं ढके-छिपे स्वरूप में नहीं चल रहा, बल्कि स्थानीय पुलिस व आबकारी अधिकारियों के बाकायदा संरक्षण में चलता है। साल 2017 में आजमगढ़ में शराब से मौतों के बाद सरकार ने आबकारी अधिनियम में संशोधन कर सख्त प्रावधान किए थे। नई धारा 60 (क) जोड़ी गई थी। इसके तहत किसी की मौत हो जाने पर जहरीली शराब बनाने और बेचने वाले को उम्र कैद या मृत्युदंड की सजा, दस लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया था। माना गया था कि आबकारी अधिनियम में सख्त प्रावधान से अवैध शराब का कारोबार करने वाले भयभीत होंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हालिया घटनाओं के बाद तो सरकार ने नकली शराब के कारोबारियों पर गैंगस्टर एक्ट तक लगाने के आदेशी जारी कर दिए हैं। आबकारी मंत्री राम नरेश अग्निहोत्री का कहना है कि अवैध शराब बेचने वालों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाएगा। आरोपियों के खिलाफ गैंगस्टर और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई की जाएगी। अपर मुख्य सचिव आबकारी संजय भूसरेड्डी बताते हैं कि शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए टोल फ्री और व्हाट्सएप नंबर जारी किए गए थे।
आबकारी विभाग के अधिकारी कानून का असर न दिखने के पीछे पुलिस और अभियोजन प्रक्रिया में गड़बड़ी की बात कहते हैं। हालांकि कमी आबकारी विभाग में भी है। शराब के अवैध कारोबार की सुरागरसी और धड़पकड़ के लिए जो महत्वपूर्ण एजेंसियां प्रवर्तन दल और स्पेशल स्ट्राइकिंग फोर्स है। इनमें प्रवर्तन दल तो संसाधनों की कमी से जूझ रही है जबकि स्पेशल स्ट्राइकिंग फोर्स में तैनात अधिकारियों को डिस्टलरियों की 24 घंटे निगरानी के लिए तैनात कर रखा गया है। आबकारी अधिकारी, इंस्पेक्टर की तैनाती डिस्टलरी की निगरानी के लिए करना विभाग की मंशा पर सवाल उठाता है। इससे ही शराब के अवैध कारोबारियों को खुली छूट मिली हुई है। आबकारी अधिकारियों की शिकायत व्यवस्थापन से जुड़े कार्योँ को ज्यादा महत्व दिए जाने से भी है।
आबकारी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार का सबसे ज्यादा जोर राजस्व बढ़ाने पर है और जहरीली शराब की धरपकड़ उसकी प्राथिमकता में बहुत नीचे आता है। जहराली शराब को लेकर सरकार तभी जागती है जब कुछ घटनाएं हो जाती हैं। वर्ष 2017-18 में आबकारी विभाग का अनुमानित राजस्व साढ़े पंद्रह हजार करोड़ से अधिक था तो वर्ष 2018-19 में इसमें साढ़े चार हजार करोड़ की बढ़ोतरी कर दी गई है। वर्ष 2020-21 में जब कोरोना महामारी के दौरान सारी दुकानें बंद थी उस वक्त शराब की दुकानें खोल कर राजस्व जुटाया गया। पहली अप्रैल से शुरू हुए इस नए वित्तीय वर्ष में राज्य में शराब व बीयर की बिक्री से आबकारी के मद में 35500 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने का लक्ष्य तय हुआ है।