हम हर दूसरे तीसरे दिन सोशल मीडिया, अखबार, टीवी चैनलों पर बलात्कार की पीड़ितों की भयावह तस्वीरें देखते हैं, कहीं जली हुई, कहीं पर सर काट के अलग फेंक दिया गया तो कहीं पर उनके गुप्तांगों में तरह-तरह की चीजे जैसे कांच की बोतलें, लोहे की रॉड डालकर उनकी हत्या कर दी गई है। कहीं उन्हें जिंदा जलाकर मार डाला गया।
मगर हम कब देखेंगे ऐसी तस्वीरें उन बलात्कारियों की? कब उनके चेहरे हम वायरल करेंगे? कब हम दुनिया को यह बताएंगे, यही है वह चेहरा जिन्होंने बलात्कार किया था इसलिए उनको ऐसी सजा मिली। इन को जला दिया गया, उनके गुप्तांगों को काट दिया गया, इनके सर काट के फेंक दिए गए, सरेआम फांसी दी गई चेहरा खोलकर ढककर नहीं।
कब देखेंगे हम ऐसी तस्वीरें? आखिर ये तस्वीरें हम क्यों नहीं देखते हैं, हमारा कानून हमको ऐसी तस्वीरें क्यों नहीं दिखाता है।
क्या हर बार हम अपनी बहन बेटियों को ही देखेंगे, प्रताड़ित होते हुए उनके अपराधियों को कभी नहीं देखेंगे। हम हर बार खबर सुनते हैं कि फला लड़की का बलात्कार हो गया, क्या उसके साथ यह जघन्य अपराध हो गया, उसके साथ यह एक विभत्स कुकर्म किया गया, लेकिन अपराधी के बारे में तो कभी कुछ पता नहीं चलता बस एक बात पता चलती, अगर पकड़ा भी गया वह जमानत पर छूटे हुए हैं। अभी जांच चल रही है। सुबूत ढूंढेÞ जा रहे हैं।
बेटियों को पढ़ाओ और लिखाओ आत्मनिर्भर बनाओ लेकिन इन सब से क्या होगा? बेटियां निडर कब रह पाएंगी? कब बेटियां सुरक्षित महसूस कर पाएंगी अपने आप को? हमारे समाज को क्या हो गया है? मैं हर एक पुरुष से सवाल पूछना चाहती हूं कि आखिर उनके अंदर सेक्स की इतनी गर्मी क्यों है, क्यों किसी बेटी को इंसान नहीं समझते, उसे सिर्फ एक संभोग की वस्तु क्यों समझते हैं? क्यों किसी भी लड़की को देखकर उनके अंदर एक वासना की इच्छा जागृत हो जाती है। क्यों वह हर एक लड़की को देखकर उनके साथ सोने की इच्छा रखते हैं। जब चार आदमी एक अकेली लड़की को देखते हैं उनमें से किसी के अंदर जब गंदी इच्छा जागृत होती है तो दूसरा आदमी उसे क्यों नहीं रोकता है? दूसरा आदमी भी उसी इच्छा में शामिल क्यों हो जाता है? तेलंगाना की पशु चिकित्सक प्रियंका रेड्डी शाम (28/11/2019) की स्कूटी अस्पताल से लौटते वक्त एक सुनसान जगह पर पंचर हो जाती है। अपनी छोटी बहन को सूचना देती है बताती है कि वह अकेली और उसे डर लग रहा है। उसके बाद वह छोटी बहन को अगला फोन करती है कि कुछ लोग उसकी मदद के लिए आए तो है लेकिन वे लोग उसे संदिग्ध लग रहे हैं उसे ठीक नहीं लग रहा है।
छोटी बहन प्रियंका रेड्डी को उन लोगों से दूर हटकर किसी सुरक्षित जगह टोल नाके तक जाने की सलाह देती है और उस जगह का पता लेती है और उस जगह पहुंचने की कोशिश करती है। इस बीच वह अपनी बहन प्रियंका रेड्डी को फोन करती लेकिन उसका फोन अब लगातार स्विच आॅफ आता है छोटी बहन घबरा जाती है और जल्दी से जल्दी उस स्थान पर पहुंचती जहां प्रियंका रेड्डी का स्कूटी पंचर हुआ था। लेकिन वहां पहुंचने के बाद उन्हें अपनी बहन कहीं भी नहीं दिखाई देती। और अगले दिन यानी सुबह (29/11/2019) प्रियंका रेड्डी की जली हुई लाश मिलती है उसके साथ चार लोगों ने मिलकर सामूहिक बलात्कार किया और फिर पेट्रोल छिड़ककर उस जिंदा लड़की को जलाकर मार डाला। उसकी गलती बस इतनी थी कि उसने अपने लिए लोगों से मदद की आस रखी। मदद के नाम पर आए उन लोगों ने प्रियंका रेड्डी की जिंदगी समाप्त कर दी, देश से एक डॉक्टर को मिटा दिया, एक मां-बाप से उनकी बेटी छीन ली, बहन से उसकी बहन छीन ली, और जो सबसे बड़ी बात समाज से एक बार फिर विश्वास का कत्ल कर दिया। लोग अब मदद मांगने से डरेंगे मदद करने वालों से डरेंगे।
प्रियंका रेड्डी हम लोग शमिंर्दा हैं मगर हम ही बेशर्म भी हैं हम हर बार इन बातों को भूल जाते हैं, ऐसे अपराधों को भूल जाते हैं, फिर जब एक नया अपराध होता है तो फिर हम भी जाग जाते हैं और हम फिर शमिंर्दा हो जाते हैं। अपराधियों को सजा मिली कि नहीं मिली इस बात को लेकर हम ठंडे पड़ जाते हैं। बस यह चक्र के समान चलता रहता है अपराध होता है हम अपनी आवाज बुलंद करते हैं फिर हम ठंडे हो जाते हैं फिर एक अपराध होता है फिर हम अपनी आवाज बुलंद करते हैं फिर ठंडे पड़ जाते हैं फिर बस बार-बार यही होता है।
मगर अपराधी हर बार बच जाता है हर बार समाज की नजरों में आने से बच जाता है। आज तक लोग ठीक से जान ही नहीं पाए कि वह कौन लोग थे उनके चेहरे कैसे थे? वे किस परिवार के बेटे थे, वह किसके भाई थे, किसके बाप थे? लेकिन हर बार बेटियों का ही पता चलता है जिनके साथ बलात्कार हुआ वो किसकी बहन थी, किसकी बेटी थी, कैसा चेहरा था, किस समाज की थी ? लानत है हम पर हम किसी अपराधी को नहीं पहचानते अब तक जितनी लड़कियों के बलात्कार हुए जिन लोगों को मार डाला गया उनमें से एक भी अपराधी का चेहरा हमें याद नहीं। हम नहीं जानते वह वहसी दरिंदा किसका बेटा था, किस परिवार का था।
क्यों उनके परिवार रोते हुए सामने नहीं आते, क्यों अपनी छाती नहीं पीटते कि हमने ऐसी औलाद क्यों पैदा की इसको सरेआम फांसी दे दी जाए, इस को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, हम शमिंर्दा हैं, हम खुद अपराधी हैं कि हमने ऐसे बेटे को जन्म दिया, जिसने एक बेटी का जीवन बर्बाद किया, जिस दिन से मां-बाप अपने बेटों के खिलाफ समाज के सामने आकर खड़े हो जाएंगे उस दिन से यह अपराध कम होने लगेंगे। क्योंकि अपराधियों की जमानत देने वाला कोई नहीं रहेगा, उनके किए पर पर्दा डालने वाला कोई नहीं रहेगा। एक चेहरा ऐसा नहीं जिसे हमने और 10 लोगों में शेयर किया कि यही वह चेहरा है जिसने यह जघन्य अपराध किया, जिसने कुकृत्य, एक बेटी का, एक छोटी बच्ची का, एक अबोध शिशु का, जीवन बर्बाद कर दिया सिर्फ अपनी वासना की क्षणिक इच्छा पूर्ति के लिए।
हम नहीं बोलेंगे कि अपराधी को फांसी दे दो, उसका गुप्तांग काट दो, उसकी पांच उंगलियों में से तीन उंगलियां काट दो, उसकी एक आंख फोड़ दो, उसकी जबान काट दो। हम कुछ नहीं बोलेंगे, हम बोलने लायक ही नहीं रहे क्योंकि हमारा कानून सुनने के लायक नहीं रहा, हमारे पास शब्द नहीं है, ऐसा नहीं है, लेकिन हमारा कानून बहरा है, इन सब चीजों का एक ही रास्ता है, कि जहां भी अपराधी हाथ लगे वहीं पर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएं। अब ऐसे अपराधियों को सजा देने के लिए एक अलग भीड़ तंत्र बनाया जाए और इन्हें इनके किए की कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। वरना ऐसे अपराधी सरेआम घूमते रहेंगे। और कानून अपने नियम और धाराओं की मयार्दाओं को लेकर इन्हें बचाता रहेगा सुबूतों के न मिलने की आड़ में। बेटियां तो अनपढ़ भी सलीकेदार होती, जरूरत है बेटों को पढ़ाने की। बेटियों को पहनावा बदलने की जरूरत नही, जरूरत है बेटों के नजरिया बदलने की जानवरों को प्रेम से ठीक करने वाली इंसान की पशुता का शिकार हो गयी काश सीख लिया होता वक्त रहते हुनर पुरुष में छिपे जानवर को सीधा करना आज कहां गए सब लाल झंडे जो उठ खड़े होते हैं वक्त बेवक्त बेसिर पैर के मुद्दों पर। आज कहां है सभी रिपोर्टर जो चीखते रहते हैं हर बेसिर-पैर की बातों पर आज फिर इंतजार है मुझे अपनी मां दुर्गा का जो करे संहार इन राक्षसों का क्योकिं भारत अब आर्यावर्त नही रहा बन गया है आरामगाह कुछ बलात्कारियों का।
सारिका त्रिपाठी
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)