Haryana Assembly Election: कंगना व खट्टर के बयान पर बवाल

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कंगना व खट्टर के बयान पर बवाल
Haryana Assembly Election: कंगना व खट्टर के बयान पर बवाल

किसान संगठनों ने जताया रोष
खाप पंचायतें भी आई भाजपा के विरोध में
Chandigarh News (आज समाज) चंडीगढ़: हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रचार चरम पर पहुंच चुका है। सत्ता पर काबिज होने के लिए सभी पार्टियां एंडी चोटी कर जोर लगा रही है। नेता एक दूसरे पर जमकर हमला बोल रहे है। सभी पार्टियां अपने कार्यकाल को बेहतर बता जनता को लुभाने का काम कर रही है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि एक नेता के मुंह से निकला शब्द पूरी पार्टी पर ही भारी पड़ जाता है। फिर ऐसे नेता के बयान पर या तो पार्टी व नेता को माफी मांगनी पड़ती है या फिर पार्टी ऐसे नेता के बयान को उसकी निजी राय बता उससे किनारा कर लेती है। इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की उनके बयान से किसी एक वर्ग विशेष को दूख न पहुंचे। इन सब के बावजूद भी कई बार नेताओं के मुंह से ऐसे शब्द निकल ही जाते है।

जो भविष्य में भी उसका व पार्टी का पीछा नहीं छोड़ते। हरियाणा कृषि प्रधान राज्य है। प्रदेश के अधिकतर लोग कृषि पर निर्भर है। इसी कारण पूर्व में कृषि कानूनों को लेकर जो आंदोलन हुआ था। उसमें हरियाणा की भागीदारी महत्वपूर्ण थी। क्योंकि पंजाब से दिल्ली का रास्ता हरियाणा से होकर जाता है। बेशक केंद्र सरकार ने किसानों के आंदोलन को देखते हुए तीनों कृषि कानून वापस ले लिए हो लेकिन भाजपा नेताओं के बयानों से लगता नहीं है कि वे इनकों वापस लेने के पक्ष में है। वह इनकों लागू ही करवाना चाहते है।

मुझे खेद है, अगर मैंने किसी को निराश किया : कंगना

अभी हाल ही में अभिनेत्री से सांसद बनी कंगना रनोट ने कहा कि किसानों के जो 3 कृषि कानून रोक दिए गए, वे वापस लाने चाहिए। किसानों को खुद इसकी डिमांड करनी चाहिए। हमारे किसानों की समृद्धि में ब्रेक न लगे। जब इस बयान की चौतरफा निंदा हुई तो कंगना रनोट ने सार्वजनिक रूप से अपने बयान पर माफी मांगी। वहीं पार्टी ने भी कंगना के बयान से किनारा कर लिया। कंगना ने कहा कि यह मेरी व्यक्तिगत राय थी। मुझे खेद है। अगर मैंने किसी को निराश किया

आंदोलन कर रहे हैं किसान नहीं बल्कि किसानों के नाम पर मुखौटा : खट्टर

वहीं अभी कंगना के बयान पर बवाल शांत हुआ भी नहीं था कि पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दो दिन पहले एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं वो किसान नहीं बल्कि किसानों के नाम पर मुखौटा हैं। 3 साल पहले कृषि कानूनों को वापस लेना प्रधानमंत्री का बड़प्पन था। हरियाणा में कहीं विरोध नहीं हो रहा। पंजाब से ही एक ग्रुप जींद आया, जिसने विरोध किया। उसमें 15-20 लोग हरियाणा के थे।

किसान संगठन व खाप पंचायतें आई विरोध में

मनोहर लाल खट्टर के बयान पर हरियाणा के किसान संगठनों व खाप पंचायतों ने नाराजगी जताई है। किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ का कहना है कि कंगना रनोट का फिजूल बातें करने का पुराना रिकॉर्ड रहा है। किसानों को जानबूझकर परेशान करने की कोशिश की जा रही है। ये किसानों को जितना प्रताड़ित करेंगे, उतना बुरा परिणाम इन्हें हरियाणा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि मनोहर लाल खट्टर के मुंह पर खुद ही आ गया कि उन्होंने बड़े-बड़े बैरिकेड्स लगाकर हरियाणा में किसानों को रोका है। उनके कारण ट्रांसपोर्टर और व्यापारी परेशान हैं। इसका फैसला आने वाले चुनावों में हो जाएगा।

भाजपा का पीछा नहीं छोड़ रहा किसान आंदोलन

भाजपा के दो नेताओं द्वारा दिए गए बयान ने फिर से किसान आंदोलन की यादों को ताजा कर दिया है। किसान आंदोलन के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीट जितने वाली भाजपा 2024 में मात्र 5 सीटों पर सिमट गई। जाटलैंड में तो भाजपा प्रत्याशियों को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। ऐसा ही हाल अब विधानसभा चुनाव में है। अभी हान ही में नारायणगढ़ से भाजपा प्रत्याशी पवन सैनी को किसानों ने गांव में जाने से रोका। जब किसान नहीं माने तो उनपर लाठीचार्ज किया गया।

किसानों को साधना भाजपा के लिए चुनौती

भारतीय किसान यूनियन का दावा है कि आंदोलन में 150 किसानों की मौत हुई। इसमें सबसे ज्यादा जींद जिले के 17 किसान थे। पिछले 6 महीनों से हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर फिर से किसानों ने डेरा डाल रखा है। किसानों का सीधा असर राज्य की 35 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर है। हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग है। रिजल्ट 8 अक्टूबर को आएगा। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती किसानों को साधने की है।

यह थे तीन कृषि कानून

कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 शामिल हैं।

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