सत्ता में बड़ी हिस्सेदारी के लिए अफगानिस्तान में दो गुट आमने-सामने

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मुल्ला याकूब और हक्कानी नेटवर्क में बढ़े मतभेद
आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली:
काबूल को अमेरिकी सेना 31 अगस्त से पहले ही छोड़कर जा चुकी है। अमेरिकी सेना के जाने के तुरंत बाद ही तालिबान ने जश्न भी मनाना शुरू कर दिया और अब जल्द ही सरकार के गठन की औपचारिकताएं भी पूरी होने वाली हैं। लेकिन नई सरकार के गठन से पूर्व हर किसी ने अपने फायदे देखने शुरू कर दिए हैं। इसी कारण दो गुटों में टकराव भी देखने को मिल रहा है। यह टकराव मुल्ला याकुब और हक्कानी नेटवर्क के बीच में है।
दरअसल, तालिबान नेतृत्व गुट मुल्ला याकूब और हक्कानी का पाकिस्तान समर्थक गुट में मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। पाकिस्तान अफगानिस्तान की नई सरकार में अपनी भूमिका के अवसर देख रहा है।
तालिबान बेशक दुनिया के सामने अपनी एकता का प्रदर्शन कर रहा हो लेकिन इसकी अंदरूनी कलह धीरे-धीरे सामने आ रही है। तालिबान की स्थापना करने वाले मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब चाहता है कि कैबिनेट में सेना से जुड़े लोगों को लाया जाए, न कि राजनीति से जुड़े लोग। वहीं, तालिबान के सह-संस्थापक नेता मुल्लाह बरादर की इच्छा ठीक इसके विपरीत है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अफगान सरकार में हर कोई अपने फायदे के लिए लड़ रहा है और अफगानिस्तान में तालिबान के लिए सरकार बनाना और ठीक तरह से चलाना आसान नहीं होगा।
कुछ रिपोर्ट्स से यह संकेत मिले हैं कि मुल्लाह याकूब ने कहा है कि जो लोग दोहा में शाही तरीके से जीवन यापन कर रहे हैं, वे अमेरिकी सेना के खिलाफ देश में जिहाद करने वाले लोगों को नियम-कायदे न सिखाएं। मुल्लाह बरादर और शेर मोहम्मद स्तेनकजई ही दोहा से तालिबान की राजनीति का नेतृत्व करते हैं और इन दोनों ने ही अमेरिकी दूत जलमे खालीजन, पाकिस्तान और ब्रिटेन के साथ बातचीत की थी।
आपको बता दें कि अफगानिस्तान की नई सरकार में सुप्रीम लीडर के तौर पर तालिबान नेता हैबतुल्ला अखुंदजादा को चुना जा सकता है तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान में सुप्रीम काउंसिल का भी गठन होगा, जो काबुल से संचालित होगी। वहीं सुप्रीम लीडर कंधार में ही बने रहेंगे। सुप्रीम काउंसिल में 11 से 72 लोगों को शामिल किया जा सकता है। इसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करेंगे। वहीं प्रधानमंत्री को लेकर भी दो दावेदार सामने आ रहे हैं। इनमें तालिबानी नेता मुल्लाह बरादर और मुल्लाह याकूब के नाम शामिल है।