Uterus Operation Precautions: जानिए बच्चेदानी के ऑपरेशन के बाद की सावधानी

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Uterus Operation Precautions

Uterus Operation Precautions: स्त्री रोगों में यह सबसे ज्यादा की जाने वाली सर्जरी में से एक है। मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि इसके बाद आपको कोई परेशानी नहीं होगी। वास्तव में हिस्टेरेक्टॉमी के बाद पेश आने वाली चुनौतियां दो प्रकार की हो सकती हैं। पहली तो सर्जरी से संबंधित होती हैं और दूसरी, गर्भाशय (Uterus) निकालने की वजह से पैदा होने वाली चुनौतियां होती हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, लैपरोस्कोपिक सर्जरी का विकल्प उपलब्ध होने, सर्जरी की तकनीकों में सुधार होने के बाद से सर्जरी संबंधी जटिलताएं काफी कम हुई हैं। लैपरोस्कोपिक सर्जरी का लाभ यह होता है कि मरीज को अस्पताल में कम समय के लिए रुकना पड़ता है, वे जल्दी चलने-फिरने लायक होते हैं और ऑपरेशन के बाद कम जटिलताएं होती हैं।

1 सर्जरी संबंधी कुछ चोटें

हालांकि सर्जरी संबंधी जटिलताओं में काफी कमी आयी है, लेकिन इसके बावजूद गर्भाशय, मूत्राशय या बड़ी आंत संबंधी चोटें हो सकती हैं। जैसा कि अन्य किसी भी बड़ी सर्जरी में होता है, हिस्टेरेक्टॉमी के बाद इंफेक्शन और ब्लीडिंग जैसे रिस्क भी हो सकते हैं।

2 आप प्रेगनेंट नहीं हो पाएंगी

जहां तक गर्भाशय को निकालने से जुड़ी जटिलताओं का सवाल है, चूंकि गर्भाशय का प्रमुख कार्य प्रेग्नेंसी से जुड़ा है, इसलिए हिस्टेरेक्टॉमी के बाद आप प्रेग्नेंट नहीं हो सकते। इसके अलावा, कुछ हार्मोनल बदलाव भी शरीर में हो सकते हैं जो कि ओवरीज़ को हटाने के कारण पैदा होते हैं। ये बदलाव आमतौर से उसी तरह के होते हैं जो कि मेनोपॉज़ के बाद शरीर में दिखायी देते हैं।

3 हो सकते हैं मेनोपॉज जैसे लक्षण

मेनोपॉज़ से जुड़े लक्षणों में, बोन हैल्थ कम होता, योनि में शुष्कता (Vaginal dryness) प्रमुख हैं। लेकिन इन लक्षणों में दवाओं तथा सप्लीमेंट्स की मदद से राहत मिल सकती है। साथ ही, हरेक हिस्टेरेक्टॉमी में ओवरीज़ को नहीं निकाला जाता। अगर ओवरीज़ स्वस्थ होती हैं, तो उन्हें युवा मरीजों के मामले में छोड़ दिया जाता है, जिससे कि हार्मोनल उतार-चढ़ाव की समस्या न हो।

सर्जरी से पहले जान लें कुछ जरूरी बातें

लेकिन सर्जरी से पहले मरीज की काउंसलिंग, सर्जरी के कारणों को ठीक तरीके से समझना, ऑपरेशन के बाद मरीज को जरूरी सपोर्ट आदि काफी महत्वपूर्ण पहलू हैं जो मरीजों को हिस्टेरेक्टॉमी के बाद पैदा होने वाले शारीरिक तथा भावनात्मक बदलावों से सही ढंग से निपटने में मददगार होते हैं। इनका एक फायदा यह होता है कि मरीजों को बेहतर लाइफ क्वालिटी का लाभ मिलता है और वे अपने शरीर में पैदा होने वाले बदलावों के साथ बखूबी तालमेल बैठा पाते हैं।