India Entry ‘Memory of the World register’ (आज समाज), नई दिल्ली: भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र और श्रीमद्भगवद्गीता को युनेस्को के ‘मेमोरी आफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में शामिल किया गया है। यूनेस्को ने एक विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दी, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जताई है। विज्ञप्ति के अनुसार यूनेस्को के ‘मेमोरी आफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर (विश्व स्मृति रजिस्टर) में कुल 74 नई एंट्री की गईं, जिसके बाद रजिस्टर में अभिलेखित संग्रहों की कुल संख्या अब 570 हो गई। वहीं नाट्यशास्त्र और श्रीमद्भगवद्गीता को शामिल करने के बाद विश्व स्मृति रजिस्टर में भारत की अब 14 अमूल्य प्रविष्टियां हो गईं हैं।
गजेन्द्र सिंह शेखावत ने दी जानकारी
केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने सोशल मीडिया पर गीता और नाट्यशास्त्र को विश्व स्मृति रजिस्टर में शामिल किए जाने की जानकारी दी। उन्होंने इसे भारत की सांस्कृतिक चेतना के लिए ऐतिहासिक क्षण बताया। शेखावत ने एक पोस्ट में लिखा, इससे भारत की दार्शनिक व सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर एक बड़ी पहचान मिली है केंद्रीय मंत्री शेखावत ने लिखा, श्रीमद्भगवद्गीता व नाट्यशास्त्र न सिर्फ ग्रंथ हैं बल्कि यह जीवन दृष्टि, भारत की सोच व कलात्मक अभिव्यक्तियों के मूल स्तंभ भी हैं। इन ग्रंथों ने भारत को दिशा देने के साथ ही दुनिया को भी आत्मा तथा सौंदर्य की नई दृष्टि दी है।
हर भारतीय के लिए गर्व का पल : मोदी
पीएम मोदी ने ‘एक्स’ पर खुशी जताई है। उन्होंने लिखा, यूनेस्को के मेमोरी आॅफ द वर्ल्ड रजिस्टर में गीता व नाट्यशास्त्र को जगह दिया जाना पूरे विश्व में फैले प्रत्येक भारतीय के लिए यह गर्व का पल है। यह हमारी समृद्ध संस्कृति और शाश्वत बुद्धिमत्ता की वैश्विक मान्यता है। प्रधामनंत्री ने कहा, गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना का पोषण किया है और उनकी अंतर्दृष्टि दुनिया को हमेशा प्रेरित करती रहती है।
पहले ये रचनाएं अंतरराष्ट्रीय सूची में शामिल
बता दें कि इससे पहले भारत की ओर से तवांग धर्मग्रंथ, दुनिया का सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद, संत तुकाराम की अभंग रचनाओं से जुड़ी फाइलें भी इस अंतरराष्ट्रीय सूची में शामिल हो चुकी हैं। ऋग्वेद को 2007 में ‘मेमोरी आॅफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में जगह मिली थी। यूनेस्को ने ऋग्वेद को मान्यता देते हुए तब कहा था कि यह न केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह मानव सभ्यता की शुरुआती सोच, दर्शन, भाषा व सांस्कृतिक संरचना का अमूल्य दस्तावेज भी है।
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