ब्रह्मकुमारी शिवानी
विश्व परिवार की भावना और विश्व कल्याण की कामना ही सच्ची-सच्ची राष्ट्रीयता है। जिस तरह अनेकों घरों को मिलाने से गाँव, अनेकों गाँव व शहरों को मिलाने से शहर बनता वैसे ही अनेकों देशों के समूह को विश्व कहा जाता है। सभी घर तो अलग-अलग है पर मिलने से गाँव व शहर कहे जाते हैं वैसे ही देश व राष्ट्र अलग-अलग होते हुये भी सभी के मिलने से धरती शोभायमान लगती है। सभी इन्द्रियों के मेल से हमारी शरीर शोभायमान होती तो अनेकों छोटे-बड़े देशों रूपी इन्द्रियों से बसुन्धरा सुशोभित है। किसी भी अंग-अवयव में पीड़ा होने पर पूरी शरीर वेचैन रहती तो देश वा राज्यों के पीड़ित होने पर पृथ्वी भी संकटग्रस्त हो जाती है। संचार क्रान्ति के कारण हर देश की पीड़ा घण्टों-मिनटों में पूरे देश में फैल जाती है। इन्द्रियों की नियोगी होने पर पूरा शरीर बलिष्ठ बना रहता है वैसे ही सभी देशों की समृद्धि से धरा स्वर्ग कहलाती है। सत्य समझ खत्म हो जाने से ही देश प्रेम के नाम पर मानव बम तक बनाकर लोग एक दूसरे को तहश-नहश करने में जुटे हुये हैं। हमें अब से ऐसा कार्य-व्यवहार करना चाहिये जिससे सर्व का भविष्य स्वर्णिम बन सके फलस्वरूप संसार ही कल्याणमय क्रीडांगन बन जायेगा।
पृथ्वी पर विचरण करने वाले हर नर-नारी को विश्व परिवार की भावना से देखना चाहिये। हरेक देशवासी दूसरे देशवासियों को पड़ोसी के साथ-साथ सेवा-सहकर्मी समझ कर व्यवहार करें। सम्पूर्ण मानवता को पारिवारिक भावना से अपनाने से ही धरती पर स्वर्ग की कल्पना साकार होगी। तब ही सभी प्राणी सुख-शान्ति-आनन्द का अनुभव कर सकेंगे। सत्याचरण से ही संसार में सौहार्द कायम होगा। सत्य व्यवहार से ही पारस्परिक प्रेम और विश्वास बढ़ता है। असत्यता से अविश्वास और घृणा को बढ़ावा मिलता है। इसने ही मानवता में विभाजन रेखायें खीची हैं। अब राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों में भी सत्य पर आधारित व्यवहार व्यापार होना चाहिये। कूटनीतिक प्रचलन से दुनिया का पतन और विभाजन बढता ही जा रहा है। असत्यता ने विश्व के टुकड़े-टुकड़े करके संसार को संकटग्रस्त कर दिया है। सभी रिश्तों-नातों से अठखेलियाँ करती हुई असत्यता दु:ख-दर्द-अशान्ति बढ़ाती जा रही है। सत्यं-शिवं-सुन्दरम् से ही संसार के सभी लोग स्वच्छ व सुन्दर बन देवी-देवता कहं जा सकेंगे। असत्य, अन्तकरण को मलिन और चंचल बनाता जबकि सत्य से जीवन निर्मल-निष्पाप और स्थिर होता रहता है। संसार के सभी धर्म सम्प्रदायों के संस्थापक सत्य पर बल दिये हैं। फिर भी दुनिया वेइमानी के गर्त में क्यों गिरती जा रही है ? टीचर और प्रीचर ही संसार में सत्य स्थापित कर सकते हैं। कलहयुग की अन्तिम घड़ियों में जब खुद खुदा ही परमशिक्षक परम सतगुरु बनकर अवतरित हो ब्रह्मा मुखकमल से सच्चा गीता ज्ञान सुना रहे हैं तो सबमें सत्यता के स्वाभाविक संस्कार जागृत होंगे ही।
अब से सत्यता का सम्पूर्ण रीति से अडिग आधार बनाना चाहिए। राजनेता, धर्मनेता व अभिनेता जब सत्यतापूर्ण प्रदर्शन करने लगेंगे तो व्यापार-व्यवसाय भी सत्यतापरक हो जायेंगे। यदि जीवन में सत्याचरण नहीं अपनायेंगे तो परम सत्य परमात्मा से विमुख हो जायेंगे। माता पिता सत्याचारी होंगे तो संतति स्वत: उनका अनुसरण करती रहेगी। घर ग्रहस्थ में सत्य की प्रतिष्ठा हो जाय तो सारा संसार ही कल्याणमय क्रीड़ांगन बन जायेगा। परमात्मा की सत्य बृद्धि सतयुग में असत्य का नामोनिशान नहीं होगा। सारा संसार ही बसुधैव कुटुम्बकम की भावनाओं से ओतप्रोत रहेगा। वेरोक-टोक के सभी लोग कहीं भी जा सकेंगे। असत्य के बढ़ते जाने से स्थितियाँ बिगड़ती जा रही हैं। दूसरे देशों के सभी नागरिकों को संदेह के दायरे से देखा जाता है। सत्य के बल से ही धरा की सर्वसम्प्रदायें सभी के लिये निर्वाध प्राप्त थी। सही को सदाचरण कहा जाता तो जो कुछ भी गलत हो रहा दुराचरण ही कहलायेगा। सदाचार ही विश्व सुधार की कुंजी है। इससे विश्व हितकारी भावनायें पनपेंगी। सतयुगी झाड़ दिखाई देने लगेंगे। कोई भी धर्म या समाज व्यसन और बुराइयों को तथा विलाशिता को अच्छा नहीं मानता है। आज के समुन्नत कहलाने वाले राष्ट्र मलिन आचार-विचार-संस्कार को खुली छूट दे रखे हैं। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अर्थ बुराइयों के लिये कदापि छूट नहीं होनी चाहिये। साम्प्रदायिकता ने तो संसार में दुराचरण की आंधियाँ उड़ा रखी है। विश्वव्यापी सदाचरण के रास्ते में साम्प्रदायिक भ्रष्टता सबसे बड़ी बाधा है। अब मानव की चरित्र हीनतायें दूर कर उच्च सदाचरण ही स्थापना करना आवश्यक हो गया है।
ज्ञान सागर शिव ही सर्वोच्च बोध कराकर मानवता को सत्याचार से समलंकृत कर सकते हैं। जब साधनों के साथ ही साथ साधना से भी समलंकृत होकर विश्व कल्याण के महान कार्य में जुट जाना चाहिये। सारे संसार में सत्य और सदाचरण की स्थापना का कार्य सरल नहीं है। सृष्टि को अलौकिक परिवार बनाना महान ते महान कार्य है। बौद्ध भिक्षु पूरे एशिया में बौद्ध धर्म फैला दिये सारे संसार में मुस्लिम और क्रिश्चिन धर्म फैल गया तो ईश्वरीय मत से विश्व परिवार क्यों नहीं बन पायेगा? ऐसे महान कार्य में ब्रह्मावत्स जितने तपोपूत होंगे इतनी ही तत्परता से विश्व नव निर्माण के कार्य में सहयोगी बन सकेंगे। यह धरा अनन्त एरश्वर्यें की खान है परन्तु तपस्या के बल से ही उसका सुचारु दोहन हो सकता है। आराम तलबी ही विलास-व्यसन की जननी है जो जीवन की क्षत-विक्षत कर देती है। तपस्या की पवित्रता से भौतिक विभूतियाँ प्राप्त होती हैं। जिससे हम देवत्व की ओर बढ़ सकेंगे। सद्विवेक से ही यह पृथ्वी सौभाग्य-समृद्धि और सम्पन्नता का द्वार खोलती है तब विश्व ही क्रीडांगन की तरह लगता है।