देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गरीब और पिछड़े कहे जाने वाले राज्यों से लाखों लोग रोजी-रोटी के लिए दशकों से जाते रहे हैं। कुछ गरीब से अमीर बन गए और कुछ रंक से राजा लेकिन 98 फीसद वही लोग हैं जो रोज कुआं खोदकर पानी पीते हैं वैश्विक महामारी कोरोना से देश पीड़ित है और आम लोग हलकान परेशान हैं। लेकिन सपनों के शहर मुंबई की कुछ तस्वीरें और मौके के हालात वास्तव में विचलित करने वाले है।
लॉकडाउन के समय मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर उमड़ी उत्तर भारतीय गरीब गुरगों की बड़ी भीड़ और उसके बाद बांद्रा स्टेशन घर जाने के लिए उमड़ी हजारों की भीड़ , वास्तव में इस बात का आभास कराते हैं कि हम देश के बंटवारे के समय जो दशा शरणार्थियों की थी कमोबेश वैसे ही दृश्य का फ्लैश बैक देख रहे हैं। यह तस्वीरें मुंबई में रहने वाले 40 लाख से ज्यादा उत्तर भारतीयों की है जिनमे ज्यादातर तादाद छोटी कमाई वालों की है । उनमें भी अधिकांश हिस्सा उन लोगों का है जो 8 ़ 6 के कमरे में आठ -आठ लोगों के साथ रहते है। ये वही आॅटो रिक्शा, टैक्सी अथवा ठेला चलाने वाले या पटरी पर दो पैसे कमाने वाले लोग हैं जो कभी राज ठाकरे के लोगों की मार खाते हैं तो कभी शिवसेना वाली बीएमसी के लोगों के निशाने पर रहते हैं। फिलहाल ज्यादातर इलाकों में इन गरीबों की जिंदगी नरक हो गई है और अब यह मांग जगह-जगह से उठने लगी है कि या तो उन्हें खाना दो या फिर उनके गांव जाने की इजाजत। दुर्भाग्य है कि राजनीति भी जारी है। उत्तर भारतीयों के प्रमुख नेता कृपा शंकर सिंह से लेकर अमरजीत मिश्रा तक अपनी कोशिशों से मदद कर रहे हैं लेकिन यह नाकाफी है।
यहां साढ़े चार लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की मुसीबत का बयान राज्यपाल के सामने कर चुके हैं और मूख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी गुहार लगाई है लेकिन फर्क दिखता नहीं है। मुम्बई के हिंदी अखबारों के शीर्षक अक्सर इसी तरह के दिखते हैं।
? भोजन के लिए परेशान हैं प्रवासी मजदूर
? सरकार के दावे के उलट नहीं मिल रही कोई मदद
? मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश व बिहार के हैं ये मजदूर
? मजदूरों की मांग,अनाज नहीं दे सकते तो घर जाने की दो अनुमति
कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन में फंसे प्रवाशी मजदूरों को लेकर चल रही राजनीति के बीच उनका बुरा हाल बरकरार है। राज्य सरकार के दावों के उलट पालघर जिले के वाडा स्थित कुडुस गांव में फंसे करीब 60 प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों तक राहत सामग्री नहीं पहुंच रही है। लॉकडाउन लंबा खिंचने के चलते उनकी जमा पूंजी भी खत्म हो गई है और अब वे प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि या तो उन्हें राशन दिया जाए या गांव वापस भेजने की व्यवस्था की जाए। कई लोग परेशान होकर पैदल गांव जाने के लिए निकले लेकिन ज्यादातर को गुजरात सीमा से पहले ही रोक दिया अब वे लोग स्थानीय प्रशासन की मदद से वहीं रह रहे हैं। वे परिवार के साथ रहते है इसलिए पैदल घर जाने की नहीं सोची लेकिन अब पैसे खत्म होने के बाद प्रशासन से घर वापसी में मदद या राशन की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बड़े जोर शोर से दो नोडल अग्रसर बनाए थे अपने राज्य के लोगों की कुशल क्षेम के लिए लेकिन वह भी सिर्फ रस्म अदायगी भर साबित हो रहा है।
? कोरोना काल में आगरा की करुण कथा : उत्तर प्रदेश के सबसे प्रमुख पर्यटन शहर यानी ताजनगरी आगरा में हाहाकार के हालात बताए जा रहे हैं। सरकार के दावों के उलट स्थानीय लोग सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों से बदहाली की कहानी बयान कर रहे हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में कोरोना की कहानी इसी आगरा से शुरू हुई थी लेकिन जो लोग प्रारम्भ में इसके चपेट में आए वे सभी ठीक होकर घर लौटे तो जिला प्रशासन और योगी आदित्यनाथ सरकार ने राहत की सांस ली। अस्पताल से ठीक होकर लौटे शहर के एक व्यक्ति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर हालचाल भी लिया। तबलीगी जमात कांड शुरू हुआ तो यहां भी मामले बढ़ने लगे। फिर कोरोना से लड़ने के आगरा मॉडल की चर्चा हुई जिसके सूत्रधार डीएम पीएन सिंह बताए जाते हैं। इस मॉडल को लखनऊ से भी तारीफ मिली तो लगता है जिला प्रशासन कुछ ज्यादा ही आत्ममुग्ध हो गया और लापरवाहियां बढ़ने लगीं। आज आगरा को लोग सूबे की कोरोना राजधानी तक बोलने लगे हैं। आगरा के जमीनी जानकार और पत्रकार बताते हैं कि कोरोना संक्रमण ने आगरा में वो दिन दिखा दिए जिसकी यहां किसी ने कल्पना नहीं की थी। फिलहाल इस शहर में रहने वालों को कोरोना संक्रमण का कम, भुखमरी और स्वास्थ्य सेवाओं में बदइंतजामी का डर ज्यादा है। सरकारी अस्पतालों की हालत दिखावटी बन गई है और कोरोना के इलाज के लिए एसएन मेडिकल कालेज और जिला अस्पताल ने बाकी बीमारियों का इलाज करना बंद ही बकर दिया है। हालत ये है, जितने लोग कोरोना से मर रहे हैं, उससे ज्यादा दूसरी बीमारी से मौतें हो रही हैं। प्राइवेट अस्पतालों के संचालक इस बुरे दौर में सिर्फ सौदागर साबित हुए हैं जो शायद सेवाभाव की शपथ भी भूल गए हैं। निजी अस्पतालों का बड़ा बाजार माने जाने वाले इस आगरा में करीब 12 हजार डाक्टर और 600 नर्सिंग होम हैं। आम दिनों में मरीजों को लूटा, अब जब भगवान की भूमिका में समाज और देश की सेवा का असली वक्त आया तो घर में छिपकर बैठ गए हैं। आगरा के वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेन्द्र पटेल कहते हैं कि फिलवक्त शहर में कोरोना से पहले भूख से मौत का डर लोगों को सत्ता रहा है और जिस तरीके से पॉजिटिव मरीजों की रफ्तार बढ़ रही है इस बात के प्रबल आसार हैं कि यहां लॉकडाउन 3 मई से आगे बढाया जाएगा। वे जो सूरतेहाल मौके से बता रहे हैं, भयावह प्रतीत होता है। यकीनन एक हजार साल के हतिहास में आगरा ने ऐसा बुरा वक्त कभी नहीं देखा। तब भी नहीं, जब साल 1526 में यहां शासक सिकंदर लोदी को पानीपत के मैदान मे पराजित कर मुगल दौर की शुरूआत हुई थी। तब भी नहीं जब मुगलों को भगाकर अफगान शेरशाह सूरी ने हुकूमत कायम की और उस दौर में भी नहीं जब अफगानों को खदेडकर मुगल एक बार फिर यहां काबिज हुए थे।तब भी नहीं जब बागी मुगल सेनापति को मौत के घाट उतारकर आगरा पर ग्वालियर के मराठा शासक का परचम लहराया था मराठों से बिना जंग के आगरा जीतने पर भी आवाम आबाद रही। हुकूमतें बदलती रहीं पर आवाम महफूज रहीं। हां, कई बार बाढ और सूखे के साये में अकाल के दौर जरूर आए पर आगरा ने भुखमरी का आलम कभी नहीं देखा।
? यूपी के आंकड़े: आगरा टॉप पर
अभी तक उत्तरप्रदेश के आगरा में 327, लखनऊ में 182, गाजियाबाद में 48, गौतमबुद्धनगर (नोएडा) में 103, लखीमपुर खीरी में 4, कानपुर नगर में 91, पीलीभीत में 2, मुरादाबाद में 94, वाराणसी में 19, शामली में 26, जौनपुर में 5, बागपत में 15, मेरठ में 82, बरेली में 6, बुलन्दशहर में 22, बस्ती में 20, हापुड़ में 18, गाजीपुर में 6, आजमगढ़ में 7, फिरोजाबाद में 65, हरदोई में 2, प्रतापगढ़ में 6, सहारनपुर में 98 व शाहजहांपुर में 1, बांदा में 3, महराजगंज में 6, हाथरस में 4, मिजार्पुर में 3, रायबरेली में 43, औरैय्या में 9, बाराबंकी में 1, कौशाम्बी में 2, बिजनौर में 28, सीतापुर में 17, प्रयागराज में 1, मथुरा में 7 व बदायूं में 13, रामपुर में 16, मुजफ्फरनगर में 12, अमरोहा में 23, भदोहीं में 1, कासगंज में 3 व इटावा में 2, संभल में 7, उन्नाव में 1, कन्नौज में 6, संतकबीरनगर में 1, मैनपुरी में 4, गोंडा में 1, मऊ में 1, एटा में 3 व सुल्तानपुर में 2, बहराइच में 8, श्रावस्ती के 3 व अलीगढ़ में 5 की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है।
173 डिस्चार्ज किए गए : आगरा से 18, लखनऊ से 9, गाजियाबाद से 13, गौतमबुद्धनगर (नोएडा) से 44, लखीमपुर-खीरी से 4, कानपुर नगर से 1, पीलीभीत से 2, मोरादाबाद से 1, वाराणसी से 6, शामली से 2, जौनपुर से 4, मेरठ से 17, बरेली से 6, बुलन्दशहर से 2, गाजीपुर से 5, आजमगढ़ से 3, फिरोजाबाद से 3, हरदोई से 2, प्रतापगढ़ से 6, शाहजहांपुर से 1, महराजगंज से 6, हाथरस से 4, बाराबंकी से 1, कौशाम्बी से 2, सीतापुर से 6, प्रयागराज से 1 व रामपुर से 4 कोरोना मरीजों को डिस्चार्ज किया गया है।
21 मौत: बस्ती, वाराणसी, बुलन्दशहर, कानपुर, लखनऊ, फिरोजाबाद व अलीगढ़ में 1-1, मुरादाबाद में 5, मेरठ में 3, व आगरा में कोरोना से अब तक कुल 6 मौतें हुईं। वहीं 90,248 लोगों ने सर्विलांस की 28 दिन की समय सीमा पूरी की है ।प्रदेश में कुल 62,946 पैसेंजर्स को आॅब्जर्वेशन में रखा गया है। 11,826 लोगों को इंस्टीट्यूशनल क्वारैंटाइन में रखा गया है।
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