वीं सदी का 19वां वर्ष उत्तरार्ध की ओर अग्रसर है। यह युग हर हाथ में इंटरनेट युक्त मोबाइल फोन के लिए जाना जाएगा। उसमें भी सोशल मीडिया में जन-भागीदारी की तो बात ही कुछ और है। इस स्थिति में मोबाइल फोन धारकों की जीवन रेखा बन चुके व्हाट्सऐप यदि हैक हो जाए तो समझिए क्या होगा? कितनी हलचल मचेगी? अब कुछ इसी तरह का मामला सामने आ रहा है, जिसकी गंभीरता को समझने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि व्हाट्सऐप के जरिए जासूसी कराई गई है। यह काम किसने और क्यों कराया है, यही बड़ा सवाल है। व्हाट्सऐप ने कई भारतीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकतार्ओं को बताया है कि एक इजरायली सॉफ्टवेयर के जरिये उनकी जासूसी की गई। ये जासूसी लोकसभा चुनाव के दौरान हुई। जिन लोगों की जासूसी की गई है, उनके नाम पर गौर करने पर संदेह पैदा होता है कि क्या इसमें सरकार की कोई भूमिका रही है? हालांकि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि भारत के नागरिकों की निजता में व्हाट्सऐप पर उल्लंघन होने को लेकर सरकार चिंतित है। इस बारे में व्हाट्स ऐप से बात की है और उनसे पूछा है कि वह लाखों भारतीयों की निजता की सुरक्षा को लेकर क्या कर रहे हैं।
भारत में एक तरफ जहां इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हो रही है, वहीं उसी रफ्तार में साइबर क्राइम भी बढ़ता जा रहा है। मौजूदा व्हाट्सऐप जासूसी प्रकरण भी साइबर क्राइम के दायरे में आ सकता है। हालांकि इसे लेकर केन्द्र सरकार गंभीर हो गई है और इस मामले पर व्हाट्स एप्ो से रिपोर्ट भी तलब किया गया है। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल इंडिया का नारा देकर गांव-गांव तक इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का वादा किया था। इसका मकसद सकारात्मक था। यदि यूजर्स इसका उपयोग नकारात्मक दिशा में करें तो कोई क्या कर सकता है। देश को डिजिटलाइज करने के साथ ही इस बात पर भी मंथन किया जाना चाहिए था कि वर्चुअल वर्ल्ड में हमारा डाटा कितना सुरक्षित है। हमारे भारत में मजबूत डाटा संरक्षण कानून की जरूरत लंबे वक्त से महसूस की जा रही है। पर अफसोस इस बात का है कि इतना लंबा वक्त गुजर जाने पर भी हम डाटा संरक्षण कानून को अब तक मूर्त रूप नहीं दे सके हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, चीन, जर्मनी, आस्ट्रेलिया सहित करीब चालीस देशों में मजबूत डाटा संरक्षण कानून मौजूद है। पड़ोसी देश चीन में तो इतना मजबूत कानून है कि वहां ट्वीटर जैसा वैश्विक सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म तक प्रतिबंधित है। हाल ही में आस्ट्रेलिया ने भी अपने कानून को और भी मजबूती प्रदान करते हुए कई कड़े कदम उठाए हैं। इसमें सबसे बड़ा कदम बच्चों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों के फेसबुक और ट्वीटर इस्तेमाल को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। वहां की एक कमेटी ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें बाल यौन शोषण को रोकने के लिए ऐसे प्रतिबंध को जरूरी बताया गया था। आस्ट्रेलिया के पास अपना मजबूत कानून था, जिसके कारण उसे इसे लागू करने में जरा भी देर नहीं लगी। भारत में इंटरनेट को लेकर स्थिति आश्चर्यजनक रूप से विपरीत है। एक तरफ यहां की सरकार इंटरनेट के इस्तेमाल पर पूरा जोर दे रही है। वहीं दूसरी तरफ इस इंटरनेट का उपयोग और उससे होने वाली विसंगतियों की तरफ पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है। डिजिटल इंडिया के इस युग मं इंटरनेट पर आपका डाटा कितना असुरक्षित है यह बताने की जरूरत नहीं है। अभी हाल ही में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर जिस तरह वाद विवाद शुरू हुआ उसमें सरकार की तैयारियों की पोल खुल गई। यह बहस अभी थमी नहीं है। आने वाले समय में अभी और भी बहस होगी। व्हाट्स एप्प के जरिए जासूसी प्रकरण को भी इसी से जोड़कर देखा जा सकता है कि यदि हमने एहतियात बरती होती तो शायद हालात कुछ और होते। भारत में इस वक्त सबसे बड़ा सवाल इंटरनेट पर मौजूद हमारे व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मौजूद समय में भारत में डाटा संरक्षण को लेकर कोई कानून ही नहीं है। न ही कोई संस्था है जो डाटा की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करती हो। हां इतना जरूर है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43-ए के तहत डाटा संरक्षण के लिए उचित दिशा निर्देश दिए गए हैं। पर ये निर्देश सिर्फ कागजों तक ही सीमित माने जाते हैं। जानकारों का कहना है कि जबतक ठोस डाटा संरक्षण कानून का गठन नहीं होता ये निर्देश अप्रभावी और अपर्याप्त हैं। भारत में इस वक्त इंटरनेट को लेकर सर्वाधित दुरुपयोग हो रहे हैं। यहां तक कि जातीय हिंसा फैलाने और आतंकी घटनाओं तक में इंटरनेट का उपयोग किया जा रहा है। जातीय उन्माद फैलाने में इंटरनेट का उपयोग इतना अधिक हो रहा है कि आए दिन किसी न किसी राज्य में सरकार को इंटरनेट सेवा कुछ समय या दिन के लिए बंद करनी पड़ रही है। यह अलार्मिंग सिचुएशन है। छोटी सी छोटी घटना इंटरनेट की सुलभता के कारण कितनी हिंसात्मक हो जा रही है यह मंथन की बात है। इंटरनेट के दुरुपयोगी पकड़े जाने पर भी आसानी से कानूनी शिकंजे से छूट जाते हैं। सोशल मीडिया के जरिए इस तरह का दुरुपयोग हाल के दिनों में काफी बढ़ा है। सबसे अधिक प्रभावित महिला और बच्चे हो रहे हैं। बिना कानूनी संरक्षण के इस तरह के दुरुपयोग पर पूरी तरह लगाम नहीं लगाया जा सकता है। भारत उन देशों की कतार में है जहां आने वाले समय में इंटरनेट ही सबकुछ होगा। हर काम का डिजिटलाइजेशन हो रहा है। सरकारी तंत्र पूरी तरह कंप्यूटर और इंटरनेट पर आधारित हो गया है। ऐसे में आधार और बायोमेट्रिक्स सुविधाओं पर बहस लाजिमी है। सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को इन मुद्दों पर कठघरे में खड़ा कर चुकी है। कई बार सवाल पूछे जा चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया का जो सपना देखा है वह निश्चित रूप से भारत को कई दम आगे ले जाने वाला होगा। आने वाले समय में इससे बेहतर कुछ दूसरा नहीं हो सकता है। पर यह सपना सार्थक तब होगा जब हम आम लोगों में यह विश्वास दिलाने में कामयाब होंगे कि इंटरनेट पर आप सुरक्षित हैं। आपका डाटा सुरक्षित है। आपका निजी जीवन सुरक्षित है। यह विश्वास तभी कायम हो सकता है जब भारत का अपना एक ठोस डाटा संरक्षण कानून वजूद में हो। भारत सरकार ने डाटा संरक्षण कानून के लिए इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन कृष्णा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था।
सबके बावजूद व्हाट्सऐप के जरिए जासूसी प्रकरण ने केन्द्र सरकार की भी आंखें खोल दी है। डाटा सुरक्षित रखने और यूजर्स की निजता रखने का मामला जोर पकड़ने लगा है। इस मुद्दे पर विपक्ष भी तमाम तरह के सवाल खड़े कर रहा है। देखना यह है कि सरकार करती क्या है?
भारत में एक तरफ जहां इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हो रही है, वहीं उसी रफ्तार में साइबर क्राइम भी बढ़ता जा रहा है। मौजूदा व्हाट्सऐप जासूसी प्रकरण भी साइबर क्राइम के दायरे में आ सकता है। हालांकि इसे लेकर केन्द्र सरकार गंभीर हो गई है और इस मामले पर व्हाट्स एप्ो से रिपोर्ट भी तलब किया गया है। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल इंडिया का नारा देकर गांव-गांव तक इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का वादा किया था। इसका मकसद सकारात्मक था। यदि यूजर्स इसका उपयोग नकारात्मक दिशा में करें तो कोई क्या कर सकता है। देश को डिजिटलाइज करने के साथ ही इस बात पर भी मंथन किया जाना चाहिए था कि वर्चुअल वर्ल्ड में हमारा डाटा कितना सुरक्षित है। हमारे भारत में मजबूत डाटा संरक्षण कानून की जरूरत लंबे वक्त से महसूस की जा रही है। पर अफसोस इस बात का है कि इतना लंबा वक्त गुजर जाने पर भी हम डाटा संरक्षण कानून को अब तक मूर्त रूप नहीं दे सके हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, चीन, जर्मनी, आस्ट्रेलिया सहित करीब चालीस देशों में मजबूत डाटा संरक्षण कानून मौजूद है। पड़ोसी देश चीन में तो इतना मजबूत कानून है कि वहां ट्वीटर जैसा वैश्विक सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म तक प्रतिबंधित है। हाल ही में आस्ट्रेलिया ने भी अपने कानून को और भी मजबूती प्रदान करते हुए कई कड़े कदम उठाए हैं। इसमें सबसे बड़ा कदम बच्चों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों के फेसबुक और ट्वीटर इस्तेमाल को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। वहां की एक कमेटी ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें बाल यौन शोषण को रोकने के लिए ऐसे प्रतिबंध को जरूरी बताया गया था। आस्ट्रेलिया के पास अपना मजबूत कानून था, जिसके कारण उसे इसे लागू करने में जरा भी देर नहीं लगी। भारत में इंटरनेट को लेकर स्थिति आश्चर्यजनक रूप से विपरीत है। एक तरफ यहां की सरकार इंटरनेट के इस्तेमाल पर पूरा जोर दे रही है। वहीं दूसरी तरफ इस इंटरनेट का उपयोग और उससे होने वाली विसंगतियों की तरफ पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है। डिजिटल इंडिया के इस युग मं इंटरनेट पर आपका डाटा कितना असुरक्षित है यह बताने की जरूरत नहीं है। अभी हाल ही में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर जिस तरह वाद विवाद शुरू हुआ उसमें सरकार की तैयारियों की पोल खुल गई। यह बहस अभी थमी नहीं है। आने वाले समय में अभी और भी बहस होगी। व्हाट्स एप्प के जरिए जासूसी प्रकरण को भी इसी से जोड़कर देखा जा सकता है कि यदि हमने एहतियात बरती होती तो शायद हालात कुछ और होते। भारत में इस वक्त सबसे बड़ा सवाल इंटरनेट पर मौजूद हमारे व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मौजूद समय में भारत में डाटा संरक्षण को लेकर कोई कानून ही नहीं है। न ही कोई संस्था है जो डाटा की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करती हो। हां इतना जरूर है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43-ए के तहत डाटा संरक्षण के लिए उचित दिशा निर्देश दिए गए हैं। पर ये निर्देश सिर्फ कागजों तक ही सीमित माने जाते हैं। जानकारों का कहना है कि जबतक ठोस डाटा संरक्षण कानून का गठन नहीं होता ये निर्देश अप्रभावी और अपर्याप्त हैं। भारत में इस वक्त इंटरनेट को लेकर सर्वाधित दुरुपयोग हो रहे हैं। यहां तक कि जातीय हिंसा फैलाने और आतंकी घटनाओं तक में इंटरनेट का उपयोग किया जा रहा है। जातीय उन्माद फैलाने में इंटरनेट का उपयोग इतना अधिक हो रहा है कि आए दिन किसी न किसी राज्य में सरकार को इंटरनेट सेवा कुछ समय या दिन के लिए बंद करनी पड़ रही है। यह अलार्मिंग सिचुएशन है। छोटी सी छोटी घटना इंटरनेट की सुलभता के कारण कितनी हिंसात्मक हो जा रही है यह मंथन की बात है। इंटरनेट के दुरुपयोगी पकड़े जाने पर भी आसानी से कानूनी शिकंजे से छूट जाते हैं। सोशल मीडिया के जरिए इस तरह का दुरुपयोग हाल के दिनों में काफी बढ़ा है। सबसे अधिक प्रभावित महिला और बच्चे हो रहे हैं। बिना कानूनी संरक्षण के इस तरह के दुरुपयोग पर पूरी तरह लगाम नहीं लगाया जा सकता है। भारत उन देशों की कतार में है जहां आने वाले समय में इंटरनेट ही सबकुछ होगा। हर काम का डिजिटलाइजेशन हो रहा है। सरकारी तंत्र पूरी तरह कंप्यूटर और इंटरनेट पर आधारित हो गया है। ऐसे में आधार और बायोमेट्रिक्स सुविधाओं पर बहस लाजिमी है। सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को इन मुद्दों पर कठघरे में खड़ा कर चुकी है। कई बार सवाल पूछे जा चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया का जो सपना देखा है वह निश्चित रूप से भारत को कई दम आगे ले जाने वाला होगा। आने वाले समय में इससे बेहतर कुछ दूसरा नहीं हो सकता है। पर यह सपना सार्थक तब होगा जब हम आम लोगों में यह विश्वास दिलाने में कामयाब होंगे कि इंटरनेट पर आप सुरक्षित हैं। आपका डाटा सुरक्षित है। आपका निजी जीवन सुरक्षित है। यह विश्वास तभी कायम हो सकता है जब भारत का अपना एक ठोस डाटा संरक्षण कानून वजूद में हो। भारत सरकार ने डाटा संरक्षण कानून के लिए इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन कृष्णा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था।
सबके बावजूद व्हाट्सऐप के जरिए जासूसी प्रकरण ने केन्द्र सरकार की भी आंखें खोल दी है। डाटा सुरक्षित रखने और यूजर्स की निजता रखने का मामला जोर पकड़ने लगा है। इस मुद्दे पर विपक्ष भी तमाम तरह के सवाल खड़े कर रहा है। देखना यह है कि सरकार करती क्या है?
(लेखक आज समाज के संपादक हैं।)